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32.25% RAMYA YUDDH (राम्या युद्ध-रामायण श्रोत) / Chapter 10: हरिदास गुरु राम्या को श्राप दिया Haridas Guru cursed Ramya

Chương 10: हरिदास गुरु राम्या को श्राप दिया Haridas Guru cursed Ramya

राम्या और राम्या की मां दोनो रात को मंदिर में सोए थे अंजन की आंख लग गई थी परंतु राम्या की आंख नही लग रही थी राम्या को वो बात खाई जा रही थी राम्या बिस्तर पे सोए हुए ही सोच रहा था," उस शास्त्र में ऐसा क्या शक्ति थी जिसे हमारे गुरु जी आश्चर्य से देख रहे थे, परंतु मैं जब पूछा तो मुझे नही बताए , ऐसा लगता है जरूर कोई बड़ी शक्ति है, यदि गुरु जी वो बाण किसी और को दे दिए तो बहुत मुश्किल हो सकता है, इसे पहले मैं ही चुरा लेता, मैं चलता हूं!." राम्या ये शब्द सोच कर उस मंदिर से रात को ही निकला और अपने गुरु जी के आश्रम चल दिया, राम्या की मां अंजन चुप चाप सोई थी अंजन को पता भी नही चला की राम्या फिर रात को कहीं गया है, राम्या रात को ही दौर कर अपने आश्रम जा रहा था, तभी राम्या की पैर में एक कांटा चुभ गया था परंतु राम्या को पता नहीं चल पा रहा था की मेरे पैर में कांटा चुभा है, राम्या की पैर से लहू भी गिर रहा था परंतु राम्या को अंदाजा नहीं था की मेरे पैर से लहू गिर रहा है, राम्या भागते हुए जाकर आश्रम के गेट को बाहर से धक्का दिया अंदर की तरफ और धीरे धीरे राम्या दबे पाओ अंदर जाने लगा, राम्या अपना जहां जहां पे पैर रखता था वहां पे लहू का चिन्ह बन जाता था, आश्रम में हरिदास बाबा और सारे शंत सो गए थे, हरिदास बाबा ब्रम्हा शास्त्र को अपने प्रकोष्ठ में सामने रखे थे, क्यू की हरिदास बाबा को अपने सारे शिष्य पे प्रवृति था, राम्या अपने गुरु जी का प्रकोष्ठ में जाकर एक जहा पे श्री राम चंद्र यों पवन पुत्र हनुमान के मंदिर जाकर वहा पे उस ब्रम्हा शास्त्र को शोध करने लगे, ब्रम्हा शास्त्र को उस मंदिर में चारो तरफ मुठभेड़ किया परंतु कही नही द्योतन हुआ, राम्या को अंदर से अत्यंत भीति भी था की," यदि गुरु जी पकड़ लिए तो आने वाले दिन मुझे आश्रम से बाहर भी कर सकते है, मुझे कैसे भी जल्द से जल्द उस ब्रम्हा शास्त्र को यहां से लेकर निकलना होगा, परंतु वो शास्त्र रखे कहां है गुरु जी!." राम्या इस बात को सोचने लगा, तभी राम्या की प्रज्ञा में एक शब्द आया," लगता है गुरु जी उस शास्त्र को अपने कक्ष में अज्ञात कर के रखे है, वही पे चलंत करता हूं!." राम्या ये बात सोच कर उस मंदिर से निकला और हरिदास बाबा के कक्ष में हौले हौले जाने लगे, राम्या अपने गुरु की कमरा में पहुंचा तो राम्या सामने देख कर दंग रह गया, हरिदास के कक्ष का कपाट स्वतंत्र था राम्या अत्यंत अत्यंत जाते हुए सोचा," ये गुरु जी का मुहाना स्वतंत्र क्यू है!." राम्या जैसे कक्ष के द्वार पे गया और अपना मेधा को अंदर करके देखा, राम्या जैसे अपना मेधा को अंदर किया राम्या अंदर देख कर दंग रह गया, हरिदास बाबा के कमरा में कोई और शिष्य गया हुआ था, राम्या तेजी से अपना मेधा को बाहर किया और वही पे दीवार से चिपक कर सोचने लगा," वो प्रभु ये कौन है, मुझसे पहले इस बाण को चुगलखोर करने आया है!." तभी वो दुसरा शिष्य उस बाण को जैसे वहा से उठाया तभी हरिदास बाबा के लोटिया से टकड़ा गया, हरिदास बाबा अपने लोटिया को उस बाण के पास ही रखते थे, वो लोटिया उस बाण से टकड़ा कर जमीन पे गिर गया, और वो लोटिया जोर से आवाज कर गया," चान चान चान!." उस लोटिया को आवाज सुन कर वो शिष्य घबरा गया और वो बाण छोड़ कर वहा से निकल कर भागने लगा, उस लोटिया की आवाज सुन कर हरिदास बाबा नींद से उठ गय और जोर से चिलाते हुए बाहर निकले," चोर चोर चोर चोर!." राम्या भी ये दोनो आवाज सुन कर भागने लगे,हरिदास बाबा अपने कक्ष से निकल कर बाहर आए तभी सारे साधु बाहर आकर खड़े होकर एक साथ पूछे," क्या हुआ गुरु जी, आप इतना जोर से नाद क्यू किए!." हरिदास बाबा आचार्य से कहे," कोई हमारा शिष्य आया था जो उस ब्रम्हा शास्त्र को अगवा करना चाहता है!." हरिदास बाबा को बात सुन कर दूसरा साधु पूछा," परंतु हमारे शिष्य में तो ऐसा कोई नही है जो हमारे वचन को भूल जाय!." हरिदास बाबा उस साधु का बात सुन कर कहे," हा परंतु मुझे एक शिष्य पे वहम् है!."