下載應用程式
35.48% RAMYA YUDDH (राम्या युद्ध-रामायण श्रोत) / Chapter 11: क्रंदन मंतव्य Crying destination

章節 11: क्रंदन मंतव्य Crying destination

हरिदास बाबा जैसे वहा से चले तभी अंजन जाकर गुरु जी के पैर पे गिर कर रोने लगी थी और साथ ही कह रही थी," गुरु जी मेरी पुत्र को छम्मा कर दीजिए, आज से वो कोई त्रुटि काम नही करेगा!." अंजन इतना कह कर और जोर से रोने लगी थी,गुरु जी को माया तक भी नही आया और अंजन को अपने हाथ से दूर हट्टा कर चुप चाप वहा से निकल गय,

काफी दूर आने के बाद राह में लहू का चिन्ह दिखा तभी एक ऋषिमुन्नी कहे," गुरु जी ये लहू का चिन्ह कैसा है!." गुरु जी वही पे बैठ कर उस लहू को स्मृति से देखने लगे, फिर से दूसरा ऋषिमुन्नि पूछे," गुरु जी इतना रजनी में तो यहां अमुक नही आ सकता, अर्थात फिर कौन हो सकता है!." गुरु जी उस ऋषिमुन्नी की बात सुन कर उसके तरफ दृष्टिपात करने लगे और साथ ही कहे," नही ये किसी मनुष्य का लहू है परंतु ये किसी बालक की पैर की चिन्ह नही है!." गुरु जी की वाक्य सुन कर वो ऋषिमुन्नी पूछे," गुरु जी फिर ये कौन हो सकता है और इतनी निशा में अकेले क्या कर रहा है इधर!." गुरु जी उस ऋषिमुन्नी की शब्द का जवाब दिए," नही पता करना परेगा स्मर ते अमुक होय!." इतना कह कर गुरु जी और दृठ ऋषिमुन्नी उस रक्त के पीछे पीछे चल दिए थे,

उस रक्त के पीछे जाते जाते हरिदास गुरु जी के आश्रम में पहुंच गया, दूसरा ऋषिमुन्नी ये सब देख कर आश्चर्य से गुरु जी से पूछा," परंतु गुरु जी ये तो राम्या की चरण-चिह्न नही है!." गुरु जी उस ऋषिमुन्नी की वाक्य सुन कर कहे," हूं परंतु ये कौन जो उस शास्त्र को अगवा करना चाहता है, यदि उस शास्त्र को किसी ने चुगलखोर कर लिया तो दूर उपयोग कर सकता है, इसे पहले हम उस शास्त्र को कल सुबह ही ब्रम्हा जी को दान कर देंगे!." ये बात शब्द सुनते ही कोई दूसरा ऋषिमुन्नी पूछे," परंतु क्यू, वो शास्त्र तो ब्रमहा जी का ही दिया हुआ है, अर्थात अपने किसी ज्ञानी शिष्य को देने लिए!!."

गुरु जी उस ऋषिमुन्नी की बात सुन कर कहे," परंतु ऐसा शिष्य कहा है जिसे ये बाण दिया जा सकता है!." फिर से दूसरा ऋषिमुन्नी कहे," आपको दृष्ट ना हो तो कल दृढ़ शिष्य का परीक्षण कर लेते है, अर्थात जो फतह होगा उसको ही इस बाण को अर्पण किया जायेगा!." गुरु जी उस ऋषिमुन्नी की वाक्य की आज्ञा मान लिए," हूं!." फिर वहा से सारे लोग सोने चले गय, जब गुरु जी नींद में सो रहे थे तो बजरंग बल्ली गुरु जी के स्वप्न में आकर कहे," आयुष्मान भव: !." स्वप्न में ही गुरु जी कहे," प्रभु आप!." बजरंग बल्ली गुरु जी की बात सुन कर कहे," हा हरिदास.. परंतु आज आप तो बहुत प्रशान लग रहे थे!." गुरु जी बजरंग बल्ली की बात सुन कर हाथ जोड़ कर कहे," हा प्रभु परंतु क्या करे उस बालक का कोई दोष नही था अर्थात गुस्सा में आकर मैं उसे श्राप दे दिया!." बजरंग बल्ली गुरु जी की बात सुन कर मुस्कुराने लगे,

