Download App
33.33% काली साड़ी ( Kali Saree ) / Chapter 1: १. वो अंधेरी रात
काली साड़ी ( Kali Saree ) काली साड़ी ( Kali Saree ) original

काली साड़ी ( Kali Saree )

Author: Sara_2

© WebNovel

Chapter 1: १. वो अंधेरी रात

सड़कों पर बारिश के पानी का सैलाव बढ़ रहा था। उस पानी के सैलाव के बीच दो जोड़ी पैर भाग रहे थे। वहीं रास्ते के किनारे एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे एक बेंच था। उस बेंच के सामने दो मानव आकृतियाँ उभर रही थीं। परछाई से स्पष्ट था कि उन परछाइयों में से एक लड़का और दूसरी लड़की थीं। वे दोनों आकर बेंच पर बैठ गए। हालांकि पेड़ के नीचे बैठना सुरक्षित नहीं था, क्योंकि बिजली इतनी जोर से चमक रही थी कि वो कभी भी उस पेड़ पर गिर सकती थी। इससे इन दोनों को जान का खतरा भी था।

परंतु, भरी बारिश में इस पक्के सड़क पर सिवाए पेड़, पौधों और पक्षियों के कोई जीव जंतु नहीं थे। उस लड़की के बदन पर एक काली और पतली साड़ी लिपटी हुई थी। बारिश में भीगने के कारण वह नेट की पतली चादर जैसी साड़ी में ऐसे चिपकी हुई थी कि मानों वह उससे दूर नहीं जाना चाहती थी। उस लड़की की शरीर का बनावट ऐसा था, मानों ईश्वर ने उसके शरीर के हर एक अंग को अपने हाथों से बड़े तरीके से बनाया हो। मखमल मलाई जैसा चेहरा, गोरा और सुडौल बदन, नाजुक सा शरीर, नीली आंखें, कमर के नीचे तक उसके शरीर पर भूरी और सीधी रेशमी बाल, और पतले गुलाबी होंठ। वह इतनी खूबसूरत थी कि एक बार भी किसी मर्द को उसके समंदर जैसे गहरे आंखों में डूबने का मन कर जाता, उनके शरीर के हर रोम रोम में आग लगा देने का इरादा कर लेता।

उस लड़की के पास बैठा लड़का भी किसी राजकुमार से कम नहीं था। गोरा बदन, हल्की दाढ़ी, भूरी आंखें और काले बाल, शरीर ऐसा मानों उसने जिम में कई महीने घंटों मेहनत कर बनाया हो। कुछ देर तक वहां वे दोनों बैठकर हांफते रहे।

फिर जब उनकी सांसें नॉर्मल हो गईं, तो वह लड़की बोली, "यार अभिषेक, जब घर में थी, तो भागने का मन कर रहा था, कि कब मैं यहां से भागूं और हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊं। पर जब मैं भाग आई हूं, तो जी कर रहा है कि वापस घर चली जाऊं। ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें छोड़ना चाहती हूं, लेकिन जो मैंने इस कर्म से किया है, उससे मैंने अपने मां-बाप का दिल दुखाया है, उनकी आंखों में आंसू लाया है। कान्हा से तो इसमें कुछ भी छुपा नहीं होगा, वह हमेशा के लिए अगर मुझसे मुंह फेर लेगा तो कैसे जीऊंगी मैं उसके बिना?"

वह लड़का, जिसका नाम अभिषेक था, पहले से ही उस लड़की की बातें बड़े प्यार से सुन रहा था, लेकिन जब उसने उसकी आखिरी लाइन सुनी, तो जैसे मानों उसके अंदर बिजली सी कोंध गई हो। वह थोड़ा गुस्से से बोला, "कान्हा! कोन कान्हा! तुम्हारा मेरे अलावा कोई और भी आशिक है क्या, मीरा? और कौनसे मां बाप की बात कर रही हो तुम? वही जो अपने बच्चों की खुशियों को तोड़ने पर तुले हुए थे?"

इसके आगे अभिषेक कुछ और बोल पाता कि तभी वह लड़की, जिसका नाम मीरा था, भड़कते हुए बोली, "तुम पागल हो क्या? कान्हा से मैं प्रेम जरूर करती हूं, लेकिन मैं कोई मानव जिसका नाम कान्हा है, उसकी बात नहीं कर रही हूं, मैं भगवान श्री कृष्ण की बात कर रही हूं। और बाकी रहा मां-बाप के बारे में, तो वह इस तरह किसी से शादी तो नहीं कर देंगे।"

वह कुछ और बोल पाती, अभिषेक उसे गुस्से से बोला, "और वह जो शादी कराते हैं, वह भी अनजान ही होता है, कोई रिश्तेदार या पहचान वाला नहीं। यहां पर उन्हें फिक्र नहीं होती क्या?"

