अर्ज़ कुछ यूँ किया है जरा गौर फरमाइयेगा
हम तो अपनी गम तलब करते हैं कभी सिगरेट के धुवें में तो
कभी विदेशी शराब के नशे में। बस जले जा रहें है नफरत के चिंगारी में।
हम ने तो प्यार बाटना सीखा था, नफरत सीखा दिया। कितनी ज़ालिम है ये दुनिया ना तो खुद जीती है, ना जीने देती है।