उनकी झुकी थी आंखें चेहरा उदास था
शायद उनका साया भी नहीं उनके साथ था
परेशान हुए हम ऐसी तस्वीर देखकर
हैरत है हम ऐसी तकदीर देखकर
सोचा करीब जाकर उनके दिल को बहला u
वैसे भी वह टूटे हुए और वह टूट ना जाए
उनकी पलकों को अक्स भिगोने लगे
ना जाने क्यों फूट फूट कर रोने लगे
आते देख उन्होंने मुझको पल्लू से आशुओ पोछा
क्या है तू वही बेवफा, आता जाता हवा का झोंका
सन्न खड़ा रह गया मैं यही सोच कर
यह शब्द कहे है क्या, मुझे उसने देखकर
कौन हो तुम जरा सामने तो आओ
सताती है ये दुनिया तुम तो ना सताओ
सुनकर परदेसी का नाम में हैरान हो गया
कुछ पल के लिए मेरा दिल परेशान हो गया
मैंने उनके पास जाकर पूछा क्या आप मुझे जानती हो
ना जाने क्यों वह फूट-फूट कर रोने लगी
ना जाने क्यों ये बात दिल को मेरे झंझोर रही थी
अचानक अक्स भरे आंखों में गुमसुम होठों से उसने पूछा
क्या भूल जाते हैं परदेसी सबको दूर जाकर
क्या वह किसी को नहीं अपनाते दूर जाकर
क्या वो लौट कर आएगा मेरे लिए, बोलो मुझसे
मैं क्या कहता उसके सवालों को sunkar
वक़्त ठहर सा गया था हम दोनों की बातों के दरमियां
ना मैं कुछ कह सका और ना वह कुछ कह सके।
वर्षा अग्रवाल
— 新章節待更 — 寫檢討