Baixar aplicativo
20% काशी बनारस की खूबसूरती / Chapter 1: १. काशी की जिंदगी
काशी बनारस की खूबसूरती काशी बनारस की खूबसूरती original

काशी बनारस की खूबसूरती

Autor: Sara_2

© WebNovel

Capítulo 1: १. काशी की जिंदगी

बनारस शहर, कहने को तो ये महादेव की नगरी है पर यहां मोहब्बत जैसे हवाओं में बहती है। हर किसी का दिल एकदम खरे सोने सा है।

बनारस अपने घाटों के लिए, महादेव की भक्ति के लिए और महा आरती के लिए प्रसिद्ध है। मेरी नई कहानी भी यहीं से शुरू होगी और खत्म भी इसी बनारस के घाट पर होगी।

बनारस शहर, अस्सी घाट, सुबह का वक्त

ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है

जागो उठकर देखो, जीवन ज्योत उजागर है

बनारस अस्सी घाट पर बने महादेव का मंदिर जिसमें सुबह की शुरुआत इसी भक्ति गीत से होती थी। और सिर्फ एक ही आवाज़ इस बनारस शहर को जैसे खुद जगाती थी। और वो थी काशी। जी हां काशी। बनारस में रहने वाली एक लड़की जो दिखती है बिलकुल शांत, लेकिन असल में वो बिलकुल भी शांत नही है। एक तरफ वो अच्छे लोगों से बहुत अच्छे से पेश आती और उन्हें इज्ज़त देती, तो दूसरी तरफ गंदे और बुरे लोगों को पीटने तक को उतर आती थी। इसीलिए उससे कोई भिड़ने की कोशिश नहीं करता है। वो उन्हें इतनी बुरी तरीके से पिट ती थी की पूछो ही मत। जो भी काशी का शिकार बनता था वो तीन चार महीने तक हॉस्पिटल में पड़ा रहता था।

काशी महादेव की परम भक्त थी साथ ही साथ वो एक Business Women भी थी। उसकी ऑफिस राजस्थान में था।

( अरे ये तो काशी की आवाज़ है मतलब सुबह के चार बज गए।" पुजारी जी भी उठते हुए बोले। ) काशी सुबह के चार बजे ही महादेव की मंदिर आती थी। उसकी आरती की आवाज़ से ही बनारस के लोगों की भी सुबह होती थी।

सत्यम शिवम सुंदरम, सत्यम शिवम सुंदरम

सत्यम शिवम सुंदरम, सुंदरम

सत्यम शिवम सुंदरम, सत्यम शिवमसुंदरम ( ईश्वर सत्य है ) सुंदरम ( सत्य ही शिव है ) सुंदरम ( शिव ही सुंदर है )

सत्यम शिवम सुंदरम सत्यम शिवम सुंदरम.....

काशी आरती कर सबके तरफ आरती की थाल को दी, सूरज भी अब पूरी चमक के साथ निकल आया था। और लोगों की तादात भी बहुत बढ़ रही थी। वो सबको आरती देकर महादेव के मंदिर से बाहर आ गई।

काशी आरती कर मंदिर से बाहर आई ही थी की सामने से आते हुए मठ के महंत मिल गए....

वो अपने दोनों हाथों को जोड़ के शिष्टाचार के साथ प्रणाम करते हुए बोली, " प्रणाम महंत जी "

" आरती हो गई क्या बिटिया "

" जी हो गई हम बस घर ही जा रहे थे ऑफिस का थोड़ा काम है। "

" अरे हां जाओ बिटिया जाओ खुश रहो। " महंत जी आशीर्वाद देके आगे बढ़ गए।

दरअसल बात ये थी की काशी घर पर बैठ कर ही ऑफिस की काम करती थी। बस जब नया प्रोजेक्ट केलिए मीटिंग होती थी तब वो राजस्थान जाती और मीटिंग खत्म होने के तुरंत बाद वो बनारस वापस आ जाती। जो भी उसके साथ काम करता या उसके प्रोजेक्ट का हिस्सा बनता उसका जरूर फायदा होता। काशी की तरह कोई और भी था जिसके एक शब्द से पूरा राजस्थान हिल जाता। और वो था अभय प्रताप सिंह। वो राजस्थान का हुकुम सा होने के साथ ही अपने गुरुर और गुस्से के वजह से जाना जाता था।

