ดาวน์โหลดแอป
100% भक्षक : एक रहस्य / Chapter 2: चैप्टर २

บท 2: चैप्टर २

अँधेरी रात में एक व्यक्ति अपने बाइक से मानिकपुर के सुनसान रास्ते को पर कर रहा था | अरविन्द अपने मोटरबीके से गाना गुनगुनाते हूए आगे बड़े जा रहा था | वो ऑफिस के बाद अपने घर जा रहा था | वो हर रोज़ इसी रास्ते से जाता था | उसकी बाइक का पहिया एक काली राशि में फस गया था और अरविन्द गाड़ी से जोर से ज़मीन पर गिर पड़ा | उसके सर से खून बहने लगा था | "अह्ह्ह! अह्ह्ह!" अरविन्द दर्द से कर्राहा रहा था | जब वो ईश्वर के द्वार जाने ही वाला था तभी उसने एक वृद्ध औरत को उसके सामने आते हूए देखा | बुढ़िया ने लाल शॉल पहन रखी थी। उसकी पीली भूरी त्वचा झुर्रियों से भरी थी। उसने कानों में चांदी की बालियां, कलाइयों में चांदी की चूड़ियां और गले में चांदी के आभूषण पहने थे। वह एक लकड़ी की छड़ी ले जा रही थी, जिस पर 4-5 बच्चों की खोपड़ी बंधी हुई थी और उसके सिरे पर लटकी हुई थी। उन्होंने काले और लाल के रंग का पैटर्न वाला गाउन पहना था। अरविन्द ने उसकी टांगों को देखा। उसके पीले पैर और नुकीले लंबे नाखून थे। उसने अपने दोनों पैरों में चांदी का कड़ा पहन रखा था। उसने अपने पेट पर एक शॉल और एक छोटी थैली बांध रखी थी। वो औरत उसके सर पर जोर से अपनी छड़ी मरती हैं और वो मर जाता हैं | वो औरत एक काला भाभूत अपने एक पूछ से निकालती हैं और कुछ मंत्र बड़बड़ने लगी | जब उसने वो भाभूत उस मोटरबीके पे डाली तो वो अचानक जल पड़ी और ख़ाक में बदल गयी | वोह औरत बुरे इरादों के साथ मुस्कुराई और अरविन्द को उसके कॉलर के साथ खींचने लगी | वो भूढ़ी औरत उस आदमी को घसीट ते हूए अपने कुतिया में ले गयी थी | उसके गार में तंत्र-मंत्र और जाडू-टोना वाले बोहोत चीज़े रखी हुई थी | वो उसे एक टेबल पर लेता देती हैं और फिर वापस एक अजीब मंत्र फुसफुसाने लग जाती हैं | एक घणा धुँआ उस कमरा में फैलने लग जाता हैं | उस औरत की हात से एक काली रोशनी निकलने लग जाती हैं | पर तभी वो काला धुँआ गायब हो जाता हैं | "नहीं! नहीं!" वो औरत ने जोर से चिलाय | एक तेज़ हवा आयी और वो भूड़ी औरत उस कमरे के छत से टकरा गयी | "ओह! फिर से नहीं!" वोह औरत नाराज़गी के साथ उस शव को देखने लगी | वो अपने पैरो पर वापस खड़ी हूए और अरविन्द के शव को उसके बालो से खींचने लगी | और कितना इंतेज़ार करना पड़ेगा मुझें? मेरी सारी मेहनत बेकार जा रही हैं | मुझें अपनी खोज जारी रखनी होंगी | में जानती हूँ मुझें वोह आदमी जरूर मिल जायेगा!" वो औरत उस शव को आग लगा देती हैं और उसके शरीर को गुस्से से जलते है देखने लग जाती हैं | मानिकपुर के गांव में, लष्मी एक बूढ़ी औरत अपने बीमार बछड़े लिए पानी भरने जा रही थी | उसने पीले रंग की सारी पहनी हुई थी | लक्ष्मी उसी कुएँ की तरफ आई थी जहा वो हमेशा आती थी | उसने उस बाल्टी को कुएँ में फेख दिया तभी उसने देखा की पानी में कुछ अजीब था | एक बैंगनी साया? एक आत्मा? भूत?

