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83.87% RAMYA YUDDH (राम्या युद्ध-रामायण श्रोत) / Chapter 26: माते मेरे लिए तो इतना ही काफी है mother is enough for me

Chương 26: माते मेरे लिए तो इतना ही काफी है mother is enough for me

महाराजा के रथ जब महल के दरवाजा पे पहुंचा तो सिंघा जोर से बजने लगा और कपाट खुल गया, महाराजा ने रथ अंदर जाकर रुक गया और महाराजा उस रथ से उतर कर महल के अंदर जाने लगे, महाराजा कुछ बोल नही पा रहे थे, चुप चाप धीरे धीरे महल में अंदर जा रहे थे, तभी आगे से एक बुजुर्ग आ रहे थे जिनका उम्र होगा पंचास से उप्पर, और उनका नाम था शकुन, शकुन महाराजा के आगे खड़ा थे और महाराजा धीरे धीरे जा रहे थे तो शकुन आश्चर्य से पूछे," महाराजा क्या हुआ आज इतना आंदोलित क्यों हो!." महाराजा वही शकुन की बात सुन कर वही और ठहर गए और इत्मीनान से कहे," पिता श्री आप खुद ही बाहर जाकर देख लीजिए!." इतना कह कर महाराजा वहा से अपने कक्ष में जाने लगे,