मीरा शांत होते हुए उसे प्यार से समझाती हुई बोली, "देखो अभी, वह हमारे मां बाप हैं, हमें जन्म दिया है उन्होंने, चिंता तो होगी न? अच्छा ठीक है, वह सब छोड़ो। ये बारिश रुकने वाली तो नहीं लग रही, तो आज क्या रात भर इसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठने का इरादा है?"

अभिषेक नाराजगी के साथ बोला, "तुम्हारे ये अभी कहकर पुकारने से मैं बात नहीं करने वाला। समझी तुम?"

मीरा उसे प्यार से निहारते हुए बोली, "अभी तुम गुस्सा क्यों कर रहे हो? हम दोनो तो अभी अकेले हैं, हमें परेशान करने वाला भी कोई नहीं है। ऐसे चुप क्यों बैठे हो अभी? ऐसे नाराज न हो हम से।"

कुछ देर तक तो मीरा शांत रही, लेकिन जब उसने देखा कि अभिषेक अब भी मुंह फुलाए बैठा है, तो उसने सोचा, "तुम्हे क्या लगता है अभी, सिर्फ तुम्हे ही अभिनय आता है, मुझे नहीं आती? देखती हूं, तुम कब तक ऐसे चुप बैठते हो।"

इतना सोचने के बाद वह बेंच पर से उठ गई। अभिषेक अब भी उसके तरफ नहीं देख रहा था। वह दूसरी ओर अपना मुंह करके बैठ था। मीरा बेंच पर से उठ अपना रुख रास्ते की ओर कर लिया। था तो वह रास्ता पक्का सड़क ही, पर उस पर से एक भी गाड़ी नहीं जा रही थी। शायद बारिश के वजह से। मीरा ने अपना एक पैर उस रास्ते पर रखा ही था कि फिसल कर नीचे गिर गई। हालाकि उसे न तो कोई चोट लगी थी और न ही कोई खरोच। उसका कारण यह था कि उसने जो योजना बनाई थी अभिनय करने का, ये वही था, उसी अभिनय का एक हिस्सा।

मीरा के गिरने के पश्चात उस शांत भरे माहौल में जहां सिर्फ बारिश के गिरने और बिजली के कड़कने की आवाज़ ही सुनाई दे रही थी मानों सिर्फ उन्हीं के आवाज का दबदबा इतना हो कि बाकी सारी आवाजें हवा में जैसे कहीं घुल गई हों, उनके अस्तित्व को किसीने मिटा दिया हो, वहां पर दो लोगों की आवाज़ उनसे भी ज्यादा ज़ोर दार थी कुछ इस तरीके से कि जिनकी आवाज उस माहौल में गूंज रही थी मानों उन्हीं के आवाजों को इन दो लोगों की चीख ने कुछ देर तक शांत कर दिया हो।

वह चीख उस माहौल में कुछ देर तक गूंजने के बाद शांत हो गई। मीरा जब फिसल कर गिरी तब वह इतनी कस कर चीख थी जैसे उसके प्राण उसके जिस्म से अलग हो रही हो, उसके सासों को कोई उससे छीन कर ले जा रहा हो। उसके चीख को सुन अभिषेक की भी चीख निकल गई और तब उसने मीरा की ओर देखा तो वह बेंच पर नहीं थी। आवाज़ के दिशा की ओर देखा तो वह नीचे सड़क के किनारे गिरी हुई थी।

अभिषेक भागते हुए मीरा के पास गया और उसे उठाते हुए बोला, "यार मीरा तुम गिर कैसे गई? तुम तो बेंच पर बैठी थी। इस आंधी तूफान जैसे माहौल में तुम रास्ते की ओर कहां जा रही थी?"

मीरा अभिषेक पर चिढ़ते हुए बोली, "यार, मैं यहां घायल अवस्था में गिरी पड़ी हूं और तुम्हें सवाल-जवाब करने की पड़ी है! वो तो तुम बाद में भी कर सकते हो, अभी करना जरूरी है क्या?"

अभिषेक उसे उठा कर बेंच की ओर ले जाते हुए बोला, "अच्छा बाबा, सॉरी, सॉरी।"

इतना कहकर उसने मीरा को बेंच पर ले जाकर उसे वहां बैठाते हुए बोला, "अब तो बताओ, तुम वहां क्या करने गई थी?"

मीरा मुंह फुलाए बोली, "तुम तो मेरे से बात ही नहीं कर रहे थे, तो मैं क्या करती बैठी कर? सोचा कि जब तक तुम्हारा गुस्सा शांत होता है, तब तक के लिए मैं थोड़ा टहल कर आ जाती हूं।"

अभिषेक आश्चर्य से बोला, "भरे बारिश में बाहर टहलने कौन जाता है?"