"वोह्ह्हह्ह्ह्ह? क-क्या क्या?" व-व-वो क्या था? " लक्ष्मी हड़बड़ते हूए बोली | वोह ज़मीन पर गिर गयी थी | वो साया आराम से उस कुएँ पर चढ़ रहा था | लक्ष्मी बोहोत डर गयी थी | वो वहा से दौड़ना चाहती थी पर उसके पर डर से जाम हो गए थे | लक्ष्मी अपने पैरों कर खड़ी हुई और आगे दौड़ पड़ी | जब वो थक गयी थी तब वो एक पीपल के पेड़ के आगे रुख गयी थी | अचानक उसने देखा की उस पेड़ की डाल पर वो डरावना साया बैठा होआ था और उससे देख कर मुस्कुरा रहा था | "प-प-पर वोह तोह अभी कुएँ में था अब यहाँ क-कैसे? वो इतने जल्दी इस पेड़ पर कैसे छाड़ गया?"

लष्मी वापस अपने पूरी ताकत से दौड़ने लगी | वो एक पत्थर की वजह से निचे गिर पड़ी | तभी उस साये ने उससे जकड लिया था | उसके बाड़े काले हवा में लेहेड़ा रहे थे | उसका सफ़ेद डरावना चेहरा ख़ुशी से चमक उठा | उसकी लाल आँखे गुस्से से लष्मी को घूर रही हैं और उसने अपना मुँ खोला और लष्मी को काट लिया | "अह्ह्ह्ह! मुझें छोड़ दो | दया करो मुझपर! कौन हो तुम? हैं ईश्वर बच्चा लो!"

लष्मी के आँखे धीरे धीरे बांद होने लगे | वो बैंगानी साया फिर एक काले दुवे में बदल कर गायब हो गया | लष्मी की लाश ज़मीन पर पड़ी हुई थी | काले कववें और भूरे गिद्ध उसके शव के उपर मंडरा रहे थे |

अयूष के सामने खड़े हुई लड़के ने गुस्से से कहाँ, "ये जो बकवास कहानी आप बता रहे थे ना | ये २० साल पहले की है | मुझे नहीं लगता की जो भी यहाँ २० साल पहले हुआ था वो वापस रिपीट होगा! ये भी कोई वजह कोई मानिकपुर से डरने की?"

वो सब वापस ट्रैन में चढ़ गए | वो वृद्धि आदमी अभी भी प्लेटफार्म से उनपर गुस्से से देख रहा था | ट्रैन की घंटी बाजी और ट्रैन वापस शुरू हुई | जब ट्रैन अगले स्टेशन पर रुख गयी थी, हर कोई बता सकता था की वोह जगह बोहोत शांत और सुनसान दिखाई दे रही थी | वो जगह बोहोत डरावने खाली समशान के तरह थी | उनका गाइड- विजय ने अपने हाथ में एक लालटेन पकड़ी हुई थी | विजय रुका हुआ था उन लोगों के लिए की कब वो आएंगे, और वो उन्हें अपने रिसोर्ट में जाने का रास्ता बता पायेगा |

विजय एक अधेड़ उम्र का आदमी था। उसका एक छोटा गोलाकार चेहरा, लंबी गर्दन थी और वह 5 फीट लंबा था। उन्होंने सफेद सादा कुर्ता और सफेद धोती पहनी थी। उसके छोटे काले बाल और तेज भूरी आँखें थीं। उसकी छोटी-छोटी मूंछें थीं और उसने अंदर भूरे रंग की शर्ट पहनी हुई थी। उसने रोशनी दिखाने के लिए अपना बायां हाथ उठाया था। उन्होंने अपना हाथ उठाया जिसमें चांदी की धातु की लालटेन थी। आयुष और उसके दोस्त ट्रेन के प्लेटफॉर्म की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। उसने उन सभी मंद रोशनी वाले चेहरों की ओर देखा और वह उन पर मुस्कुराया।

उन में से एक साड़ी पहनी हुई औरत ने कहाँ | "सागर तुम्हे नहीं लगता हमें यहाँ आकर बोहोत बड़ी गलती करदी है?"

