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100% काशी बनारस की खूबसूरती / Chapter 5: ५. चित्रा का असली मकसद

บท 5: ५. चित्रा का असली मकसद

कीर्ति बोली, " शिवांश भईया, में आपको शुरू से बताती हूं। "

इतना बोल कीर्ति अपने अतीत के यादों में चली गई।

कीर्ति अपने कमरे में आराम कर रही थी। उसके बगल में उसका फोन चार्जिंग पर था। तभी उसकी फोन की घंटी बजने लगी। घंटी की आवाज़ से कीर्ति की नींद खुल गई। वो Phone लाते हुए बड़बड़ाई, " पूरी नींद खराब करदी। "

जब उसकी नज़र फोन की स्क्रीन पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए। वो मन ही मन बोली, " रुद्र की दादी मुझे क्यों कॉल कर रहीं हैं ? उनकी तो तबियत खराब थी, तो वो मुझे क्यों कॉल कर रहीं हैं ? " यही सब सोचते हुए उसने कॉल पीक किया और बोली, " प्रणाम दादी, कैसी हैं आप ? "

फोन के दूसरे तरफ करिश्मा सिंह की घबराई हुई आवाज़ आई, " प्रणाम बेटा, तुम जल्दी से यहां आजाओ हवेली में। "

कीर्ति हैरानी से बोली, " क्या ! हवेली में ! पर क्यों ? और एक बात, आप हवेली में है क्या ? "

" हां बेटा, हम हवेली के बाहर हैं। रुद्र मुसीबत में हैं। उसे तुम्हारी मदद चाहिए। " करिश्मा सिंह की घबराई हुई आवाज आई।

कीर्ति को यकीन हो गया था की रुद्र के घर से जो Call आया था वो एक साजिश थी और वहां से जो भी बोला गया था वो सब झूठ था। लेकिन फिर भी उसने करिश्मा से पूछा, " क्या ! रुद्र मुसीबत में है ! लेकिन आप तो Hospital में थीं, आपका Accident हुआ था, तो आप वहां कैसे ? "

" बेटा, तुमने जो भी सुना, वो सब झूठ था। हम बिलकुल ठीक हैं, हमें कुछ भी नहीं हुआ है। "

" आपने कहा की रुद्र मुसीबत में है, क्या हुआ है ? "

" सुनो बेटा। " उसके बाद करिश्मा ने कीर्ति को सब कुछ बताया जो कुछ भी हवेली में हुआ था। जब कीर्ति ने ये सब सुना तो उसे गुस्सा आगया। लेकिन फिर भी वो अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए बोली, " ठीक है दादी, आप चिंता मत कीजिए, में अभी पहुंचती हूं हवेली मे। " इतना कहकर उसने Call Cut किया और फिर अपने Car की Keys लेकर वो Room से बाहर निकल गई। बाहर आकर उसने Room ke Door को वापस Lock कर वो घर से बाहर निकल गई। उसके पूरे शरीर मे उसे दर्द महसूस हो रहा था। लेकिन फिरभी वो रुद्र केलिए अपना सारा दर्द भूल कर जा रही थी। बाहर निकल कर वो अपने White Farari के पास खड़ी हो गई। Car को Unlock कर वो Door Open कर अंदर बैठ गई और वहां से निकल गई। उसे जाते हुए देख आनंद जी और सुनीता सोचने लगे, " ये लड़की फिर कहां चली गई ! "

कुछ देर की Drive के बाद वो हवेली पहुंच गई। जब वो गेट के पास पहुंची तब वहां खड़े दो आदमी कीर्ति को देख गेट खोल दी। कीर्ति कार को उनके पास रोकते हुए बोली, " किसीको अभी पता नहीं चलनी चाहिए की में यहां आई हूं। "

" बड़ी मालकिन! "

" उनके बारे मे भी मत बताना। "

" ठीक है। "

फिर कीर्ति अंदर चली गई। अंदर उसने गैरेज मे जाकर गाड़ी पार्क की और फिर वो बाहर निकल गई। जब वो गाड़ी गैरेज के अंदर लेकर जा रही तब उसने देखा था की राधा बाहर लगे आम के पेड़ के पास सीधा खड़े होकर कुछ कर रही थी। कीर्ति उसे ५ मिनिट से लगातार नोटिस कर रही थी, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो कीर्ति से बहुत दूर खड़ी थी। अब पास तो जा नहीं सकती थी, दूर से ही उसे पता लगाना था। वो वहां खड़े हो कर क्या कर रही थी वो तो पता नहीं चल रहा था, इसीलिए कीर्ति थोड़ा और आगे जाकर उसे गोर से देखने लगी। देखने पर पता चला की वहां कोई राधा की हाइट का राधा के जैसा पतला दुबला सा कोई खड़ा था। जब कीर्ति ने थोड़ा आगे जाकर देखा तो उसके नज़रे खुद बर खुद वहां से हट कर इधर उधर देखने लगे। तभी गार्डन का माली कीर्ति के पास आकर चुपके से उसके कान मे बोला, " कीर्ति जी ! "