मीरा नौटंकी करते हुए मुंह लटकाते हुए मायूसी से बोली, "जब इंसान को उसका प्यार उससे दूर होता नजर आता है, तब वह बारिश, तूफान सब भूल जाता है। उसकी जिंदगी तो पहले ही उजड़ी हुई होती है। ये बारिश, तूफान क्या उजाड़ेंगे जब उजड़ने के लिए कुछ हो ही न।"

मीरा कुछ और बोल पाती कि तभी अभिषेक ने अपने होंठ मीरा के होंठ पर रख दी।

अभिषेक उसे चूमते हुए बोला, "तुम्हारे कहने का मतलब मैं बखूबी समझ रहा हूं। मुझे मेरे सभी सवालों के जवाब मिल गए। मीरा, मुझे तुमसे बेइंतेहा मोहब्बत है। एक पल के लिए भी तुम्हारा मेरे से दूर होना, उसके बारे में सोचने की क्षमता ही नहीं है। मैं तो बस नाटक कर रहा था, पर तुम इसे इतनी सीरियसली ले रही थी। I am really sorry, मीरा, प्लीज मुझे माफ कर दो।"

मीरा का तो काम हो गया था, इसलिए उसने फिर कुछ नहीं कहा, बस अभिषेक को प्यार से चूमती रही। अभिषेक का आगे भी कुछ करने का मन था, लेकिन मीरा उसे बीच में रोकते हुए बोली, "बस अभिषेक, बाकी बाद में। मुझे न अभी बहुत जोर की नींद आ रही है, तो प्लीज सोने दो।" इतना कह कर उसने अभिषेक के कंधे पर अपना सर रख दिया। कुछ देर के बाद वह गहरे नींद में सो गई। अभिषेक भी मीरा के सिर के ऊपर अपना सर रखकर सो गया।

सुबह करीब 6 बजे होगे। बारिश भी बंद हो गई थी। धूप भी अच्छी खासी चारों ओर खिली हुई थी। सड़कों पर गाड़ी भी चलने लग गई थी। आसमान में पंछी भी उड़ रहे थे। पंछियों के चहचहाट और सूरज के रोशनी में अभिषेक की नींद खुल गई। अभिषेक अपने आंखों को मलते हुए बोला, "इतनी जल्दी सुबह हो गई! देखो तो, कल रात को इतनी बारिश हो रही थी और अब ऐसे धूप निकली हुई है, मानो कल रात कुछ हुआ ही नहीं था।"

फिर कुछ सोच कर वह मीरा को उठाते हुए बोला, "मीरा! मीरा उठ जाओ! देखो सुबह हो गई।"

मीरा अंगड़ाइयां लेती हुई बोली, "अच्छा खासा सपना देख रही थी, ये कमबख्त सुबह को अभी ही होना था क्या?"

अभिषेक बोला, "मीरा, जब हमारा खुद का घर होगा तो न तुम आराम से सो कर जितनी मर्जी चाहो सपने देख सकोगी।"

मीरा बोली, "कब होगा हमारा खुद का घर?"

"उठ कर चलो तो सही, फिर देखेंगे कब, कैसे, और क्या करेंगे।"

मीरा बड़े मुश्किल से उठी, उठ कर उसने अभिषेक के हाथ को पकड़ लिया। फिर दोनों साथ में सड़क के उस पार चले गए। अभिषेक सामने से आते हुए एक ऑटो को रोक उस पर बैठे ऑटो चालक को बोला, "अंकल, हमें ज़रा स्टेशन तक छोड़ देंगे क्या?"

उस ऑटो चालक ने कहा, "बाबू, हम छोड़ तो देंगे, पर पूरे २५० रुपए लगेंगे।"

अभिषेक थोड़ा परेशान होते हुए बोला, "अंकल, १०० रुपए में ले जाएँगे प्लीज?"

वह ऑटोवाला भी अच्छा था, इसलिए उसने एक बार में ही १०० रुपए में ले जाने के लिए मान लिया। अभिषेक और मीरा जल्दी से उस ऑटो के अंदर बैठ गए। करीब १५ मिनट के बाद वे लोग स्टेशन के सामने थे। अभिषेक ने अपने जेब से एक सौ रुपए का नोट निकालकर ऑटोवाले के हाथ में थमाते हुए बोला, "धन्यवाद अंकल।"

उत्तर में ऑटोवाला ने मुस्कुरा कर उन दोनों को देखा। उसके बाद मीरा और अभिषेक स्टेशन के अंदर चले गए।

अंदर जाने के बाद अभिषेक ने एक कप चाय खरीदा और मीरा के हाथ में उस कप को थमाते हुए बोला, "मीरा, तुम यह चाय पियो, तब तक मैं टिकट लेकर आता हूँ।" इतना कहकर अभिषेक वहां से चला गया।