सागर उससे देखकर मुस्कुराया | "ऐसा कुछ भी नहीं है पगली! हम यहाँ अँधेरे में पोहोचे है ना इसलिए तुम्हे ज्यादा डर लगा रहा है | सब ठीक होगा तुम चिंता क्यों करते हो?"

एक पर्पल ड्रेस पहनी होइ लड़की आये और बोली, "अरे! ये जो भी डरावनी बातें उस आदमी ने कहाँ वो सिर्फ हम सब को डराने को कहाँ था और तू डर भी गयी? जब हम कल रिसोर्ट से ब्यूटीफुल व्यू देखेंगे तब देखना तुम्हे अच्छा लगेगा! तब तुम्हे पता चलेगा की ये विलेज कितना ब्यूटीफुल है, दी!"

"अरे! मैडम आपको किसी भी चीज़ से डरने की जरुरत ही नहीं है! ये गांव बोहोत ही सुन्दर और अच्छा है | जब अब सुबह देखेंगी तब आपको पता चलेगी की हमरा गांव "मानिकपुर" कितना सुन्दर है! आपको को सुन्दर दृश्य बोहोत पसंद आएगा मैडम | अब आप लोग चलिए हम आपको रिसोर्ट में ले चलते है!"

विजय ने उन सबका लगेज पैक किया और बाकी के बैग्स को अपने घोड़ा गाड़ी में रख दिया | सब गाड़ी में बैट गए |

संध्या, अयूष, विद्या, सागर, प्रिया और अदिति पहले घोड़ा गाड़ी मे बैठ गए | वही विजय, रूद्र, राहुल, और वरुण दूसरे वाले में |

जैसे जैसे घोड़ा गाड़ी आगे बढ़ रही थी, अयूष ने अपना डी.एस.एल.आर कैमरा निकला और ख़ुशी से फोटो खींचने लगा | कुछ समय बाद दोनों घोड़ा गाड़ी रुख गए थे | एक बड़ी सुन्दर बिल्डिंग उनके सामने थी | "ड एम.एच.ई रिसोर्ट" का बोर्ड अँधेरे में चमक रहा था | सभी दोस्तों ने अपना बैग और सूटकेस उठाया और रिसोर्ट के रिसेप्शन डेस्क की तरफ चल पड़े | जैसा जैसे वोह आगे चल रहे थे उन्हों ने एक राज की मूर्ति देखीं | आगे चलते हुवे उन्हें एक खाली केबिन भी देखा |

"आदिति, क्या तुम्हे वो वैर्ड आवाज़ सुनाई दे रही है? वो उस खटारा रेडियो में से आ रहा है देखो? ऐसी लग रहा है कैंसर कोई हमें इस जगह पर रहना के लिए बुला रहा है?"

"क्या यार तुम भी ऐसा कुछ भी नहीं है | तुम्हे ये वहीम हो रहा है, आदिति यार!" प्रिया ने हस्ते हुए कहाँ |

"तुम ट्रेन में कौनसी किताब पढ़ रही थी पायल?" अदिति ने पूछा। "ओह! वो? वो किताब का नाम था "द वर्ल्ड ऑफ इंद्रिका" - लेख मोहक रोकाडे ने लिखी है!" पायल ने जवाब दिया। "ओह! तो ये कहानी किस बारे में है बताओ?" अदिति ने कहा। "ये रुद्र मेहरा के बारे में जो एक विज्ञान का छात्र है जो एक जादुई दुनिया यानी की इंद्रिका में चला जाता है और जादुई अकादमी में मौलिक जादूगर बनने की ट्रेनिंग देता है!"

"दिलचस्प! बहुत बढ़िया! मैंने लंबे समय से ऐसा कुछ कभी नहीं पढ़ा!"

