महादेव की युवावस्था का समय आ चुका था। उसके शरीर में बदलाव आ रहे थे, और उसके मन में भी। जहाँ पहले उसके मन में आत्मज्ञान की तलाश और आंतरिक शांति की चाह थी, अब उसमें नई भावनाएँ उभरने लगी थीं। गाँव की एक लड़की, गंगा, उसके जीवन में अचानक से महत्वपूर्ण हो गई थी। बचपन से ही महादेव और गंगा का एक दोस्ताना रिश्ता था, लेकिन अब यह रिश्ता एक नए रूप में परिवर्तित हो रहा था।
गंगा का सौंदर्य और उसकी मासूमियत महादेव को आकर्षित करने लगे थे। उसकी हँसी की खनक और उसकी निःस्वार्थता महादेव के मन को भाने लगी थी। वह जब भी गंगा को देखता, तो उसे ऐसा महसूस होता जैसे उसके जीवन का खालीपन कुछ देर के लिए भर जाता है। महादेव की यह नई भावना उसे विचलित करने लगी थी। एक ओर वह आध्यात्मिक शांति की ओर खिंच रहा था, और दूसरी ओर गंगा का आकर्षण उसे इस संसार में खींच रहा था।
गंगा के प्रति महादेव का यह आकर्षण उसे द्वंद्व में डाल देता था। वह जानता था कि उसे इस संसार से दूर होकर आत्मज्ञान की खोज में लगना है, लेकिन गंगा के प्रति यह नया आकर्षण उसे उसी संसार में खींचे जा रहा था, जिससे वह दूर भागना चाहता था। उसके भीतर एक भीषण युद्ध चल रहा था—एक ओर उसकी आत्मा की पुकार थी, और दूसरी ओर उसका युवा मन, जो गंगा के सान्निध्य की लालसा करता था।
महादेव ने कई बार गंगा से दूर रहने का प्रयास किया, लेकिन जब भी वह गंगा से मिलता, उसकी हँसी, उसकी बातें, और उसकी सादगी उसे फिर से अपनी ओर खींच लेतीं। वह जानता था कि यह मोह-माया है, पर उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि इससे कैसे मुक्त हुआ जाए।
गाँव के बाकी लड़के जब गंगा की ओर आकर्षित होते, तो महादेव को यह अच्छा नहीं लगता। उसे गंगा के प्रति एक अधिकार-भाव होने लगा था, जो उसे भीतर ही भीतर अपराध-बोध से भर देता था। वह खुद से यह सवाल करता, "अगर मैं आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहता हूँ, तो फिर इस संसारिक आकर्षण से कैसे मुक्त होऊँ?"
महादेव का यह आंतरिक द्वंद्व उसकी भक्ति और साधना को भी प्रभावित करने लगा था। जब वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता, तो गंगा का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ जाता। वह अपनी साधना में लीन होना चाहता था, लेकिन उसका मन बार-बार भटक जाता। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे अपने जीवन की दिशा किस ओर मोड़नी चाहिए।
एक दिन, उसने अपने मन की बात फिर से शिवानन्द से साझा की। शिवानन्द ने उसकी बात सुनी और कहा, "यह संसारिक आकर्षण भी जीवन का एक हिस्सा है, महादेव। लेकिन याद रखना, यह केवल एक पड़ाव है। आत्मज्ञान की यात्रा में कई ऐसे पड़ाव आते हैं जो तुम्हें भटकाने की कोशिश करते हैं। तुम्हें इनसे ऊपर उठना होगा।"
शिवानन्द के ये शब्द महादेव के लिए एक दिशा थे, लेकिन यह आसान नहीं था। गंगा के प्रति उसके मन का आकर्षण उसे बार-बार भटकाता था। वह जितना उसे दूर करने की कोशिश करता, वह उतना ही उसके करीब महसूस करता।
महादेव का यह आंतरिक संघर्ष उसकी युवावस्था के सबसे कठिन समयों में से एक था। गंगा के प्रति उसके मन में जो भावना थी, वह उसे आत्मज्ञान की यात्रा से दूर ले जा रही थी। लेकिन महादेव जानता था कि उसे इससे ऊपर उठना है। यह संघर्ष उसके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बन गया था।
महादेव धीरे-धीरे इस सत्य को स्वीकार करने लगा कि यह आकर्षण भी एक परीक्षा है। उसे इस मोह-माया से ऊपर उठना है, और अपनी यात्रा को जारी रखना है।