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33.33% hindi kahani / Chapter 1: अंजान आदमी

章 1: अंजान आदमी

"क्या में अंदर आ सकता हूं" सुनील ने जेसे ही दरवाज़ा खोला तो बहार खड़े चाचा ने कहा, "चाचा आप ही का तो घर हें, आप के सिवा मेरा इस दुनिया मे हें ही कोन?" सुनील ने चाचा की बेग उठाते हुए कहा और हसते हसते दोनों घर में आ गये.

सुनील ने सोफा दिखाते  कहा "चाचा आप यहा बेठे में पानी लेके आता हू" "ठीक है बेटा" कहते हुये चाचा बेठे, सुनील पानी लेके आया " चाचाजी पानी" सुनील ने चाचा को पानी देते हुए कहा," कब तक तू पानी पिलाएगा" चाचा ने पानी पी कर ग्लास टेबल पे रखते हुये कहा,सुनील ने कहा चाचा जी अब घर मे अकेला ही तो हू ममी पापा के कार एक्सिडेंट के बाद" दुःखी स्वर मे," तू चिंता मत कर में तुझे अकेला नहीं रहने दुगा" चाचा ने हसते हुये कहा " तेरी सादी करने के लिए ही मे यहा पे आया हू. "

   सुनील ने बात बदलते हुए पूछा " चाचाजी आने मे कोई दिक्कत तो नहीं हुई? " " अरे तूने घर शहर से दूर लिया हें तो दिक्कत तो होगी ही ना, मे बाजू के घर मे चला गया था, अच्छा हो तेरे पडोसी का उसने बताया कि तू यहा पे रहता हें"

चाचाने  हसते हुये कहा." पड़ोस में राकेश रेहता हें वो भी मेरी तरह अकेला ही रेहता हें " सुनील ने कहा, चाचा के आने से सुनील बेहद खुश था. हो भी क्यू ना आखिर इतने बड़े घर मे अकेला जो रेहता था, अकेलापन काटने को दोड़ता था.

" चाचाजी मेरा ऑफिस यहा से नज़दीक ही है इसी लिए यहा पे घर लिया हें" सुनील ने चाचा को देखते हुये बोला, चाचा ने कहा" ऑफिस से कुछ दिन छुट्टी रखदे तेरी शादी के लिए लडकी  देख ने जाना हें"  "इतनी जल्दी क्या हे?" सुनील ने शर्माते कहा, "अच्छी लड़की हें तू देख लेना पसंद आये तो सादी कर लेना " चाचा ने समझाते हुए कहा, सुनील ने कहा  " ठीक हें"

सुनील ने ऑफिस से छुट्टी लेलि और चाचा के साथ गांव मे लड़की देखने चला गया ," आइये बैठिए " लड़की के  पापा  ने सुनील और चाचाजी को कहा सुनील और चाचा खटिया पर बैठ कर लड़की का इंतजार कर ने लगे सुनील सोच रहा था चाचा जी कहा पे लड़की दिखाने लाए हें, इसके बाप को देख कर तो लगता हें लड़की काली और मोटी होगी, लगे भी क्यू ना वहाँ का नजारा कुछ एसा था, दो कमरों का छोटा सा घर था, उसके पिता खुर्शी पर बेठे थे लगता था खुर्शी अभी टूट जाएगी और उसके पिता का रंग इतना कला था कि कोयला भी उसके सामने सफेद नजर आये.

" अरे वर्षा चाय लेके आना" लड़की के पिता ने आवाज लगाई, सुनील सोच रहा था ना जाने केसी दिखती होगी, वर्षा को आते सुनील ने देखा और वो चौक गया, जितने उसके पिता काले उतनी ही वो सफेद थी, उसकी काया पतली ना मोटी थी, हरे रंग की सारी मे किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी, भारतीय नारी की तरह ही उसका देह था, सुनील ने चाय पीते पूछा "आप क्या करती हें?" "अभी कॉलेज पास किया हें" चाचा समज गये थे सुनील को लड़की पसंद है

उन्हों ने रिसता पक्का कर दिया, लड़की के पिता गरीब थे और सुनील भी सादी मे कोई तामजाम नहीं चाहता था सादे तरीके से दोनों की सादी हो गई, और दोनों सुनील और वर्षा शहर आ गए  वर्षा ने घर की जिम्मेदारी सम्भाल ली थी और दोनों खुश थे. "तुम ने मेरी लाइफ में आके जिंदगी बदल दी हें वर्षा, मुझसे कभी जुदा ना होना" वर्षा को अपनी बाहों मे लेते हुए सुनील ने कहा "मे बेहद खुशनसीब हु जो मेरी आपसे सादी हुई ही है" दोनों बेहद खुश थे, यू ही एक महीना बीत गया.

  सुनील ऑफिस गया था बाहर बारिस हो रही थी वर्षा ने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था और किचन मे खाना पक्का रही थी तभी एक  आदमी काला रैनकोट पहने घर के अंदर आ गया.