अचानक से किसका आवाज सुन कीर्ति घबरागयी। पर जब उसने पीछे मुडकर देखा तो वहां माली रतन खड़ा था। कीर्ति उसे गुस्सा दिखाते हुए बोली, " अबे रतन, तेरा बचपन का आदत अभी तक गया नहीं न! "

" क्या करें कीर्ति जी, हर कोई अपने आदत से मजबूर होता है। "

" चुप, पहले तो तू मुझसे दूर खड़े रह। मुझे एक बात बता, तेरे तरह हर कोई यहां बेशरम है क्या ! "

" आप राधा की बात कर रहीं है न ? "

" हूं, उसीकी बात कर रही हूं। क्या ये बेशर्मों के तरह खड़ी हो कर लड़के के साथ मज़े कर रही है ! " इतनी बड़ी हवेली में उन्हें जगह नहीं मिली जो वो आम के पेड़ के नीचे कर रहें हैं ! "

फिर कीर्ति को याद आया की वो यहां किस काम से आई थी। वो रतन को बोली, " रतन जो बोलना हो बाद में बोलना। मुझे अभी हजारों सवाल मत पूछना। मुझे जरूरी काम है, में जा रही हूं। " इतना कह कर कीर्ति उसके बातों को अनसुना कर वहां से चली गई। रतन अपने आप से बात करते हुए बोला, " कीर्ति जी को हमेशा काम ही रहता है। सुना था की इन्हे चोट लगी थी, लेकिन चोट लगने के बावबजूद वो यहां भागते हुए आई हैं। आखिर ऐसा क्या जरूरी काम है ? छोड़ो, हमें क्या, बड़े लोगों की बड़ी बात। " यही सब बड़बड़ाते हुए वो वहां से चला गया। इस तरफ कीर्ति करिश्मा को ढूंढ रही थी। कुछ देर की मेहनत के बाद उसे करिश्मा दिख गई जो खिड़की के पास छुपी हुई थी। वो करिश्मा के पास जाकर फुसफुसाते हुए बोली, " दादी ! "

" कीर्ति बेटा, तुम ! हम तो दर ही गए थे। "

" हां, में हूं। आप डरिए मत। आपने मुझे यहां तो बुला लिया। पर अब क्या करना है ? "

" सुनो बेटा, हम उनके झगड़े के बीच में सही मौका देख अंदर एंट्री लेंगे। ठीक है ? "

" हां, ठीक है। "

कीर्ति अपने यादों से बाहर आते हुए बोली, " उसके बाद जो भी हुआ वो सब तो आप लोग जानते हैं। "

शिवांश बोला, " कीर्ति, तुम्हारी कहानी तो हम लोगों ने जान लिया। पर दादी हवेली में किसी पहुंची और तबियत खराब होने का क्या नाटक है कुछ समझ नहीं आ रहा। तुम जरा Details में बताओगी। "

" Ok, let me explain. रुद्र के आने के Just पहले ही दादी हवेली पहुंच गई। उन्होंने सोचा था की सबको Surprise देंगे। उन्होंने सारे Guards को Order दे कर खिड़की के पीछे छिप गई। उनके छिपने के Just बाद रुद्र पहुंचा। दादी ने देखा की उसका मूड कुछ ठीक नहीं लग रहा था। तो उन्होंने सोचा की वो कुछ देर इंतजार करेंगी और घर का माहोल देख वो सही वक्त पर अंदर जाएंगी और सबको Surprise देंगी। पर उल्टा उन्हे ही Surprise मिल गया। उसके बाद जब रुद्र का झगड़ा शुरू हुआ तब दादी ने मुझे कॉल किया। और आगे की बात आप लोगों को पता है। "

" और ये तबियत खराब होने का क्या चक्कर है ? " शिवांश Curious होते हुए कीर्ति से पूछा।