महंत जी के जाने के बाद काशी भी घाट से होते हुए बनारस के गलियों में चली गई।

बनारस की गलियां तग जरूर होती है पर चहल पहल भी होती है।

यहां आपको सन्नाटा कभी मिल ही नहीं सकता, कभी कभी तो रात भी यहां की भोलेनाथ के नामों से गुंजायमान रहती है। काशी एक दुकान पर रुकी। दुकान का नाम था " शर्मा मिष्ठान भंडार "।

उसने दुकान पर बैठे एक मोटे से बूढ़े से आदमी से कहा, " काका प्रणाम, कचोरी और जलेबी बांध दीजिए जल्दी से "।

" अरे काशी बिटिया आगयी तुम , अरे तुम्हारी कचोरी और जलेबियां अभी हमने बांध के ही रखे थे और तुम देखो आ भी गई। ", ( ये थे दुकान के मालिक शर्मा जी ) यह बोल शर्मा काका ने कचोरी और जलेबी की थैली को उसके हाथ में पकड़ा दिया।

वो काका को पैसे देते हुए बोली, " धन्यवाद काका, चलते हैं, " काशी थैली ले कर घर पर आ गई।

काशी घर आकर आंगन में जूतिया उतार सामने बने तुलसी को हाथ जोड़ कर उस पर मंदिर से लाया हुआ फूल रख जैसे ही घर के अंदर गई, उसने देखा की उसके बाबा आनंद सिंह जी वहां बैठे हुए थे।

उसके बाबा उसके तरफ देख कर बोले, " आपको आने मैं इतनी देर क्यों हो गई ? कहीं आप किसी लड़के के साथ घूम कर तो नहीं आ रहीं ? " काशी मन ही मन सोची, " हां हां, में घर पर आई तो ये नहीं पूछा की काशी आप आ गई, आप ठीक है ? न पूछते तो भी ठीक। पूछा तो कुछ ढंका पूछ लिया होता। लेकिन नहीं देर हुई नहीं की झुठी इल्जाम लगा कर झुठी गलियां देना शुरू। बस इन दोनो को मुझे गली देने का मौका चाहिए। " यही सब बाद बड़ बड़ाते हुए और अपने बाबा को इग्नोर कर वो अपनी बहन पायल के कमरे की ओर जाने लगी। उसके बाबा उसे आंखे फाड़े कर देख रहे थे।

जब वो पायल के कमरे के बाहर पहुंची तो देखा की पायल दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुराए जा रही थी। काशी उसे इग्नोर कर कमरे के अंदर आई। उसने खाने की थैली को टेबल पर रख बोली, " मुस्कुराने में टाइम वेस्ट करने से अच्छा ये खा लो, " पायल पीछे से काशी को हग करते हुए बोली, " कीर्ति दी आप कितने अच्छे हैं। आपने मुझे आज फिरसे वो उबले हुए सब्जियों से बचालिया। थैंक यू कीर्ति दी।"

अब आप लोग सोच रहे होंगे की कीर्ति कोन है ? दरअसल काशी का असली नाम कीर्ति सिंह है। उसके परदादा उसे बचपन में काशी कहकर बुलाते थे। तो इसीलिए बनारस में लोग उसे प्यार से काशी कह कर बुलाया करते थे।

" ठीक है, मेरा तारीफ करना बंद करो, और चुपचाप खाओ " कीर्ति ने कहा।

" Ok दी " इतना कहकर पायल साइड पर पड़े दो कुर्सी ले आई। एक में वो बैठी और दूसरे कुर्सी में कीर्ति।