वर्षा किचन से बाहर आयी तो देखते ही चौक गई" कोन हो तुम?" डर कर बोली उसने अपना मुह ढका हुआ था, उसने मुह खोला वर्षा देखते ही उसके गले लग गई दोड़ कर फिर जाके दरवाज़ा बंद करके "तुम बेठो में पानी लाती हु", कह कर किचन से पानी लेके आयी, पानी पीकर आदमी बोला "तुम ने सादी कर ली, मेरा इंतजार भी नहीं किया?"  "तुम ने आने मे देर करदी तो मे क्या करती? " वर्षा ने उत्तर मे कहा,

" बेठो तुम भूखे होगे मे खाना लाती हू" वर्षा खाना प्यार से उसे खिलाती हें, खिलाते हुए कहती हें " कितने दुबले हो गये हों?, ठीक से खाना नहीं खाते हो".

दोनों को बाते करते करते समय का होश ही नहीं रहा वर्षा ने कहा" जाव सुनील के आने का समय हो गया" वो आदमी चला गया.

  दूसरे दिन वापस आया वर्षा ने कहा " तुम रहते कहा हो?"

उस आदमी ने कहा यहा "पास मे ही घर किराये पे ले लिया हें. " वर्षा ने कहा तुम रोज आओगे सुनील को पता चल गया तो? "उस ने कहा" नहीं पता चलेगा " " तुम्हें यहा का पता किस ने दिया?" "मे तुम से मिलने गांव ही आ रहा था, गांव से पता चला तुम यहा हो, तो मे यहा आके रहने लगा "" ठीक हें तुम दोपहर को यही खाना खा लेना "वर्षा ने प्यार से कहा,ऐसे ही एक दिन गुजर रहे थे.

राकेश ने सुनील को बताया "तुम्हारे घर रोज कोई आदमी आता हें" ये बात सुनकर सुनील को गुस्सा आया और राकेश के साथ झगड़ा कर लिया. पर सुनील अब वर्षा से दूर दूर रहने लगा,वर्षा से  बेहद प्यार कर्ता था इस लिए वो यकीन भी नहीं कर पा रहा था इस बात पर.

एक दिन ऑफिस से से सुनील जल्दी घर आ गया और उसने देखा तो वर्षा उस आदमी को खाना परोस रही थी, वर्षा चौक गई सुनील को देख के "आप जल्दी केसे आ गये आज" स्वस्थ होते हुए वर्षा बोली सुनील गुस्से में था "तुम ये गुल खिला रही हो मेरे पीठ पीछे, मेने तुमसे प्यार किया और तुम ने ये सिला दिया" सुनील ने गुस्से मे कहा वर्षा कुछ कहे उस से पहले उस आदमी ने कहा "उस को कुछ मत कहो, उसकी कोई गलती नहीं  है, में चला जाऊँगा फिर कभी नहीं वापस आऊगा" "तुम चुप रहो नहीं तो तुम्हारा में खुन कर दुगा" सुनील ने गुस्से मे चिल्लाते हुए कहा और वर्षा से पूछा" कोन हें ये आदमी"  "सब बताती हू" रोते रोते कहा, और कहने लगी "ये राजेश है, ये मेरा छोटा भाई हें,इसको दारू की लत लग गई थी, घर पे पिता के पास पेसे नहीं बचे थे इसको देने के लिए, तो ये चोरी करने लगा पीने के लिये और ये पकडा गया, इसे जेल हो गई, फिर मेरे पिता ने मेरी सादी आपसे करवा दी ये जेल से छूट के मुझसे मिल ने गाव आया, उसे पता चला मे यहा हू तो यही किराये पर घर ले लिया और रात मे नोकरी करने लगा इसे पता था आप ऑफिस जाते हें सुबह और रात को आते हें l, तो ये दिन मे मुझको मिलने आया मैने इसे कहा था, कि तुम रोज यहा पे खा लेना इसी लिये ये खाना खाने, और मुझसे मिलने आता हें" सुनील ने कहा" तो तुमने मुझे पहले क्यु नहीं बताया? " मुजे लगा मेरा भाई जेल से छुटा हें तो आप मुजे उसे मिल ने नहीं दो गे" वर्षा ने कहा, "अगर तुम मुजे बताती तो इसे अपने साथ ही रहने देते, राजेश को किराए पर रहने की क्या जरूरत थी, अब वो सुधर गया हे तो हमारे साथ ही रहेगा. सब ने एक दूसरे से माफी मागी और तीनों ने खाना खाया साथ मे फिर राकेश के घर गये.

"राकेश मे अंदर आ सकता हू" सुनील ने राकेश को दरवाजे पर कहा "सुनील तुम इस वक्त आव आव" राकेश ने कहा चारो सोफ़े पे बेठे थे, सुनील ने कहा " भाई तुम जो अंजान आदमी के बारे में कह रहे थे वो सच था, और वो कोई नहीं वर्षा का भाई राजेश ही था. और सब मिल के हसने लगे.


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