अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा
तकदीर ना जाने कौन सा खेल खेल रहे हैं
तकदीर ना जाने कौन सा खेल खेल रहे हैं
क्या पता यह नयी सुरुवात है या फिर कुछ पुराना हिसाब हैं
जीवन में ठोकरें तो बहूत खायी है हमने
जीवन में ठोकरें तो बहूत खायी है हमने
बस जी रहे हैं हम तकदीर के सहारे
ना जाने कहाँ है मेरी मंज़िल और ना जाने रास्ते
अनजान सफ़र है बस चलते जाना है