पायल खाते हुए बोली, " दी आपको आज कोई काम नहीं है, मतलब आपको तो अब तक मीटिंग शुरू कर देनी चाहिए थी। आप आज ऐसे शांत बैठे हैं। कुछ हुआ है क्या ? "

कीर्ति ने कहा, " नहीं ऐसी बात नहीं है, में बस सोच रही थी की मां बाबा कब सुधरेंगे ? मेरे शांत होने का फायदा उठाकर कुछ भी करते रहते है। मतलब मेरे ऊपर झुठी इल्जाम लगाकर गलियां बकने लग जाते हैं और कभी कभी तो थप्पड़ भी मर देते हैं बिना किसी अपराध के। मतलब कुछ भी ! "

पायल कीर्ति के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, " Don't Worry दी एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। उन्हें उनकी कर्मों की सज़ा ज़रूर मिलेगी। "

" और उन्हें सजा देगा कोन ? " कीर्ति ने पूछा।

" आपके रूप में महादेव उन्हें उनकी कर्मों की सजा देंगे। आप उनके बारे में सोच कर अपना दिमाग खराब न करें। आप जाएं और मीटिंग शुरू करें। Ok ? "

" Ok " इतना कहकर कीर्ति स्टडी रूम की ओर चल पड़ी। जाकर उसने लॉगिन कर प्रोजेक्टर पर मीटिंग शुरू कर दी।

मीटिंग के एक घंटे बाद वो स्टडी रूम से बाहर आई। वो किचन गई और फ्रिज से जूस निकाल कर पीने लगी। कुकिंग करते हुए सुनीता जो कीर्ति की मां थी वो बोली, " क्या कर रही थीं आप इतनी देर से ? "

" मीटिंग चल रही थी। " कीर्ति ने बिना किसी भाव से कहा।

" कोनसी मीटिंग चल रही थी ? " सुनीता ने पूछा।

" कोनसी का क्या मतलब ऑफिस की मीटिंग चल रही थी। " कीर्ति चिड़ते हुए बोली।

" अपनी मां से आप चीड़ कर बात कर रहीं हैं आपकी इतनी हिम्मत ? " इतना कह कर सुनीता ने उसे एक जोरदार तमाचा मार दिया।

कीर्ति के बाबा आनंद जी भी पहुंच चुके थे सुनीता के आवाज़ सुन। सुनीता अपने बाएं हाथ को उठादी कीर्ति को मारने के लिए। आनंद जी सुनीता को रोकने जा ही रहे थे और सुनीता थप्पड़ मारने ही वाली थी की तभी कीर्ति ने उसके हाथ को पकड़ लिया। और अपनी उंगलियों को उसने उसकी कलाई पर दबा कर कुछ इस तरीके से घुमाया की वहां हड़ियों की टूटने की आवाज के साथ ही सुनीता की चीख पूरे घर में गूंज उठी। अब सुनीता की कलाई के हड़ियां टूट चुकी थी।

" आगे से मुझे मारने की हिम्मत भी मत करना , इस बार हाथ तोड़ा है, अगली बार सीधा हाथ काट कर फेक दूंगी। समझ गईं आप ? " इतना कहकर उसने सुनीता की हाथ को झटक दिया और गुस्से से वहां से चली गई।

सुनीता दर्द से करहाते हुए बोली, " अब देख हम तेरे साथ क्या क्या करते है, तूने मेरा हाथ तोड़ा है न, हम तेरे हाथ को ही जला देंगे। " इतना कह कर जब वो शांत हुई तब आनंद जी उन्हें साहारा देकर हॉस्पिटल ले गए।

इस तरफ कीर्ति गुस्से में थी और वो पायल के कमरे की ओर जा रही थी। वहां पहुंच कर देखा तो पायल खड़ी हुई थी। वो कुछ परेशान सी नज़र आ रही थी। कीर्ति ने उसके तरफ देखते हुए कहा, " क्या हुआ इतनी परेशान क्यों हो ? "