"पायल, क्या तुमने इस किताब को पूरी पढ़ लिया है?" अदिति ने पूछा। "नहीं! अभी तक नहीं! लेकिन जल्दी ही खत्म करूंगी ..."

अदिति ने पायल से किताब ली और किताब के कवर पर नजर डाली। "ये कौन है लेखक मोहक रोकाडे?"

पायल ने कहा, "ओह! वो एक यंग राइटर है जिस ने 2 किताब लिखी है..."

"क्या? पर तुम तो सिर्फ मुझे इस पहली किताब के बारे में ही बताया है दूसरी कौनसी है?" अदिति ने कहा। "हा वो वली? दी वल्हाल्ला क्रॉनिकल्स! वो उस लेखक की दूसरी किताब है!"

"और वो क्या है भला?"

"उसकी दूसरी किताब ६ स्टेट्स पर आधारित है। वो पूरी काल्पनिक कहानी है। पर उसका मुख्य किरदार, आर्यन उर्वसा एक गरीब गाववाला है जो अपनी नियति से अंजन है! और वो जनता ही नहीं की वो वल-हल्ला का मसिहा है! प्लस, कहानी का खलनायक, कालकेय - रावण की तरह शक्तिशाली और चालाक है। अब कहानी वही है! अगर में तुम्हें ज्यादा बताऊंगी तो कहानी तुम्हारे लिए मजेदार नहीं होगी!" अदिति ने सहमति में सिर हिलाया। "मुझे तो मोहक पे बड़ा वाला क्रश है किसी को मत बताना!"

वे दोनों खिलखिलाकर हँसे।"अच्छा! अच्छा! किसी को नहीं बताऊंगी में पगली! पर बता ना ये लेखक मोहक की किताबें कह मिलेंगे?"

"ओह वो ... अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर अभी भी उपलब्ध है। में तो अब किताब पढ़ने जा रही है! तू मुझे गल्ती से भी मुझे परेशान मत करना, ठीक है?" पायल ने कहा।

"ओके बाबा! मैं फ्रेश होने जा रही हूं! तुम तब तक किताब पैड लेना और खाने का क्या है। वो भी देख लेना ठीक है?" अदिति ने कहा।

"हा! हा! ठीक है! तुम जां अदिति! अब तुम जाओ मुझे परेशान मत करो!"

दूसरे कमरे में, वरुण और रोहन बात कर रहे थे | "अरे! इस विजय गाइड को तोह १० मिनट से भी ज्यादा हो गए है! कहाँ है वो?" रोहन ने कहाँ |

"चलो उससे जा कर ढूंढ़ते है, ब्रो?" वरुण का शांनती से कहाँ | रोहन और वरुण कमरे के बाहर गए और विजय का पीछा किया | विजय रिसोर्ट के गार्डन में उस पुतले पर गौर से देख रहा था | "तुम यहाँ क्या कर रहे हो, विजय? क्या तुम वॉचमैन को ढूंढ रहे हो?" रोहन से जोर से कहाँ |

विजय उन लोगों की आवाज सुन कर डंग रहे गया था | रोहन ने देखा की विजय एक पुतले को देख रहा था | वो बिजूका एक इंसान की तरह ही दिख रहा था | अँधेरे में उस बीजूका की छवी भी डरावनी लग रही थी |

"मुझे नहीं ल-लगता वॉचमैन यहाँ पर है | चलिए वापस अंदर चलते है!" उस गाइड ने डरते हुए कहाँ | पर वरुण अपने चश्मे को एडजस्त करते हूए गौर से गार्डन को देख रहा था |

वही दूसरी और उस रिसोर्ट के अंदर वो वृद्ध आदमी संध्या के पास आ गया था | संध्या अपना सूटकेस उठा रही थी | उसने

बैंगनी रंग का वस्त्र पहना हुए था | उस आदमी का नाम "राकेश" था | राकेश संध्या के सामने खड़ा हो गया था |

"मैडम! आपलोग अभी भी यहाँ रखो हो? मेने आप से कहाँ था ना यही बोहोत खतरा है! अगर आप लोग इस रिसोर्ट में कुछ और देर रुके तो फिर कभी वापस जा नहीं पाएंगे | आप लोग हमेशा के लिए यही रह जाओगे वो भी जिंदा नहीं मुर्दा!"