" बताती हूं। आज सुबह मेरी मां से झगड़ा हो गई। बाद मे मां ने छोटी सी बात का बतंगड़ बनाकर सबको आंगन में इक्ट्ठा किया। फिर वहां रुद्र पहुंच गया। फिर मां ने गरम चिमटे से मेरी हाथ जला दी और फिर लात मारकर मुझे नीचे गिरा दिया जिससे मुझे चोट लग गई। फिर रुद्र ने गुस्से में मां को सजा दी और मुझे अपने गोद में लेकर रूम में आगया। फिर उसने मेरी पटी की। पटी के बाद वो नीचे गया मां को देखने केलिए। वहां से आकर वो Kitchen मे गया और पानी पीकर जब वो सीढ़ियों से आ रहा था, तभी चित्रा दी ने उसे Call किया और बोली की उनका फोन खो गया है तो आकर उनको उनकी फोन ढूंढने में मदद करे। पर जब रुद्र उनकी बात न मान कर उनसे मेरी चोट के बारे में बोला। इसी बात से चित्रा दी और रुद्र के बीच में झगड़ा हो गया। फिर रुद्र ने गुस्से से फोन रख मेरे पास आगया। रुद्र के घर न आने और फोन न ढूंढने पर और उनसे झगड़ा करने पर उन्हें बहुत गुस्सा आया। फिर उन्होंने अनुजा आंटी को बुलाया और उनके साथ मिल कर प्लानिंग किया की वो दादी की तबियत खराब होने की झूठी बात बता कर रुद्र को यहां बुलाएंगे और उसे मेरे खिलाफ भड़काएंगे। " कीर्ति थोड़ी रुकी और पास के टेबल पर पानी का ग्लास लेकर पानी पीने लगी। शिवांश ने फिर बोला, " मुझे पूरी बात समझ में आ गया। अगर में गलत न हूं तो चित्रा मुझे सच सच बता, तेरा मकसद रुद्र को कीर्ति के खिलाफ भड़काना था। ही ना ? "

चित्रा चुप खड़ी रही। वो सोच रही थी, " ये कीर्ति कितनी चालाक है ! इसने जरूर रुद्र के बातों से अंदाजा लगा लिया होगा मेरी प्लानिंग के बारे में। "

रुद्र कीर्ति के पास आकर बोला, " कीर्ति तुम Great हो। तुमने अंदाजा लगा कर चित्रा का असली मकसद पता कर लिया। मुझे पता था की तुम बहुत चालाक और समझदार हो। बातों से अंदाजा लगा लोगी। और एक बात, तुम्हे इतने चोट लगने के बावजूद तुमने मेरी मदद करने केलिए यहां तक आ गई। तुम्हारे जैसा दोस्त पाकर में बहुत खुश हूं। " रुद्र बोलते थोड़ा Emotional हो गया था।

कीर्ति के पास तो रूमाल भी नहीं था। और उसने चूड़ीदार ड्रेस भी नहीं पहना हुआ था की अपने दुपट्टे से रुद्र के होटों से निकले खून और आंसू को पोंछ सके। उसने तो प्लाजो और टॉप पहना हुआ था। उसने उंगलियों से रुद्र का आंसू पोंछ उसके होटों से निकले खून को साफ करते हुए बोली, " तुम्हारे जैसा दोस्त पाकर में भी खुश हूं। मुझे कितने भी चोट लगे हो या फिर में कितने भी टेंशन में रहूं, तुम्हारे मदद केलिए में हमेशा तैयार हूं। " कीर्ति खून साफ करने बाद फिर रुद्र को बोली, " रुद्र में चलती हूं। तुम बाद में आ जाना। "

" बाद में क्यों ! मुझे एबी चलना है तुम्हारे साथ। "

" ठीक है, चलिए। अंजना दी, शिवांश भईया, ध्रुव, मीरा, में आप लोगों से ठीक से बात भी नहीं कर पाई। फिर कभी मिलकर बात करेंगे। "

शिवांश कीर्ति के पास आकर उसे गले लगते हुए बोला, " कोई या नहीं कीर्ति, तुम जाओ हम फोन पर बात कर लेंगे। "

" हां कीर्ति, तुम जाओ। बातें तो होती रहेगी। " ये अंजना की आवाज थी।

ध्रुव और मीरा कुछ कहा तो नहीं सिर्फ इशारे से कीर्ति को बाय किया। उसके कीर्ति ने सबको प्रणाम किया और रुद्र को के साथ बाहर आ गई। दोनो रुद्र के B.M.W Car में बैठ निकल गए।


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