" दी, मेने मां और बाबा की बातें सुनी थी, वो पता है क्या प्लान बना रहे थे ? "

" क्या प्लान बना रहे थे ? " कीर्ति ने क्यूरियस होते हुए पूछा।

" यही की वो..... "

" Oo.. ठीक है उन्हे जो करना है करने दो " इतना कहकर वो चुपचाप बैठ गई।

" पर दी, आपकी इसमें कोई गलती है ही नहीं तो आप सज़ा क्यों भुक्तोगी ? "

" कुछ नहीं होगा मुझे। तुम्हे क्या लगता है की में सज़ा भुगतने के लिए ऐसे ही तैयार हूं! तुम बस देखते जाओ क्या होता है आगे आगे। "

" क्या करने वाली हैं आप ? "

" कहा न तुम सिर्फ देखती जाओ, क्या क्या होता है। वैसे भी दस सेकंड्स के बाद यहां पर लोगों की भीड़ लग चुकी होगी। "

" क्या ? " पायल हैरान होते हुए बोली।

और सच में दस सेकंड्स के बाद घर के बाहर लोगों की शोर सुनाई देने लगी। पायल हैरान होते हुए बोली " वाह! दी , क्या अंदाज़ा लगाया है आपने तो ! "

" हां वो सब ठीक है। चलो बाहर चलते हैं। "

" हां " इतना कहकर कीर्ति और पायल कमरे से बाहर निकल घर का दरवाजा खोल बाहर आईं। लोगों के चीख सुन दोनों को लगा की अगर कुछ देर तक ऐसे ही शोर चलती रही तो उन दोनों के कान के परदे फट ही जायेंगे। तभी किसीने चुपके से एक बड़ा सा पत्थर उठाकर पायल और कीर्ति की तरफ फेंक दिया। सब लोग ये देख कर डर गए। लेकिन कीर्ति नहीं डरी। उसने देख लिया था की उनके तरफ किसीने पत्थर फेंका था। उसने अपने हाथ को दिखा दिया। जब पत्थर उसके हाथ पर लगा तब उसने अपने हाथों को घुमा कर उंगलियों को कुछ अजीब तरीके से पोज देकर जब रुकी तब जो पत्थर उसके हाथ में लगी थी वो फिर से यूटर्न लेकर उसके सिर पर जा लगा जिसने दोनों बहनों के ऊपर पत्थर फेंका था। उसने जानबूझ कर कुछ न जानने का नाटक करते हुए बोला, " कीर्ति जी आपने मुझे पत्थर क्यों मारा ? "

कीर्ति कुछ बोलने जा ही रही थी, की तभी किसीने उस आदमी को एक जोरदार लात मार दिया जिसके कारण वो हवा में उड़ते हुए सीधा कीर्ति के पैरों के सामने गिर जाता है।

कीर्ति ने भी उसके चेहरे पर एक जोरदार किक मार दिया जिसके कारण उसकी नाक टूट गई और चेहरा चिटियों के बनाए हुए ढेर के ऊपर गिर जाता है। ढेर टूटने के कारण चिटियों को गुस्सा आ जाता है और उनकी पूरी ग्रुप उस आदमी के चेहरे पर टूट पड़ी।

कीर्ति उसे इग्नोर कर उस सक्स के तरफ देखने लगी जिसने उस आदमी को लात मारा था। वो खुश होते हुए बोली, " रुद्र तुम, यहां अचानक कैसे ? तुम न जब भी आते हो हीरो के तरह धमाकेदार एंट्री के साथ ही आते हो। "

" जी मैडम जी, आपके वजह से हमें धमाकेदार एंट्री मारनी पड़ती है हीरो के तरह " रुद्र ने मजाक करते हुए कहा।

" क्या ? हमारी वजह से ? तुम्हारी खबर तो में बाद मे लेती हूं। "

