आशा भी उसके भावों को समझ गई. तभी एक लड़की बावळे से बोली
"सर जब आप बड़े अभिनेता बन जाओगे तो आपसे मिलना या ऑटोग्राफ लेना बहुत मुश्किल होगा ना तो आज ही दे दो."
तभी आशा ना जाने क्यूँ अचानक हँसते हुए बोल पड़ी
"इनकी हीरोइन तो मैं ही होऊँगी चिंता मत कर मैं मिलवा दूंगी."
बस के जाने का समय हो गया. आशा साइकिल पर सवार होकर घर आ गई. कला उत्सव में जाने के समय करण के डेंगू हो गया था. आशा ने सारी दवाई सहित भेजा था किंतु अपने प्यारे बेटे की उसे चिंता सताए जा रही थी. कला-उत्सव में जाने से पहले दिन करण के पैर में मोच भी आ गई थी. आशा ने रात तो जैसे-तैसे गुजार दी किंतु अगले दिन दिल्ली साथ गए अध्यापक गणों से फोन मिला अपने बेटे का हाल-चाल जानने की चेष्टा की किंतु फोन किसी ने नहीं उठाया. अंत में उसने बावळे से फोन मिलाया. उसने तुरंत फोन उठा लिया और पता लगाकर बताने की बात कही. थोड़ी देर में बावळे का फोन आ गया और उसने बताया कि करण बिल्कुल ठीक-ठाक है. बावळे की बात सुन आशा के दिल को तसल्ली हुई. आशा की मुलाकात बावळे से फिर केवल उसी दिन हुई जब कला उत्स्व से वापस आए बच्चों को लेने गई तब हुई थी.
समय बीत गया. आशा बावळे की दिल की बात को ना तो समझ पाई ना ही कभी जानने की चेष्टा की.
एक दिन अचानक दीपावली के पावन-पर्व पर बावळे का शुभकामना का संदेश आया. आशा ने भी संदेश के बदले शुभकामनाएं दे दी फिर बातचीत ना हुई. आशा ने कभी जरुरत भी महसूस नहीं की.