चिड़ियों की चहचहाहट से बावळे की आंखें खुली. स्कूल जाने का समय निकल चुका था. घर में सब उठ चुके थे किंतु उसे किसी ने भी उठाने की कोशिश नहीं की. यह जानबूझकर किया गया था. शायद नानी ने ही सब को मना किया था. उसने उठने का प्रयत्न किया किंतु बदन दर्द के कारण वह तेजी से उठ नहीं पाया. तभी नानी ने पास आ उसे सहलाया, पुचकारा. नानी ने उसे उठाकर नहलाया, खाना खिलाया व अपने साथ बाज़ार जाने का कह उसे गाँव के अखाड़े में ले गई. अखाड़े के गुरु को बावळे को सौंपते हुए उसे पहलवानी सिखाने का कहा. अखाड़े के गुरु ने कहा
"अभी बावळा छोटी उम्र का है क्यों पहलवानी सिखा रही हो अम्मा."
नानी ने कहा
"अरे बचपन में बच्चा जल्दी सीखता है. आप तो इसे अच्छा पहलवान बना दो. मैं जिंदगी भर आपका एहसान मानूंगी."
"ठीक है अम्मा जैसा आप चाहते हो वैसा ही होगा."
पहलवानी सिखने के कारण कई दिन बावळा स्कूल नहीं जा पाया. गुरु जी ने घर पर सूचना भिजवाई. नानी के कहा
"10-15 दिन नहीं आ पायेगा. जरुरी काम है."
बावळे को पीटने वाले बच्चे भी उसके न आने से परेशान हो उठे. 10-15 दिन बाद बावाला अच्छे से बन-ठन कर स्कूल गया. गुरुजी ने उसे इतने दिन ना आने की सजा 100 उठक-बैठक लगाने की दी. बावळे ने 5 मिनट में 100 उठक-बैठक लगा दी. बिना हील-हुज़्ज़त के बावळे को उठक-बैठक लगाते देख उसे मारने वाले बच्चे सकते में आ गए. गुरु जी कक्षा में पढ़ाने लगे. बदमाश बच्चों के मन बावळे को पीटने को बेचैन हो उठे. छुट्टी की घंटी बज गई. सब बच्चे अपने घर की तरफ चल पड़े. बावळे को रास्ते के बीच बदमाश बच्चों ने मारने के लिए हाथ उठाया तो बावळे ने उनको पटक-पटक कर मारा. सब मिलकर भी बावळे को हरा नहीं सके. आज बावळा संतुष्ट था. वह अति प्रसन्न मन से घर की ओर चल दिया.