" ठीक है, ले लेना खबर " रुद्र ने हस्ते हुए कहा।

कीर्ति ने उसे थोड़ी देर घूरा और फिर उसे इग्नोर कर वो उस आदमी के तरफ देखने लगी जिसकी हालत चिटियों के कारण खराब हो रखी थी।

कीर्ति उस आदमी को देखते हुए बोली, " बुरे कर्मों का बुरा नतीजा, जैसा कर्म, वैसा फल। "

ये सुनते ही भिड़ में से कीर्ति के मां बाबा सुनीता और आनंद जी बाहर निकले। कीर्ति को पता था की यही होने वाला था। रुद्र को ये समझने में तनिक भी देर नहीं लगी की ये भिड़ कीर्ति के मां बाबा के वजह से ही हुई थी।

सुनीता बोली, " Ooo... क्या बात कही है आपने तो। बुरे कर्मों का बुरा नतीजा। जैसा कर्म, वैसा फल। तो आपने जो कर्म किया है, उसकी सजा तो आपको भुगतनी ही पड़ेगी। "

रुद्र बोला, " कैसा कर्म और कैसी सजा ? कीर्ति इंसान है जानवर नहीं की जैसा मन चाहे वैसे करें आप लोग। "

सुनीता बोली, " अच्छा, तो ये बताओ की कौनसी बेटी अपनी ही मां के हाथ तोड़ देती है ? "

रुद्र कुछ बोलने जा ही रहा था की कीर्ति ने उसे रोक दिया। वो बोली, " रुद्र, शांत हो जाओ। ये हमारे घर का मामला है। और वैसे भी जो इंसान समझना ही नहीं चाहते उन्हें समझा कर कोई फायदा नहीं।

वो मुड़ी और सुनीता को देखते हुए बोली, " आप सज़ा देना चाहती है ना, तो ठीक है मैं आपकी हर सजा के लिए तैयार हूं "।

सुनीता हंसते हुए बोली, " ये हुई ना बात, चलो आप सज़ा के लिए तैयार तो हुई। आप हमारी बेटी है, तो हम आपको एक छोटी सी सजा देंगे। ज्यादा बड़ी नहीं। "

कीर्ति चिड़ते हुए बोली, " तो दें। जो करना है जल्दी करें। आपके तरह हर कोई फालतू नहीं बैठा होता है। "

सुनीता हस्ते हुए बोली, " ठीक है। " इतना कहकर वो घर के अंदर घुसी। किचन में जाकर लोहे के चिमटे को गरम करने लगी। वो चिमटा गरम होने के बाद बिलकुल लाल दिख रहा था। पूरे दस मिनट के बाद सुनीता बाहर आई। उसके हाथ में पकड़ा चीज़ देख हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए। सुनीता के हाथ में कुछ और नहीं बल्कि वो गरम किया हुआ चिमटा था।

वो कीर्ति के पास आई और बोली, " आप समझ ही गईं होंगी की हम आपको क्या सजा देने वाले हैं। तो आप तैयार हैं ? "

" हां, हम तैयार है। " कीर्ति ने बिना किसी भाव से कहा।

" तो ठीक है। स्टार्ट एक, दो, तीन " इतना कहकर सुनीता ने उस गरम चिमटे को कीर्ति के हाथ पर रख देती है। कीर्ति ने अपने आंखे दर्द के कारण बंद कर दिया। सुनीता को ये देख कर बड़ा मजा आ रहा था। दस सेकंड के बाद जब सुनीता देखती है की कीर्ति हार नहीं मान रही तो, उसे गुस्सा आने लग जाता है। गुस्से से उसने चिमटे को कीर्ति के हाथ पर दबाने लग जाती है। कीर्ति को बहुत ज्यादा दर्द होने लग जाता है। वो अपने आंखो को दबा देती है। ज्यादा दर्द होने के कारण उसके बंद आंखों से आंसू टपक पड़ते हैं। उस केलिए दर्द सहना बहुत मुश्किल हो रहा था। दर्द के कारण उसके मुंह से करहाते हुए एक आवाज निकलती है, " हर हर महादेव "। ये सुन कर रुद्र को बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाता है। वो गुस्से में जाकर सुनीता के हाथ से चिमटा छीन कर उसीके ही हाथ पर चिमटे को दबाने लग जाता है। सुनीता दर्द से चीखते हुए बोली, " आह, रुद्र क्या कर रहा है तू, नहीं छोड़ेंगे हम तुझे। "

