उन दिनों मैं और मेरे साथी स्कूल में पढ़ते थे। हमारा स्कूल हमारे घर से १२ किमी० दूर था । मैं , राजा और हैदर हमलोग एक साथ ही स्कूल जाते थे । हमारे घर अलग-अलग जगह थी । लेकिन हम लोग एक ही समय का बस पकड़ते थे , वो भी अलग-अलग बस स्टॉप से । गर्मी का दिन था । हमलोग रोज़ की तरह ही उसदिन भी स्कूल गए थे। उस दिन गर्मी भी बहुत ज्यादा थी । स्कूल भी जल्दी छुट्टी हो गई थी । मैं और राजा स्कूल की गेट से बाहर निकल कर खड़े थे और हैदर का इंतजार कर रहे थे । तब तक हमारे स्कूल के बाहर आईसक्रीम बेचने वाला आ गया था । पता नहीं उन दिनों उनकी आईसक्रीम में ऐसा क्या था कि स्कूल के ज्यादातर बच्चे उन्हीं के पास आईसक्रीम खाते थे । हैदर को आने में देरी हो रही थी तब तक मैं और राजा आईसक्रीमवाले से एक एक कुल्फी ले लेते हैं । उसके बाद हैदर आता है , तब तक हम कुल्फि खा चुके थे ।
मैं : "क्या हुआ भाई , तुम इतनी देर कहां थे । कब से तुम्हारा इंतज़ार करते करते हमने कुल्फि भी खा ली ।
हैदर : "भाई बोतल में पानी भर रहा था इसलिए देरी हो गई " ।
मैं : " वो अच्छा...,अब चलो, घर जाने के लिए बस भी पकड़ना है ।
हैदर :" हां , चलो भाई " ।
हम सभी साथ मिलकर बस पकड़ने के लिए बस अड्डे की तरफ चलना शुरू करते हैं । स्कूल से बस अड्डा दस मिनट कि दूरी पर था । हमें दो मिनट चलने के बाद केवल हावड़ा कि तरफ़ जाने वाली चांदमारी पुल को पार करना होता था , जिसमें कुछ आठ मिनट का समय लगता था । उसके बाद हम हावड़ा मैदान से बस में चढ़कर घर चले जाते थे । लेकिन उस दिन हम लोग पुल कि फुटपाथ पर कुछ ही कदम चले होंगे कि अचानक ! ही आसमां से रास्ते पर एक परिंदा हमारे सामने आ गिरा । एक भूरे रंग के पंखों वाला , जिसका चोंच पीले रंग की , नजरें पैनी और पंजे मांसभच्छी पंछियों कि तरह बड़े नाखूनों से भरी थी । लेकिन वह जमीन पर निर्बल सा पड़ा था । वह अपने पंखों को फड़फड़ाने कि कोशिश करता है , लेकिन वह उड़ नहीं पाता है । उसके बाद राजा उस परिंदें को देखकर कहता है :-
राजा : " अरे भाई , ये तो चील है "।
हैदर और मैं : " हां भाई... ये तो चील है "।
मैं : लेकिन ये अचानक नीचे कैसे आ गिरा ? ऐसा तो हमने कभी भी पहले किसी पंछी को आसमान से नीचे गिरता हुए नहीं देखा हूं ।
राजा और हैदर : हां भाई , ये कैसे अधमरा सा गिरा हुआ है ।
मैं : हां भाई ।
मैं : भाई देखो ! "यह कुछ धीमी आवाज में बोल रहा है और उसकी नजरें हमें ही देख रही है ।"
हैदर : " तुमसे बातें करना चाहता है और तुम तो मोगली हो न इसलिए पच्छीयों कि भाषा समझते हो " । ( एक छोटी सी मुस्कान सभी के चेहरे पर फुट पड़ती है । हैदर यूं ही मज़ाक में ऐसा कहता है )
राजा : अरे भाई ऐसा क्यों बोल रहे हो । सच में , देखों न उस चील की निगाह को , जो केवल हमें ही देख रही है । कितनी करुणा और उम्मीद भरा है उस चील की निगाहों में , मुझे लगता है वह पानी पीना चाहता है ।
मैं : हैदर भाई पानी की बोतल देना ।
हैदर पानी की बोतल निकालकर मुझे देता है ।
