Unduh Aplikasi
50% Wah Stree Thi Ya Zinn / Chapter 3: EPISODE 02

Bab 3: EPISODE 02

... अपनी तरफ आती उस स्त्री को देखकर प्रतीत हो रहा था मानो वह भी तेज़ी से इस सुनसान अंधेरी गली को पार करना चाह रही हो! सफ़ेद साड़ी में लिपटी होने के कारण उसे अंधेरे में भी देख पाना आसान था।

अब मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ और शांत मन से आगे बढ़ता रहा।

तभी महसूस हुआ जैसे वह स्त्री बिल्कुल मेरे पीछे आकर खड़ी हो गयी हो और मुझे आवाज़ दे रही हो –"थोड़ा रुकिए।" 

मैं पीछे पलटा। सच में वह कुछ कहना चाह रही थी। बड़ी-बड़ी आँखें, चेहरे पर अजीब सा तेज–जैसे कोई अप्सरा हो!

सफ़ेद साड़ी मे खड़ी वह स्त्री अंधेरे को चीरती हुई अपनी एकमात्र उपस्थिति दर्ज़ करा रही थी।

मैने पुछ लिया – "जी कहिए, क्या बात है?"

जवाब मे उस स्त्री ने निवेदन किया कि "कृपया साथ–साथ चलिए। अंधेरा होने की वजह से मुझे डर लग रहा है।" 

तब पता चला कि हमदोनों की हालत एक जैसी ही थी। मैंने भी सहमति में अपना सिर हिला दिया। अब हमदोनों एकसाथ आगे बढ़े जा रहे थें। 

इतनी रात गए इस सुनसान गली में, वो भी अकेले घर से बाहर निकलने का कारण मैंने उस स्त्री से जानना चाहा। परन्तु कोई उत्तर ना मिला। फिर मैने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी।

कुछ पल के बाद जवाब आया। "मेरा घर पीछे मोड़ पर ही है। किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है, इसलिए मुझे अभी निकलना पड़ा। आप भले आदमी लगे, इसलिए मैं आपके पीछे-पीछे हो ली।"

किसी अंजान पर इतनी रात में भरोसा करने की बात सुनकर थोड़ा अजीब लगा। पर कभी-कभी जरूरत पड़ने पर ऐसा करना पड़ता है – मैं समझ सकता था। और...हमलोग साथ-साथ आगे बढ़ते रहें।

तभी उस स्त्री ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया। उसके हाथों में एक चमकती हुई अंगूठी थी।

"क्या है ये?"– मेरे मुंह से अनायास ही निकला।

"आप इसे पहन लीजिए। यह आपके काम आएगा। आपको डर-भय से ऊपर ले जाएगा और बूरी ताकतों से भी बचाएगा।"- उस स्त्री ने जवाब दिया। उसे साफ इंकार करते हुए मैने खुद को उस अंगूठी से दूर किया और थोड़ा पीछे खिसका।

"देखिए, ऐसा है कि मैं इन सब दक़ियानूसी बातों में यक़ीन नहीं करता। इसलिए बेहतर होगा की आप इसे मुझसे दुर रखें।" – मैने बेरुखीपूर्ण जवाब देकर उस अंगूठी को लेने से साफ इंकार कर दिया। पर एक बात गौर करने लायक थी कि मेरे इतने बेरुखी भरे रवैये के बाद भी वह स्त्री तनिक भी विचलित न हुई और बिल्कुल शांतचित्त होकर खड़ी रही। उसके साथ किए व्यवहार पर मुझे भीतर से आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी। हालांकि मुझे पता था कि मैने जो भी किया, सही किया।

गली भी अब खत्म होने वाली थी और पक्की सड़क मैं अपने सामने देख सकता था।

तभी वह स्त्री रुकी और मुझसे आगे बढ़ते रहने के लिए कहा।

"कुछ जरूरी सामान घर पर ही भूल गई हूँ, इसीलिए वापस जाना पड़ेगा।" – स्त्री ने मुझसे कहा और वापस गली के भीतर लौटने लगी।

उसके साथ चलकर मैने उसे घर तक छोड़ने की बात कही तो बड़ी विनम्रता से उसने मना कर दिया। तब एक-दूसरे से विदा लेकर हमदोनों अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ चलें।

घर आकर हाथ-मुंह धोया। पूरा बदन दर्द से दुख रहा था और शायद हल्का बुखार भी था। मेरे क़दमों की आहट से निर्मला भी जाग चुकी थी। मुझसे खाना खाने के लिए पूछा तो मैने मना कर दिया और उसे खाने को बोलकर बिछावन पर चला गया।...


next chapter
Load failed, please RETRY

Status Power Mingguan

Rank -- Peringkat Power
Stone -- Power stone

Membuka kunci kumpulan bab

Indeks

Opsi Tampilan

Latar Belakang

Font

Ukuran

Komentar pada bab

Tulis ulasan Status Membaca: C3
Gagal mengirim. Silakan coba lagi
  • Kualitas penulisan
  • Stabilitas Pembaruan
  • Pengembangan Cerita
  • Desain Karakter
  • Latar Belakang Dunia

Skor total 0.0

Ulasan berhasil diposting! Baca ulasan lebih lanjut
Pilih Power Stone
Rank NO.-- Peringkat Power
Stone -- Batu Daya
Laporkan konten yang tidak pantas
Tip kesalahan

Laporkan penyalahgunaan

Komentar paragraf

Masuk