हरिदास बाबा के बात सुन कर फिर से दूसरा साधु पूछा," परंतु वो शिष्य कौन हो सकता है गुरु जी!." हरिदास बाबा उस साधु का बात सुन कर कहे," मेरा भ्रम राम्या की तरफ जा रही है, ऐसा लग रहा है की वही आया था!." ये बात सुन कर फिर से दूसरा साधु कहा," परंतु कैसे वो तो हमारे दृढ़ शिष्य में से अधिक ज्ञानी शिष्य है अर्थात वो कैसे कर सकता है!." हरिदास बाबा उस साधु की बात सुन कर कहे," नही मुझे उसपे पूरा शंका है, यदि आपको निष्ठा नही है तो आप जाकर उसके माते के पास निखार सकते है!." वो साधु हरिदास बाबा जी बात सुन कर कहे," तो चलिए गुरु जी चल कर ही परीक्षण कर लेते है!." ये बात सुन कर हरिदास बाबा एक साधु से कहे," मेरा लोटिया लेकर आओ!." वो साधु हरिदास बाबा की बात सुन कर वहा से लोटिया लाने के चल दिया तभी हरिदास बाबा कहे," उसमे जल भी लेते आना!." वो साधु हरिदास बाबा को कक्ष में गया और गुरु जी का लोटिया उठा कर बाहर लेकर आया और हरिदास बाबा से कहे," चलिए गुरु जी!." ये बात सुन कर हरिदास बाबा और सारे साधु एक साथ चल दिए राम्या के मंदिर के पास, परंतु राम्या यहीं पे खड़ा होकर अपने गुरु जी की बात सुन रहे थे, राम्या अपने गुरु जी के बात सुन कर आश्चर्य से सोचा," अब क्या होगा गुरु जी तो माते के पास जा रहे है, मुझे कैसे भी शीघ्र जाना होगा!." राम्या वहा से दौर कर अपने माते के पास जाने लगा, हरिदास बाबा और दृढ़ साधु जब मंदिर के पास पहुंचे तो जोर से एक साधु बोला," राम्या राम्या!." इस साधु की बात सुन कर राम्या और राम्या के माते कपाट स्वतंत्र किए तो हरिदास बाबा राम्या को देख कर दंग रह गय, तभी एक साधु राम्या को देख कर अपने गुरु जी से कहा," गुरु जी आप तो कह रहे थे की राम्या था परंतु राम्या तो अपने माते के साथ है!." राम्या की माते गुरु जी को देखते ही खुशी से कही," गुरु जी आइए न बैठिए, !." इतना कह कर अंजन अपना आंचल से चौकी को साफ करने लगी, तभी हरिदास बाबा गुस्सा में कहे," मुझे नही बैठना है, अपने पुत्र से पूछो इतनी रात को कहा गया था,!." अंजन गुरु जी के बात सुन कर आश्चर्य से पूछी," क्या वार्ता कर रहे है गुरु जी, राम्या तो मेरे साथ सुप्त था फिर कब निशा में गया था!." हरिदास बाबा अंजन की बात सुन कर गुस्सा में कहे," राम्या तुम सच सच बताओ कहा गया था!." राम्या अपनी गुरु जी की बात सुन कर इतमीनान से कहे," गुरु जी हम कही नही गय थे, आप चाहे जो वचन ले लीजिए!." गुरु जी राम्या की कथन सुन कर अतिशय प्रतिघात हो गाय, गुस्सा में कहे," इस तुम्हारे झूठी वचन के वजह से में तुम्हे श्राप देता हूं, जाओ यदि तुम उस बाण को अगवा करने नही गय होगे तो तुम्हे ये श्राप नही लगेगा यदि तुम उस बाण को अगवा करने गय होगे तो युद्ध के दौरान तुम अपने आत्मीय की जान तुम्हारी बाण से जायेगी जय श्री राम!." गुरु जी अपने हाथ में जल लेकर पूर्व दीक्षा की तरफ उछाल दिए, गुरु जी के जल उछालते ही असमान में बादल गरजने लगा और नारायण जी और विष्णु जी गुस्सा हो गाय, अंजन गुरु जी की बात सुन कर आश्चर्य कहने लगी," गुरु जी आप ये क्या कह रहे है, राम्या ऐसा गलती क्या कर दिया जिसे आप इतना बड़ा श्राप दे रहे!." गुरु जी प्रतिघात होकर कहे," अब मैं तो श्राप दे चुका हूं, अब राम की मर जी!." इतना कह कर गुरु जी और दृढ़ साधु वहा से अपने आश्रम की तरफ चल दिए,

to be continued...

अब क्या होगा इस कहानी का अंजाम जब राम्या को श्राप मिला, क्या राम्या अपने श्राप से मुक्ति ले पाएगा या युद्ध के दौरान किसका जान खा बैठेगा जाने के लिए पढ़े "RAMYA YUDDH"

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राम्या उस बाण को चुराने के लिए तो गया था दूसरे शिष्य को भी पता चल गया था, गुरु जी राम्या को श्राप तो दे दिए थे परंतु गुरु जी को भी बहुत अफसोस हुआ था, राम्या की मां गुरु जी से बहुत रिक्वेस्ट करती है परंतु क्या होता है गुरु जी माते है या नही नही, राम्या की बजरंग साथ देते है या नही जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH " Your gift is the motivation for my creation. Give me more motivation!

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