महादेव के जीवन में अब एक नई दिशा सामने आ रही थी। उसने आत्मज्ञान की खोज में गहरे ध्यान और साधना के साथ-साथ अपने परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों का पालन किया था। लेकिन उसके भीतर एक गहरी अनुभूति थी कि संन्यास ही उसकी अंतिम मंजिल है। आत्मज्ञान के वास्तविक अनुभव के बाद, उसने महसूस किया कि उसका जीवन अब एक नई अवस्था की ओर बढ़ रहा है, जिसमें उसे पूरी तरह से आध्यात्मिक पथ पर चलने की आवश्यकता है।
महादेव ने इस सोच को अपने जीवन की अगली दिशा के रूप में अपनाया। उसने ठान लिया कि वह संन्यास ग्रहण करेगा, जिससे वह पूरी तरह से भौतिक दुनिया से अलग हो सके और अपनी आत्मिक साधना को पूर्णता की ओर ले जा सके। यह निर्णय उसके लिए सरल नहीं था, क्योंकि उसने अपने परिवार और समाज से बहुत गहरा जुड़ाव महसूस किया था, लेकिन आत्मज्ञान की पुकार ने उसे इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
एक दिन, महादेव ने अपने परिवार को अपने संन्यास के निर्णय के बारे में बताया। उसकी माँ और पिता को यह समाचार सुनकर दुख हुआ, लेकिन उन्होंने उसकी इच्छा का सम्मान किया और उसे आशीर्वाद दिया। महादेव ने अपने परिवार और गाँव के लोगों को धन्यवाद कहा और उन्हें समझाया कि यह कदम उसके आत्मिक विकास के लिए अनिवार्य है।
महादेव ने संन्यास की तैयारी शुरू की। उसने अपने सभी भौतिक सामान औरattachments को छोड़ दिया और केवल आवश्यक वस्तुएं रखीं। उसने अपने शरीर और मन को साधना के लिए तैयार किया और एक साधू के वस्त्र धारण किए।
वह हिमालय की ओर जाने के लिए निकल पड़ा, जहाँ उसने पहले भी साधना की थी। वहां पहुँचकर, महादेव ने एक नई साधना की शुरुआत की। इस बार उसकी साधना और भी गहरी और केंद्रित थी। उसने ध्यान और तपस्या के माध्यम से अपने आत्मिक पथ को और भी साफ और स्पष्ट किया।
महादेव का संन्यास जीवन अब एक नई शुरुआत था। उसने अपनी साधना के माध्यम से सभी भौतिक और मानसिक बाधाओं को पार किया और पूर्ण आत्मिक शांति की ओर बढ़ने की कोशिश की। उसकी यात्रा में कई कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उसने उन्हें धैर्य और दृढ़ता के साथ स्वीकार किया।
इस समय, महादेव ने अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझा और आत्मज्ञान के अंतिम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा समर्पित कर दी। संन्यास की यह अवस्था उसकी साधना का अंतिम चरण थी, जिसमें उसने अपने भीतर के सभी अंधकार को समाप्त किया और अपने सत्य स्वरूप को पहचानने की कोशिश की।
महादेव की यह यात्रा उसके जीवन के अंतिम चरण की ओर बढ़ रही थी, जहाँ वह पूरी तरह से आत्मज्ञान और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति की ओर अग्रसर था। उसकी साधना अब एक नई गहराई और व्यापकता प्राप्त कर चुकी थी, और वह आत्मा की अंतर्दृष्टि को पूर्ण रूप से आत्मसात करने की दिशा में बढ़ रहा था।