ดาวน์โหลดแอป
37.73% गीता ज्ञान सागर / Chapter 20: अध्याय 11 विराट रूप ---श्लोक 38 से 54 ///

บท 20: अध्याय 11 विराट रूप ---श्लोक 38 से 54 ///

।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे

====================================

 

श्लोक 38

 

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌।

वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप।।

 

हिंदी अनुवाद_

 

आप आदिदेव और सनातन पुरुष हैं, आप इन जगत के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे यह सब जगत व्याप्त अर्थात परिपूर्ण हैं।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 39

 

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।

नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

आप वायु, यमराज, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजा के स्वामी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता हैं। आपके लिए हजारों बार नमस्कार! नमस्कार हो!! आपके लिए फिर भी बार-बार नमस्कार! नमस्कार!!

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 40

 

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व। 

अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे अनन्त सामर्थ्यवाले! आपके लिए आगे से और पीछे से भी नमस्कार! हे सर्वात्मन्‌! आपके लिए सब ओर से ही नमस्कार हो, क्योंकि अनन्त पराक्रमशाली आप समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं, इससे आप ही सर्वरूप हैं।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 41

 

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।

अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे भगवन ! आपको सखा मानकर आपकी इस महिमा को न जानते हुए मेरे द्वारा प्रमाद से अथवा प्रेम से भी हे कृष्ण हे! यादव हे सखे! इस प्रकार जो कुछ बलात कहा गया है।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 42

 

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु।

एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

और, हे अच्युत ! जो आप मेरे द्वारा हंसी के लिए बिहार, शय्या,आसन और भोजन के समय अकेले में अथवा अन्यो के समक्ष भी अपमानित किए गए है, उन सब के लिए अप्रमेय स्वरूप आप से मैं क्षमा याचक करता हूं।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 43

 

पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌।

 न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

आप इस चराचर जगत के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं। हे अनुपम प्रभाववाले! तीनों लोकों में आपके समान भी दूसरा कोई नहीं हैं, फिर अधिक तो कैसे हो सकता है।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक। 44

 

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌।

पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

इसलिए हे प्रभो! मैं शरीर को भलीभाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ। हे देव! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक  45

 

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।

तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

मैं पहले न देखे हुए आपके इस आश्चर्यमय रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, इसलिए आप उस अपने चतुर्भुज विष्णु रूप को ही मुझे दिखलाइए। हे देवेश! हे जगन्निवास! प्रसन्न होइए।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 46

 

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।

तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किए हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिए हुए देखना चाहता हूँ। इसलिए हे विश्वस्वरूप! हे सहस्रबाहो! आप उसी चतुर्भुज रूप से प्रकट होइए।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 47

 

श्रीभगवानुवाच

मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदंरूपं परं दर्शितमात्मयोगात्‌।

तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यंयन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! अनुग्रहपूर्वक मैंने अपनी योगशक्ति के प्रभाव से यह मेरे परम तेजोमय, सबका आदि और सीमारहित विराट् रूप तुझको दिखाया है, जिसे तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी ने पहले नहीं देखा था।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 48

 

न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।

एवं रूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे अर्जुन! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद और यज्ञों के अध्ययन से, न दान से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे द्वारा देखा जा सकता हूँ।

 

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 49

 

मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌।

व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं प्रपश्य॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

मेरे इस प्रकार के इस विकराल रूप को देखकर तुझको व्याकुलता नहीं होनी चाहिए और मूढ़भाव भी नहीं होना चाहिए। तू भयरहित और प्रीतियुक्त मनवाला होकर उसी मेरे इस शंख-चक्र-गदा-पद्मयुक्त चतुर्भुज रूप को फिर देख।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 50

 

संजय उवाच

इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।

आश्वासयामास च भीतमेनंभूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

संजय बोले- वासुदेव भगवान ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 51

 

अर्जुन उवाच

दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।

इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

अर्जुन बोले- हे जनार्दन! आपके इस अतिशांत मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 52

 

श्रीभगवानुवाच

सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।

देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

श्री भगवान बोले- मेरा जो चतुर्भज रूप तुमने देखा है, वह सुदुर्दर्श है अर्थात्‌ इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 53

 

नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।

शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

जिस प्रकार तुमने मुझको देखा है- इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं न वेदों से, न तप से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जा सकता हूँ।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 54

 

भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।

ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

परन्तु हे परंतप अर्जुन! अनन्य भक्ति (अनन्यभक्ति का भाव अगले श्लोक में विस्तारपूर्वक कहा है।) के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिए, तत्व से जानने के लिए तथा प्रवेश करने के लिए अर्थात एकीभाव से प्राप्त होने के लिए भी शक्य हूँ।

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

श्लोक 55

 

मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्‍गवर्जितः।

निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे अर्जुन! जो पुरुष केवल मेरे ही लिए सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला है, मेरे परायण है, मेरा भक्त है, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूतप्राणियों में वैरभाव से रहित है (सर्वत्र भगवद्बुद्धि हो जाने से उस पुरुष का अति अपराध करने वाले में भी वैरभाव नहीं होता है, फिर औरों में तो कहना ही क्या है), वह अनन्यभक्तियुक्त पुरुष मुझको ही प्राप्त होता है।

 

 

 

::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा :::::: श्रीकृष्णा ::

 

 

 ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः।

-------------------------------------------------------------------------

 

 

 


Load failed, please RETRY

สถานะพลังงานรายสัปดาห์

Rank -- การจัดอันดับด้วยพลัง
Stone -- หินพลัง

ป้ายปลดล็อกตอน

สารบัญ

ตัวเลือกแสดง

พื้นหลัง

แบบอักษร

ขนาด

ความคิดเห็นต่อตอน

เขียนรีวิว สถานะการอ่าน: C20
ไม่สามารถโพสต์ได้ กรุณาลองใหม่อีกครั้ง
  • คุณภาพงานเขียน
  • ความเสถียรของการอัปเดต
  • การดำเนินเรื่อง
  • กาสร้างตัวละคร
  • พื้นหลังโลก

คะแนนรวม 0.0

รีวิวโพสต์สําเร็จ! อ่านรีวิวเพิ่มเติม
โหวตด้วย Power Stone
Rank NO.-- การจัดอันดับพลัง
Stone -- หินพลัง
รายงานเนื้อหาที่ไม่เหมาะสม
เคล็ดลับข้อผิดพลาด

รายงานการล่วงละเมิด

ความคิดเห็นย่อหน้า

เข้า สู่ ระบบ