तो फिर से गुरु जी आगे कहे," प्रभु अमुक ते शक्ति है जो में उसे इस श्राप से मुक्त करा सकू!." बजरंग बल्ली गुरु जी की बात शब्द सुन कर कहे," हरिदास आप जो श्राप को अर्पण किए हो, वो बालक उस लायक था ही!." ये बात सुन कर गुरु जी आश्चर्य से पूछे," प्रभु आप क्या कह रहे है, वो आपका भक्त था!." बजरंग बल्ली गुरु जी की बात सुन कर कहे," अवश्य है, परंतु उस बाण को उस बालक को ही दीजिए गा!." गुरु जी बजरंग बल्ली की बात सुन कर कहे आश्चर्य से कहे," परंतु अब वो शिष्य ऐसा नहीं है जिस पहले था,

अर्थात वो बाण किसी गलत शिष्य के हाथ गया तो ब्रम्हा जी मुझसे नाराज़ हो सकते है!." बजरंग बल्ली गुरु जी की बात सुन कर कहे," नही हरिदास मुझे ब्रम्हा जी ने खुद भेजा है, अर्थात उस बाण को राम्या को ही देना, यदि तुमको लगता है की परीक्षण कर के ही देना चाहिए, तो आप अवस्य कर सकते,!." गुरु जी बजरंग बल्ली की वाक्य सुन कर कहे," प्रणाम प्रभु!." गुरु जी बजरंग बल्ली को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया, बजरंग बल्ली हाथ उप्पर करके आशीर्वाद दिए," आयुष्मान भव: !." और बजरंग बल्ली वहा से चले गय,

सुबह राम्या आश्रम जाने के लिए तैयार था राम्या की मां अंजन भी राम्या के साथ साथ गुरु जी के आश्रम जाने लगी, चलते चलते राम्या अपने मां से कहे," माते मुझे छम्मा कर दो, मेरी वजह से आपको कितना यंत्रणा हुआ!." राम्या की मां अंजन राम्या की सुखन सुन कर कही," कोई बात नही, तुम मेरे पुत्र हो, मेरे लिए तुम सारी जहां हो, परंतु एक शब्द को याद रखना कुछ करने या कहने से पहले अत्यधिक दुविधा कर लेना!." राम्या चलते चलते कुछ कहना चाहा," माते मैं तो.. आ आ आ!." राम्या जोड़ से चीख गया, राम्या की मां अंजन आश्चर्य से राम्या को देखने लगी, और वही बैठ कर आश्चर्य से पूछी," क्या हुआ पुत्र इतना शक्ति से सदा क्यू किया!." राम्या वही पे रुक गया और बैठ कर अपने पैर को निखारने लगा, अंजन राम्या को देखते हुए कही," पुत्र क्या हुआ!." इतना कह कर अंजन भी वही पे बैठ गई, राम्या अपने को देखते हुए अंजन से कहा," माते स्मर ते पग सूल ते खलना!." राम्या की मां जब राम्या की पैर अपने हाथ में ली तो राम्या की पैर से रक्त गिर रहा था, अंजन उस रक्त को देख कर घबरा गई और अपने आंचल से राम्या की पैर का लहू को साफ करने लगी, सुगम करते हुए अंजन के आंख में आंसू आ गया था, राम्या अपनी मां का आंख को निखारने लगा, और राम्या के लोचन में भी सफा नम हो गया था, अंजन राम्या की पैर की लहू को सुगम कर रही थी, राम्या अपने माते के नैन के नम को छाटने लगा, और साथ ही कहा," माते तुम मत रोवो मैं कुछ नही करूंगा जिसे आपको त्रुटि हो!." राम्या की मां अंजन राम्या की पैर को साफ करते हुए कही," नही पुत्र मुझे तुमसे अमुक वेदना ते ना स्मर!." राम्या अपनी मां की तरफ देखा और आगे पूछा," फिर क्रंदन मंतव्य रही है!." अंजन राम्या से कही," कुछ नही चलो अब नही तो गच हो सकता है!." फिर दोनो वहा से उठ कर अपने गुरु जी के आश्रम चल दिए।

to be continued...

क्या होगा इस कहानी अंजाम गुरु जी ब्रम्हा शास्त्र किसको देंगे जानने के लिए पढ़े "RAMYA YUDDH "

PLEASE YOU SUPPORT ME AND GIVE POSITIVE RATING WITH CHAPTER COMMENT,


Load failed, please RETRY

每周推薦票狀態

Rank -- 推薦票 榜單
Stone -- 推薦票

批量訂閱

目錄

顯示選項

背景

EoMt的

大小

章評

寫檢討 閱讀狀態: C11
無法發佈。請再試一次
  • 寫作品質
  • 更新的穩定性
  • 故事發展
  • 人物形象設計
  • 世界背景

總分 0.0

評論發佈成功! 閱讀更多評論
用推薦票投票
Rank NO.-- 推薦票榜
Stone -- 推薦票
舉報不當內容
錯誤提示

舉報暴力內容

段落註釋

登錄