शाम को उनके आने के बाद का घर के माहौल के बारे में सोचकर वह सिहर उठी क्योंकि बच्चे अपने पिता पर खार खाए बैठे थे.
किस्मत है कि हर जगह या तो साथ देती है या धोखा देती है.
श्याम बाबा के दर्शन करते ही सखी और बावळे में बात हुई कि सीधे माँ से मिलने गांव चलते हैं. सुमन को उन्होंने फोन पर सूचना दें औपचारिकता कर ली थी. सुमन मन मसोस कर रह गई. बावळा और सखी गांव माँ से मिलने जाने के बहाने अधिक से अधिक साथ रहना चाहते थे. गाड़ी गांव की ओर सरपट दौड़े जा रही थी. सखी और बावळे के दिलों में हलचल मची हुई थी. पुराना प्यार हिलोरे ले रहा था. दोनों कनखियों से एक-दूसरे को बीच-बीच में देख लेते थे किंतु जुबान कुछ कह नहीं पा रही थी. ना जाने कब गांव की सीमा आ गई. बावळे ने बराबर की सीट पर बैठी सखी को पीछे बैठने को कहा और गाड़ी रोक दी. सखी के कथित पति पीछे से आगे आ बावळे के बगल में बैठ गया. वह मुस्कुरा रहा था पर वह सखी और बावळे के प्यार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाह रहा था. घर पास आता जा रहा था. बावळे ने अपनी माँ को भी फोन कर दिया था कि वह सखी के साथ आ रहा है.