समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था. सुमन और बावळे के जीवन में दूरी बढ़ती जा रही थी. लड़ाई-झगड़ा दिनचर्या का अंग बन गया था. मानसिक तालमेल तो दोनों का ही बिगड़ गया था. सास हमेशा बेटे का ही पक्ष लेती थी. ससुर ने घर के माहौल को सामान्य करने की पूरी चेष्टा की किंतु हालात सामान्य होने का नाम ही नहीं ले रहे थे. पति-पत्नी ने आपस में बातें करनी छोड़ दी थी. सखी इन सब बातों को जान चुकी थी. अब सखी बिना रोक-टोक के किसी भी वक्त बावाले के घर आ जाती और घंटों बैठी रहती. सब उसकी हरकतों को जानते थे और समझ भी रहे थे किंतु सब विवश थे. कुछ भी नहीं कर पाते थे. एक दिन तो हद हो गई, सखी बावळे के साथ बाते करती-करती उसकी गोद में सिर रखकर सो गई. सांझ होने पर भी सखी घर जाने का नाम नहीं ले रही थी. उसकी इस हरकत को देख सुमन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. वह अपने गुस्से पर काबू पाते हुए सखी को घर जाने का बोली. बेशर्म सखी ने कुटिल हँसी, हँसते हुए कहा
"आज तो वो यही रहेगी."
यह सुन सुमन ने सखी पर गालियों की बौछार कर दी. घर में भयंकर हंगामा हो गया. बावळे ने सुमन पर हाथ उठा दिया. पति द्वारा दूसरी औरत के लिए अपने ऊपर हाथ उठाते देख सुमन ने सखी के गाल पर जोरदार चांटा जड़ दिया. तिलमिलाती सखी बावळे की तरफ देखने लगी. किंतु बावळे ने बात का बतंगड़ न बन जाए यह सोचकर उसने आँखों से अपनी विवशता दिखा दी. सखी पैर पटकती हुई चली गई. यहीं से सखी और सुमन के पति के बीच दूरी बढ़ गई.