संध्या गुस्सा से राकेश को घूरे जा रही थी | "जो भी में जानता था मेने आप सब को पहली ही बता दिया था | अब ये आप के मर्ज़ी है मैडम!"

अचानक पीछे से संध्या ने एक आवाज़ सुनी |

चौकीदार एक मोटा अधेड़ उम्र का आदमी था। उसकी छोटी काली आँखें और चील की तरह तेज लंबी नाक थी, उसकी मोटी काली मूंछें थीं। उन्होंने हरे रंग की टोपी पहनी थी। उन्होंने सफेद शर्ट के अंदर हरे रंग का स्वेटर पहना हुआ था। उन्होंने चंडी के रंग की धोती पहनी थी। वह गहरे रंग का आदमी था। वह एक काले रंग की लकड़ी की छड़ी लिए हुए था। वह संध्या को गुस्से से घूर रहा था। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उसकी मूंछें फूल गईं। उसकी नजर संध्या के सूटकेस पर पड़ी। वह अपनी काली चमड़े की चप्पल को ठंडी जमीन पर थपथपा रहा था।

"कौन हो तुम, छोरी? और यहाँ इतने रात में क्या कर रही हो?" उस वॉचेमेन ने ज़ोर से कहाँ | "ह-हम यहाँ पर वेकेशन के लिए आए हैं!" संध्या ने आराम से कहाँ | तभी टूरिस्ट गाइड विजय के साथ रोहन और वरुण वहा पर आ गए | विजय ने उस वॉचमैन को सब कुछ बता दिया | "अच्छा! ठीक हैं!" वॉचमैन ने विजय को कहाँ | "अरे, भाई! वो हमरे गांव में नये आए हैं! वो इस रिसोर्ट में ठहरे हैं | जरा उनके कमरों की चावी देना?"

विजय ने एक बाड़ी छवी निकली उस छवी के गुच्छो से जोह उस वॉचमैन ने उससे दी थी | विजय बड़े लोखंडी दरवाजे का ताला खोल रहा था | दरवाजे के धीरे से खुलते ही उसमें से डरावनी आवाजये आने लगी थी | ऐसा लग रहा थी की वो दानाव उनका इंतेज़ार लार रहा था | कररररररर! कररररररर! के साथ दरवाजा धीरे से खुल गया | वो सब अपनी आँखे फाड़ कर उस लोखंडी दरवाजे कोह देख रहे थे | विजय, टूरिस्ट गाइड भी खौफ के साथ उस दरवाजे को घूरे जा रहा था मानो अभी वोह दानाव उसमें से निकलेगा और उस सब पर झापत लेगा |


Load failed, please RETRY

ตอนใหม่กำลังมาในเร็วๆ นี้ เขียนรีวิว

สถานะพลังงานรายสัปดาห์

Rank -- การจัดอันดับด้วยพลัง
Stone -- หินพลัง

ป้ายปลดล็อกตอน

สารบัญ

ตัวเลือกแสดง

พื้นหลัง

แบบอักษร

ขนาด

ความคิดเห็นต่อตอน

เขียนรีวิว สถานะการอ่าน: C2
ไม่สามารถโพสต์ได้ กรุณาลองใหม่อีกครั้ง
  • คุณภาพงานเขียน
  • ความเสถียรของการอัปเดต
  • การดำเนินเรื่อง
  • กาสร้างตัวละคร
  • พื้นหลังโลก

คะแนนรวม 0.0

รีวิวโพสต์สําเร็จ! อ่านรีวิวเพิ่มเติม
โหวตด้วย Power Stone
Rank NO.-- การจัดอันดับพลัง
Stone -- หินพลัง
รายงานเนื้อหาที่ไม่เหมาะสม
เคล็ดลับข้อผิดพลาด

รายงานการล่วงละเมิด

ความคิดเห็นย่อหน้า

เข้า สู่ ระบบ