मैं उस चील के सामने जाकर बैठ जाता हूं , लेकिन वह एक असहाय जीव कि भांति वहीं रहता है । वह बिल्कुल भी अपनी जगह से नहीं हिलता है । वह अचेत पंछी की भांति उल्टा लेटे हुए था , उसकी नजरें अब हमें ही देखी जा रही थी । मैंने बोतल के ढक्कन को खोलकर उसमें थोड़ा सा पानी ढाल लिया , पर जैसे ही मैं उसे बोतल के ढक्कन से कुछ पानी की बूंदें उसके मुंह में देता हूं , वह निशब्द हो एक नई दुनिया में उड़ जाता है। उसकी आंखें अब बंद हो चुकी थी । हम सब कुछ क्षण स्तब्ध सा वहीं मौन खड़े रह जाते हैं। हम सबको बहुत बुरा लगता है ।
उसके बाद हम पूरी रास्ते चुपचाप से चलकर ब्रीज को पार करते हैं। बस आती है और हम बस में चढ़ जाते हैं। हम सब अब एक अलग ही दुनिया में खो गए थे । हैदर जो थोड़ी देर पहले तक मेरा मजाक बना रहा था वह कहता है " भाई तुम और राजा ठीक ही कह रहे थे । उसे सच में पानी चाहिए था अपनी आखिरी सांसों से पहले , सॉरी भाई मैंने तुम्हारा मजाक उड़ाया । " ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने आप को दोषी मान लिया हो । उसकी आवाज में आत्मग्लानि थी । मैंने कहा - " ठीक है भाई , मैंने तुम्हें माफ कर दिया । मगर तुम इस प्रकार अपने आप को दोषी मत समझो ।
हैदर : उसकी आंखें बंद होने से पहले , तुमने क्या उसकी आंखें देखी थी ?
( मैं लड़खड़ाते हुए आवाज में )
मैं : " हां देखी थी , जैसे वह जाते-जाते मुझे धन्यवाद बोल गया हो । उसकी अंतिम स्वर भी मुझे सुनाई दी थी , जो मेरे दिमाग में लगातार घूम रही है ।
हैदर और राजा : हूंम.....
हम सब यही सोच रहे थे कि वह आसमान में उड़ जाएगा । मगर उसने तो अपना रास्ता ही बदल लिया और एक नई दुनिया के लिए उड़ान भर ली थी । इस तरह हम तीनों ने पहली बार किसी जीव को अपने सामने मरते हुए देखा था। जिसके दर्द को हम-सब ने अपने दिलों में महसूस किया था । वह हममें से किसी का पालतू जीव भी नहीं था । वह तो एक आजाद परिंदा था । जो कुछ क्षणों के लिए हमारे सामने आया और हमें जिंदगी का सही पाठ सीखा गया ।
उस दिन मेरे मन में एक सवाल अब भी खटक रही थी कि वह आसमान से अचानक जमीन पर कैसे आ गिरा था । मैं घर पहुंच कर कई घंटों तक बार- बार आसमान कि तरफ़ देख रहा था। जैसे मुझे अब भी उस असहाय जीव की आने की आश लगी हो । लेकिन वह नहीं आया तो मैंने अपना प्रश्न का उत्तर ढूंढना चालू कर दिया । कभी कुछ किताबों में उसकी मौत कि वजह तलाश करता तो कभी कुछ लोगों से जानने की कोशिशें किया करता था । एक दिन मेरे स्कूल के एक शिक्षक ने मुझे समझाया कि कई पंछी गर्मी के दिनों में हर साल ही गर्मी की चपेट में आकर पानी न मिलने के कारण मर जाते हैं । ये शहर है , यहां जल के स्त्रोतों को ढक्कर बड़ी-बड़ी मकाने बना दी गई है । जिससे जलस्रोतों कि कमी हो गई है । यहां कोई भी अपने घर कि छत या बालकनी में पंछियों के लिए एक कटोरी पानी भी नहीं रखता है। गांव में लोगों को अनपढ़ माना जाता है । लेकिन फिर भी वे लोग अपनी घरों के आंगन और छतों पर एक कटोरी पानी रखा करते हैं । जो कई पंछियों की तृष्णा को बुझाती है । उस दिन से हम अपने घर के छतों और आंगन में एक कटोरी साफ पानी रखने लगे ।