अभिषेक टिकट काउंटर के पास जाकर वहां बैठी एक औरत को बोला, "मैडम, दो टिकटें चाहिए दिल्ली के लिए।"

कुछ देर के बाद उस टिकट काउंटर वाली औरत ने अभिषेक के हाथ में दो टिकटें थमा दीं। वे ट्रेन वृंदावन से दिल्ली जाने की थीं। अभिषेक ने दोनों टिकटों के पैसे उस औरत को देकर वहां से आ गया। अभिषेक ने मीरा के पास आकर बोला, "मीरा, ट्रेन आने में थोड़ा समय है, तो चलो कुछ खा लेते हैं।"

मीरा ने कहा, "अभी तो भूख नहीं है, दिल्ली पहुंचकर कुछ खा लेंगे। तुम्हें अगर भूख लगी है तो खा लो।"

अभिषेक ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, तुम नहीं खाओगी तो मैं कैसे खा लूंगा, तुम्हें भूखा छोड़कर?"

"अच्छा ठीक है, लेकिन अब क्या करें, बैठे बैठे यहां?"

"कुछ नहीं, बस बैठ कर इंतजार करेंगे ट्रेन का।"

"हूँ," इतना कहकर मीरा चुपचाप आसमान को गौर से देखने लगी, मानों वह आसमान के नीले रंग में कहीं खो गई हो। लगभग आधे घंटे के बाद एक ट्रेन स्टेशन पर रुकी।

अभिषेक ने उठते हुए बोला, "मीरा, ट्रेन आ गई है।"

लेकिन मीरा मानों वह आसमान को देखते-देखते कहीं और ही दुनिया में चली गई हो।

अभिषेक ने मीरा को जोर से हिलाते हुए चिल्लाया, "मीरा, कहां खोई हुई हो तुम? ट्रेन छूट जाएगी हमारी।"

मीरा हड़बड़ाकर हकलाते हुए बोली, "माफ करना, मुझे सुनाई ही नहीं दी।"

अभिषेक ने मीरा की बातों को इग्नोर कर, उसके हाथ को पकड़कर ज़ोर से ट्रेन की ओर भागना शुरू किया। जनरल बोगी में चढ़ना मुश्किल होता है क्योंकि उसके अंदर लोग बहुत ज्यादा होते हैं। बैठने के लिए तो दूर, खड़े होने के लिए ठीक सी जगह नहीं मिलती है। भीड़ को देखकर अभिषेक को मीरा की चिंता सताने लगी। उसने भीड़ को चीरते हुए और मीरा को कवर करते हुए उसे लेकर ट्रेन के अंदर घुस गया। अंदर की हालत तो इससे भी खराब थी। बड़े मुश्किल से उन्होंने उस भीड़ के साथ अपनी साढ़े चार घंटे के सफर को पूरा किया।

जब ट्रेन दिल्ली के स्टेशन पर रुकी, तो फिर से भागदौड़ मच गई। बाहर से लोग अंदर आने लगे, तो वहीं अंदर के लोग बाहर। अभिषेक फिर टेंशन में आ गया। अभिषेक जैसे तैसे करके ट्रेन से बाहर निकल रहा था। तभी भीड़ में कोई मीरा से जोर से टकरा गया। मीरा का सिर जाकर ट्रेन की दीवार पर जोर से लग गई और वह जगह सुझ गई।

अभिषेक ने गुस्से से उस टक्कर लगने वाले शख्स की ओर देखा तो उसकी हसी छूट गई। सप्तरंगी बालों वाला, दुबला पतला, काले रंग का शरीर, रंगीन कपड़े और गले में मोटा सा चैन पहना हुआ वह आदमी किसी कार्टून छपरी से कम नहीं लग रहा था। अभिषेक ने उस आदमी को कुछ बोलने ही जा रहा था कि वह आदमी अभिषेक के साथ झगड़ा करने लगा। अभिषेक ने उसके चेहरे पर एक घुसा जड़कर वहां से कुछ बड़बड़ाते हुए मीरा को लेकर निकल गया। वह पीछे से झगड़ा करता रहा,  चिल्लाता रहा, लेकिन अभिषेक अभी इन सब झमेलों में नहीं पड़ना चाहता था, इसी लिए वह वहां से झगड़ा किए बगैर ही स्टेशन से निकल गया।


Load failed, please RETRY

Weekly Power Status

Rank -- Power Ranking
Stone -- Power stone

Batch unlock chapters

Table of Contents

Display Options

Background

Font

Size

Chapter comments

Write a review Reading Status: C1
Fail to post. Please try again
  • Writing Quality
  • Stability of Updates
  • Story Development
  • Character Design
  • World Background

The total score 0.0

Review posted successfully! Read more reviews
Vote with Power Stone
Rank NO.-- Power Ranking
Stone -- Power Stone
Report inappropriate content
error Tip

Report abuse

Paragraph comments

Login