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3.27% मिस्टर सीईओ , स्पॉइल मी १०० परसेंट ! / Chapter 2: अब बूढी एवं कुरूप

章 2: अब बूढी एवं कुरूप

編集者: Providentia Translations

उसने उन सभी बातों के बारे में सोचा जो उसके 19 वसंत पूर्ण होने से पहले हुई थी। सभी भूली-बिसरी यादें पुनः उस तक लौट आईं।

उसे ये अहसास हुआ की शिया जिंगे का अतीत आसान नहीं रहा था, वह इतने दयनीय अंत की हकदार कतई नहीं थी।

एक समय था जब वह अपने परिवार की शान हुआ करती थी…. लेकिन अब… 

अनचाहे ही जिन विपरीत परिस्तिथियों का सामना उसे करना पड़ा था, उन्हें याद कर आँसुओं से उसका चेहरा भीग गया। 

"रोगी अभी भी मूर्छित है किंतु उसकी स्थिति में पर्याप्त सुधार है। उसके सिर पर हलकी चोट आई है , लेकिन एक -दो सप्ताह के आराम से वो फिर से चलने- फिरने लायक हो जाएगी। वैसे भी लंबे समय तक कुपोषण का शिकार होने के कारण अब उसे भरपूर पौष्टिक आहार की आवश्यकता है।" 

अस्पताल के उस कमरे में चिकित्सक ने मुबाई को जिंगे की शारीरिक अवस्था का विस्तृत ब्योरा दिया। 

उस सुगठित आदमी ने हल्की सी त्योरियाँ चढ़ाई। 

"यह कैसे सम्भव है कि जिंगे लम्बे समय तक कुपोषण का शिकार रही है! "

मुबाई ने जैसे ही जिंगे को देखने के लिए अपना सिर घुमाया उसी समय उसका ध्यान अपनी पूर्व पत्नी के बदहाल चेहरे पर लुढ़कते आँसुओं पर गया…..

वह चौंक गया और उसके अंदर मिश्रित भावनाओं का सैलाब उमड़ा।

"शिया जिंगे हमारे तलाक के बाद तुम ये कैसी ज़िन्दगी जीती रही हो? "

उसी दौरान, तेज़िन , जो कि मुबाई के बगल में ही खड़ी थी, भी अपने विचारों को पल्लवित करती हुई जिंगे को लगातार टकटकी लगा कर देखती रही। 

उसने उस महिला की तरफ देखा जिसके पास कभी मुबाई था, लेकिन आखिरकार उससे छीन लिया गया था; वह अत्यधिक प्रसन्न थी। जिंगे की दयनीय अवस्था का साक्षी बना उसका दिल बल्लियों उछल रहा था।

"शिया जिंगे, एक बार तुम मुझसे हार चुकी हो… अब जब कि तुम बूढ़ी और कुरूप हो तो तुम्हारी हालत और अधिक दयनीय हो जाएगी। तुम से निपटने के लिए अब मुझे शक्ति खर्च करने की कतई भी आवश्यकता नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस दयनीय अवस्था के चलते तुम बहुत जल्दी ही एक जूठन की तरह फेंक दी जाओगी।"

"आखिरकार, आकर्षक महिला और एक बूढी भिखारिन के बीच चुनाव करना किसी मूर्ख के लिए भी बेहद आसान है।" 

युवा और खूबसूरत जिंगे के प्रति तेज़िन शंकालु हो सकती थी लेकिन अब…. 

इन विचारों ने तेज़िन की मनोस्थिति को अत्यधिक प्रसन्नता से भर दिया कि वह अपनी पूर्व प्रतिद्वंदी के प्रति दयालुता से भर उठी। 

उसने मुबाई को स्पर्श करते हुए कोमलता से कहा," चिंता न करो मुबाई, मुझे पूर्ण विश्वास है कि जिंगे ठीक हो जाएगी। कैसा रहे यदि हम उसकी देखभाल के लिए किसी नर्स को खोज सकें या फिर बेहतर तो ये होगा कि हम उसे कुछ पैसे दे दें। मुझे विश्वास है की इस समय उसे सब से अधिक आवश्यकता पैसों की ही है"। 

मुबाई ने अपनी मंगेतर को देखा और हलके से सिर हिला कर हामी भरी। 

"मुबाई ! काफी समय हो चला है।आज रात हमें पारिवारिक भोज में भी सम्मिलित होना है और फिर उसके बाद अपने भावी विवाह संस्कार के बारे में भी विचार-विमर्श करना है। क्या अब हमें यहाँ से निकल नहीं जाना चाहिए, है न?" तेज़िन ने मुबाई का मन टटोलने के लिए पूछा।

मुबाई को अचानक तब ये अहसास हुआ कि वाकई ये सभी काम भी तो उसे करने हैं। 

अपने तलाक के बाद से उसने किसी नए जीवन साथी की खोज नहीं की थी किंतु "शी" खानदान का इकलौता वारिस होने के नाते उसे विवाह तो करना ही होगा ताकि इस खानदान के नाम को आगे बढ़ाया जाना सुनिश्चित हो सके।

तेज़िन से उसकी मित्रता बचपन से थी । समूचा शी परिवार उस से स्नेह करता था, निःसंदेह इसमें उसके आकर्षक व्यक्तित्व एवं बुद्धिमत्ता का भी योगदान था।अतएव मुबाई के तलाक के बाद से ही दोनों परिवार उन्हें विवाह सम्बन्ध में बाँधने की चेष्टा में निरंतर थे। 

तेज़िन से मुबाई को लगाव तो था किंतु वह उस से प्रेम नहीं करता था। इस सबके साथ यह भी तय था कि वह अन्य किसी युवती से भी प्रेम नहीं करता था। 

जिंगे से भी उसका विवाह प्रेम की परिणिति नहीं अपितु परिवार की सम्मति से हुआ था। उसकी दृष्टि में विवाह के लिए पत्नी के रूप में किसी का एक कन्या होने से अधिक कुछ भी महत्व नहीं था। इसके लिए उसे कोई भी युवती स्वीकार्य थी। 

उसकी ये उदासीनता जिंगे के साथ हुए असफल विवाह के बाद और गहरी हो गई थी। जब उसके परिवार ने तेज़िन से विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसने भावहीन उदासी के साथ स्वीकार कर लिया। आज दोनों परिवारों के इकठ्ठ डिनर में उनके विवाह कार्यक्रम की रूप रेखा पर विचार विमर्श होना था। 

बल्कि, इसलिए ही आज सुबह से वे दोनों कपड़ों की खरीददारी और विवाह समारोह के आयोजन लिए किसी उपयुक्त स्थल की व्यवस्था करने के लिए निकले हुए थे। 

कौन जानता था कि वे शिया जिंगे से टकरा जायेंगे, उसकी पूर्व पत्नी, जिस से वह पिछले ३ साल से नहीं मिला था। 

सच तो यह था कि उस ने एक बार यह कल्पना भी की थी कि वो परिस्तिथियाँ कैसी होंगी जब वे दोबारा मिलेंगे,लेकिन आज आकस्मिक जो हुआ वह उसकी काल्पनिक परिस्थितियों से ज़रा भी मेल नहीं खाता था।

क्या वह कभी शिया परिवार की नौजवान स्वामिनी नहीं हुआ करती थी !!इस शोचनीय दशा में वह कैसे पहुंच सकती थी ??


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