देवराज ने कालरात्रि के पैरों से पायल निकालकर कालरात्रि की एक छाया बनाई जिसका नाम योग माया रखा योग माया विपरीत थी योग माया की पहचान क्रोध मोह ईर्ष्या लोभ और स्वार्थ थी योग माया सभी को अपने मोह मे मोहित करती थी और जो उसके मोह में मोहित होता था उसमें यह पांच गुण आते थे वह प्रेम की बोली नहीं जानते थे वह क्रोध और स्वार्थ की भावना सदा रखते थे योग माया को देवराज ने बनाया था इसलिए योग माया सदा देवराज की बातें सुनती थी देवराज के कहने पर योगमाया ने ओम के जीवन में कालरात्रि का स्थान लेना चाह और तब से सदा ओम के पीछे चलती थी और ओम से कहती थी एक बार मुझे मुड़ कर देखलो मैं तुम्हारी कालरात्रि हूं पर ओम कभी भी योग माया को मुड़कर नहीं देखता था क्योंकि यदि ओम योग माया को मुड़ कर देख लेता तो ओम सदा के लिए योग माया के मोह में मोहित होकर कालरात्रि को भूलकर योगमाया का हो जाता और इस दुनिया में प्रेम त्याग समर्पण भक्ति भाव सदा के लिए समाप्त हो जाता जब ओम ने योग माया को नहीं देखा तब योग माया और देवराज ने मिलकर एक चक्रव्यू बनाया जिसका उद्देश्य ओम और कालरात्रि को अलग करना था चक्रव्यूह कालवन के सरोवर में एक ऋषि कई वर्षों से तपस्या कर रहे थे जो धारा के नीचे बैठकर तपस्या कर रहे थे योग माया ने वहां की धारा दलदली बना दिया और ऐसा बनाया एक बोली वहां बैठ ऋषि को सौ हजार बार सुनाई देने लगी एक दिन पूर्णिमा की रात है जब कालवन में अलग अलग ग्रहों से अलग अलग जीव प्राणी आए थे और सभी कालवन में अपना प्रदर्शन किया जहां ओम कालरात्रि और उन दोनों के सभी मित्र के साथ साथ अलग-अलग ग्रहों से आए सभी प्रकार के व्यक्ति थे जहां चांद से आए व्यक्तियों में नित्य और संगीत निपुण थे इसलिए उन्होंने नीति और संगीत का प्रदर्शन किया और ऐसा नित्य और संगीत को देखकर सब चकित रह गए कालरात्रि उनके संगीत और नृत्य को देखकर अति प्रसन्न हुए और उनके साथ ही नित्य करने के लिए उनके बीच गए और नित्य करने लगे कालरात्रि नित्य करते हुए देख योग माया भी कालरात्रि की तरह है उस दलदल स्थान पर नित्य करने लगी और योग माया किसी को दिखाई नहीं दे रहे थे और नित्य कर रही थी तब कालरात्रि ने नित्य करते हुए उस स्थान पांव रखा जहां योगमाया नृत्य कर रही थी जैसे ही कालरात्रि ने अपना पैर रखा वैसे ही योगमाया विलुप्त हो गई कालरात्रि के पैर रखते हैं ऋषि की तपस्या टूट गई ,💓💓💓💓आगे के कहानी अगला भाग में