Baixar aplicativo
1.88% गीता ज्ञान सागर / Chapter 1: अध्याय 1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण (श्लोक 1 से 30)।
गीता ज्ञान सागर गीता ज्ञान सागर original

गीता ज्ञान सागर

Autor: MRK_story_Time

© WebNovel

Capítulo 1: अध्याय 1 कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण (श्लोक 1 से 30)।

श्रीमद् भागवत गीता यह वह ग्रंथ है जिसे बड़े बड़े महान लोगो को आपने जीवन में प्रेणना दी है

 

 

 

::::::::::::

 

श्लोक1

 

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 2

 

संजय उवाच

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।

आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

संजय बोले- उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखा और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 3

 

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्‌।

 व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे आचार्य! आपके बुद्धिमान्‌ शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 4,5और6

 

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌।

पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः॥

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌।

सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

इस सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र- ये सभी महारथी हैं।

 

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 7

 

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।

नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान हैं, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो-जो सेनापति हैं, उनको बतलाता हूँ।

 

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 8

 

भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।

अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा।

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 9

 

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं।

 

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 10

 

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌।

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 11

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें।

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 12

 

(दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन) 

 

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।

सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 13

 

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।

सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

 

इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 14

 

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।

माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

 

इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए।

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 15

 

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।

पौण्ड्रं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

श्रीकृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 16 

 

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।

नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाए।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 17 और18

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्‌! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए।

 

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::;::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 19

 

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्‌।

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्‌॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धार्तराष्ट्रों के अर्थात आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिए।

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 20एवं21

 

(अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग)

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः।

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः॥

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते। 

 

 

अर्जुन उवाचः 

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

हे राजन्‌! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए।

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 22

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌।

कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे॥

 

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख न लूँ कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिए।

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 23

 

 

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा।

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 24 और 25

 

संजय उवाचः

एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।

सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌॥

 भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌।

उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा कहे अनुसार महाराज श्रीकृष्णचंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा कर इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवों को देख।

 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 26

 

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌।

आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को, दादों-परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा।

 

 

:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

श्लोक 27

 

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌॥

कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌।

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

 

उन उपस्थित सम्पूर्ण बंधुओं को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। 

 

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 

 

 

श्लोक 28 और 29 

 

(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन ) 

 

अर्जुन उवाच

दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌॥

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति। 

वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते॥

 

 

हिंदी अनुवाद_

 

अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है।

 

 

:::::::::::::::::

 

श्लोक 30

गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते ।

न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः॥

 

हिंदी अनुवाद_

 

हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है, इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ।

 

::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

 


Load failed, please RETRY

Status de energia semanal

Rank -- Ranking de Poder
Stone -- Pedra de Poder

Capítulos de desbloqueio em lote

Índice

Opções de exibição

Fundo

Fonte

Tamanho

Comentários do capítulo

Escreva uma avaliação Status de leitura: C1
Falha ao postar. Tente novamente
  • Qualidade de Escrita
  • Estabilidade das atualizações
  • Desenvolvimento de Histórias
  • Design de Personagens
  • Antecedentes do mundo

O escore total 0.0

Resenha postada com sucesso! Leia mais resenhas
Vote com Power Stone
Rank NO.-- Ranking de Potência
Stone -- Pedra de Poder
Denunciar conteúdo impróprio
Dica de erro

Denunciar abuso

Comentários do parágrafo

Login