शकुन महाराजा की वाक्य सुन कर जब बाहर निकला तो सामने देखा की रजनीचर की मृत्यु हो चुकी है और रजनीचर के देह पे सफेद कपड़ा वोढाया गया है, शकुन रजनीचर के पास धीरे धीरे जाने लगा, और आंख में आंसू भर आया था, शकुन जब रजनीचर के पास गया और सफेद कपड़ा को हटा कर एक सैनिक रजनीचर का मुंह देखा दिया, और शकुन रजनीचर का मुंह देख कर वहा से उठ कर फिर अंदर जाने लगा, तभी एक सैनिक शकुन से ऊंचा आवाज में पूछा," महराज इन सौ का क्या करे लोग!." शकुन उस सैनिक की आवाज सुन कर वही रुक गया और पीठ के बले बोला," जाकर अपने महराज से पूछ लो, अर्थात यदि वो मेरा नाम ले तो कह देना शकुन महराज की इसे कोई संबंध नहीं है!." इतना कह कर शकुन वहा से अपने कक्ष में चला गया, महाराजा अपने कक्ष में बैठे थे और कुछ प्रेशान से सोच रहे थे, तभी दनुज उस कमरा में पहुंच गया जिसका उम्र सताइश साल होगा , दनुज हफ्ते हुए और इत्मीनान से महाराजा से पूछा," पिता श्री ये किसने किया क्या आप बता सकते है!." महाराजा दनुज की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," ये जान तुम क्या करोगे!." दनुज महाराजा की वाक्य सुन कर आक्रोश में कहा," पिता श्री मैं उसे युद्ध करूंगा अर्थात मैं अपने पिता जी का बदला लूंगा!." महाराजा दनुज की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहा," परंतु कैसे करोगे वो तो छोटा बालक है, अर्थात उसे युद्ध के लिए हमारा सैनिक ही काफी है, तुम जाओ और अपने पिता जी का दफन कराओ!." दनुज महाराजा की वाक्य सुन कर चुप रहा तभी सुमाली दरवाजा ले दस्तक दे दी थी, महाराजा सूमाली को एक टक नजर से देखे जा रहे थे, सुमाली रजनीचर के सौ के पास से आई थी सुमाली की लोचन नम से भर चुका था, सुमाली रोते हुए कही," मानवी की तो सुहाग उजर गया, अब से भी तो आप मान जाइए, !." सुमाली की ये बात सुन कर दनुज गुस्सा में कहे," माते आप इसमें क्यू पड़ रही है, आपकी देवर की मृत्यु हो गया और आप कहती है की हम लोग चुप रहे, ये कतही नही हो सकता है!." सुमाली रोते हुए अपने पुत्र दनुज को समझती है," दनुज वो एक छोटा बालक है अर्थात गलती से बाण लग गई होगी इसमें उस बालक का क्या दोष है!." ये बात सुन कर महाराजा ने आक्रोश में पूछ लिया," तो आपको ये कैसे पता की वो बालक है, अर्थात वो रजनीचर को बाण नही चलाया है!." सुमाली महाराजा की वाक्य सुन कर रोते हुए पीछे की कहानी बताई," महाराज मैं जब अपने मायके मैं थी और मेरी उम्र बहुत छोटी थी, लगभग पंद्रह से सोलह साल की थी, तब मैंने अपने कक्ष में अकेले सोई थी तभी मेरे बिस्तर पे एक बिल्ली चढ़ गई थी, जब मेरा नींद खुली तो वो बिल्ली मेरे पास बैठी थी मैं उस बिल्ली को देख कर डर गई, और मेरे तकिया के पास एक ख़ंजर था मैं उठा कर उसे वार कर दी उस बिल्ली की उप्पर वो बिल्ली की मृत्यु हो गई, परंतु उस बिल्ली से मां वैष्णो देवी निकली,!." मां वैष्णो देवी मुस्कुराते हुए कही," पुत्र तुम्हे फल चाहिए !." मैं वैष्णो देवी को देख बहुत प्रेषान हो गई थी फिर वैष्णो देवी कही," पुत्री इसमें चिंतन की कोई वाक्य नही है, वे झिझक मांगो, मैं हर चीझ तुम्हे देने को तैयार हूं!." मैं वैष्णो देवी की बात सुन कर आश्चर्य से कही," माते पर आप मुझ पे इतना दया क्यू कर रही है!." मैं शंकर जी की पूजा बहुत ज्यादा करती थी इस लिए वैष्णो देवी कही," पुत्री तुम्हारे इस पूजन की वजह से हमारे प्रभु तुमपे स्नेह का बादल बर्शाने चाहते है!." ये बात सुन कर मैं कही," माते आप को जो लगे आप वही वरदान मुझे दे दीजिए, अर्थात मैं तो शिव का भक्त हूं मैं उनसे कुछ कैसे मांग सकती हूं!." मां वैष्णो देवी मेरी वाक्य सुन कर मुस्कुराने लगी और फिर अपनी हाथ उप्पर कर के आशीर्वाद देते हुए कही," जाओ मैं तुम्हे ऐसे वरदान देती हूं कि तुमपे संकट आने से पहले सब पता चल जायेगा, परंतु उस संकट को तुम टालने के लिए तुम अपनी सकती को उपयोग नहीं कर सकती हो!." मैं ये बात सुन कर बहुत खुश हो गई थी और फिर मैंने कही," माते मेरे लिए तो इतना ही काफी है, !." फिर मैंने माता वैष्णो देवी को प्रणाम की और माते वैष्णो देवी चली गई!." सुमाली की बात सुन कर महाराजा और दनुज दंग रह गय, फिर दनुज सुमाली की आक्रोश में कहा," माते आप यहां से जाइए और माते मानवी, कांदरी और माली को समझाइए !." सुमाली ये बात सुन कर कही," ठीक है परंतु युद्ध का प्रस्ताव मांगने से पहले एक बार जरूर सोचिएगा!." इतना कह कर सुमाली उस दरवाजा से निकल कर बाहर मानवी के पास जाने लगी, मानवी अपने बेड पे रानी की तरह सज धज कर बैठी थी परंतु अपनी पति के वियोग में बैठ कर रो रही थी तभी सुमाली वहा पहुंची और चुप कराने लगी," मानवी चुप हो जावो, और अपने पुत्र को समझाओ!." फिर सुमाली मानवी को अपने हाथ से पकड़ कर खड़ा की और दूसरी मंजिल से खिड़की के पास लाकर रजनीचर को दिखा दी, इन दोनो के आंख पूरा नाम से भरा हुआ था, उसके बगल में बहुत सारे खिड़की थी उन सारे खिड़की से अदिति, कांदरी और माली ये सब खड़ा होकर देख रहे थे तभी कुछ सैनिक रजनीचर को उठा कर दफन करने के लिए लेकर चले गय,

to be continued...

क्या होगा कहानी का अंजाम क्या दनुज अपने पिता का बदला लेगा या फिर राम्या के शरण में जा कर समर्पित होगा जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH "


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