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94.73% बावळा / Chapter 18: 18

บท 18: 18

बावळा आज बहुत खुश था. उसके जीवन का अनमोल दिन था. बावळा अपने चेहरे पर अपनी ख़ुशी के भाव नहीं लाना चाहता था किंतु उसके चेहरे की रौनक साफ़ झलक रही थी. रात होते-होते घर पहुँच गए. घर पर सुमन ने खाना तैयार कर रखा था. तिलमिलाई सुमन ने झटके से दरवाजा खोला और रसोई में चली गई. बावळा सुमन के व्यवहार को पहचान गया था. उसका चेहरा गुस्से से लाल था. किंतु बावळे को उससे कोई लेना देना न था. उसने सुमन की तरफ ना तो देखा ही ना ही उचित समझा.

सखी आज बरसों बाद सुकून की नींद सोई थी. सुबह सुमन ने चाय के लिए आवाज दी तो सखी की आँखे खुली. आज की सुबह उसके लिए नई सुबह थी. उसने अलसाई निगाहों से सुमन को देखा. सखी मुस्कुराई और चाय पीने लगी. सुमन उसकी कुटिल मुस्कान को समझ गई थी पर कर भी क्या सकती थी.

एक स्त्री अपने पति के बदले रूप और उसके जीवन में आई स्त्री के विषय में तुरंत भांप जाती है पर लोक मर्यादा या इज़्ज़त की वजह से वह कुछ भी बोलती नहीं है या बोलना नहीं चाहती है. आज शाम को सखी परिवार सहित अहमदाबाद चली गई.

अगले दिन बावळा ऑफिस चला गया. सुमन ने आशा को फ़ोन कर अपने दिल का दर्द बताया व बावळे को समझाने का कहा. आशा जानती थी बावळा सखी को बहुत प्यार करता है. वह ना तो उससे कभी दूर हो सकता फिर भी आशा ने बावळे से बात की, हाल-चाल पूछा. साथ ही ताना भी मारा कि सखी के आने के बाद उसके सुप्रभात का जवाब भी देना उचित ना समझा. बावळा बहाने बनाने लगा. आशा ने ज्यादा कुछ ना कहा बस सुमन की नाराज़गी को दूर कर उससे सुलह की बात अवश्य कही.


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