भारतीय समाज में ऐसे रिश्तों का सामान्य मेल-जोल तो ठीक रहता है. किंतु प्रेम मोहब्बत का रिश्ता समाज में कलंक समझा जाता है व रिश्तों की पवित्रता के लिए यह धोखा होता है.
पर बावळा तो आशा को दिलोंजान से चाहने लगा था. वह उससे अपने संदेश में स्नेह भरी इमोजी भेजता. आशा से भी प्रतिउत्तर में वैसे ही उम्मीद करता. आशा जानती थी बावळा मन का अच्छा था. उसकी भावना पवित्र थी. वह निश्छलता से आशा को प्यार करने लगा था किंतु आशा की नज़र में केवल मज़ाक या कल्पना ही थी. वह बावळे की हर बात को हंस कर टाल देती. आशा की यही पवित्र भावना बावळे को आशा की ओर खींच रही थी. एक दिन आशा विद्यालय गई. संयोग से बावळा भी वही अपने लड़के हेतु शिक्षक गणों से मिलने गया था. तभी उसकी मुलाकात आशा से होती है. दोनों स्कूल कैंटीन में जाते हैं. वहां बावळा, आशा को आइस-क्रीम खिलाता है. वहीं बावळा, आशा को अपने बारे में बताता है. वह कैसे गुजरात में माफिया गिरोह से टकराता था, घंटों समुद्र के किनारे बैठा रहता था और अब उसे किसी से प्यार हो गया. आशा ने हौले से बावळे की ओर देखा. वह भी आशा को देख मुस्कुरा उठा. कैंटीन वाले भैया ने तभी चाय का पूछा. आशा ने दो चाय का आदेश दे दिया. दोनों चाय पीने लगे और बातें करने लगी. तभी बावळे की बीवी का फ़ोन आया कि
"घर कब तक आ रहे हो."
बावळे ने कहा
"बस अभी चल ही रहा हूँ."
दोनों उठ खड़े हुए.