रुद्र गुस्से से कहता है, " आप क्या छोड़ेंगी में आपको नहीं नहीं छोडूंगा। " इतना कहकर वो सुनीता को खींचने लग जाता है। जब वो सुनीता को खींच रहा था, तब सुनीता ने खड़े कीर्ति के पैर में एक लात मार देती है। जिसके कारण कीर्ति नीचे गिर जाती है। गिरने के कारण उसके हाथ पैर में चोट लग जाती है। ये सब देखकर रुद्र को बहुत ज्यादा गुस्सा आ जाता है। वो गुस्से से कांपने लग जाता है। उसके नसें बाहर आ जाती है। वो सुनीता को पास में पड़े कुर्सी में बैठा देता है और उसे रस्सी बांध देता है। और उस चिमटे को इसके हाथ में दबा कर वो अपने आदमी को बुलाता है जो बाहर ही खड़ा था और रुद्र का इंतजार कर रहा था। वो रुद्र के पास आता है और बोलता है " सर, ऑर्डर दीजिए। क्या करना है मुझे ? "

" इस चिमटे को पकड़ कर रखो। चिमटा इनके हाथों पर ही रहना चाहिए। "

" जी सर। " इतना बोलकर वो अपना काम करने लग जाता है। रुद्र सुनीता के करीब जाकर कहता है, " सजा तो में आपको ऐसे ही एक दो घंटे बिठाकर देना चाहता था। लेकिन आपके इन हरकतों के कारण मुझे मजबूरन आपकी सजा बढ़ानी पड़ेगी।

पायल जो इतनी देर से चुपचाप खड़ी थी और कीर्ति के गिरने पर उसके पास जमीन पर बैठ कर आंसू बहा रही थी, वो बोली, " अब क्या सजा होगी मां का रुद्र भईया ? "

" हर एक घंटे मे आकर मैं चिमटा ले जाकर उसे दस मिनिट तक गरम करूंगा और फिर आकर इनके हाथ में चिपका दूंगा और ये ( रुद्र का आदमी ) उसे पकड़ कर रखेगा। "

" ये सब कब तक करोगे रुद्र भईया आप ? "

" जब कीर्ति बोलेगी तब तक। " ये सुन सुनीता डर से थर थर कांपने लगी।

रुद्र उसे छोड़ कीर्ति के पास आता है जो नीचे दर्द से तड़प रही थी। वो उसे अपने गोद में उठाकर घर के अंदर जाने लग जाता है। जाते जाते वो रुका और पीछे मुड़ कर भिड़ को देखते हुए बोला, " यहां पर जो होना था वो हो चुका है, अब आप लोग जा सकते है। " उसके बोलने के तुरंत बाद सारी भीड़ वहां से चली गई।


next chapter
Load failed, please RETRY

Status de energia semanal

Rank -- Ranking de Poder
Stone -- Pedra de Poder

Capítulos de desbloqueio em lote

Índice

Opções de exibição

Fundo

Fonte

Tamanho

Comentários do capítulo

Escreva uma avaliação Status de leitura: C1
Falha ao postar. Tente novamente
  • Qualidade de Escrita
  • Estabilidade das atualizações
  • Desenvolvimento de Histórias
  • Design de Personagens
  • Antecedentes do mundo

O escore total 0.0

Resenha postada com sucesso! Leia mais resenhas
Vote com Power Stone
Rank NO.-- Ranking de Potência
Stone -- Pedra de Poder
Denunciar conteúdo impróprio
Dica de erro

Denunciar abuso

Comentários do parágrafo

Login