अब आगे
शाम का समय श्रद्धा अपने घर के गार्डन में बैठी हुई एक पेड़ को देख रही थी, उसे याद आ रहा था कि कैसे जब वह 17 साल की हुई थी तो उसकी मां ने उसके हाथों से इस पेड़ को लगवाया था, वहां पर बहुत सारे तरह-तरह के फूल लगे हुए थे वह सभी फूल उसने उसकी मां ने मिलकर प्यार से लगाया था उन दोनों को ही गार्डनिंग का बहुत ज्यादा शौक था, वह सभी चीज वह सभी पौधे वह सभी यादें देखते हुए वह चेहरे से मुस्कुराहट और आंखों में आंसू भर बैठी थी।
अचानक से उसे किसी के कदमों की आहट महसूस होती है जब वह मुड़कर देखती है तो सामने खड़े शख्स को देखकर उसके चेहरे पर ना तो कोई उदासी आती है ना ही कोई खुशी होती है वह अपना चेहरा फिर कर फिर से उन फूलों को देखने लगती है और कहती है अब क्या लेने आए हो यहां पर। वह शख्स कोई और नहीं बल्कि सिद्धार्थ था सिद्धार्थ ने श्रद्धा को देखा और उसकी तरफ कदम बढ़ाकर उसके पास ही ब्रेच पर बैठ गया, श्रद्धा ने ना तो उसकी तरफ देखा ना ही उससे आगे कुछ कहा वह चुपचाप बैठी अभी भी उन फूलों को देख रही थी तभी उसे अपने हाथों पर सिद्धार्थ के हाथ फील हुए।
उसने सिद्धार्थ की ओर देखा तो सिद्धार्थ ने कहा आई एम सॉरी श्रद्धा मैं उसे समय तुम्हारे पास नहीं था जब तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी, मुझे नहीं पता था कि इन दोनों मां के साथ ऐसा कुछ हो जाएगा अगर मुझे जरा सा भी एहसास होता तो मैं जरूर तुम्हारे पास होता मैं एक बहुत जरूरी काम के लिए जर्मनी गया था मैं जर्मनी मेरा जाना बहुत ज्यादा जरूरी था आज मैं तुम्हें वही बताने आया हूं, मैं जो बताने जा रहा हूं शायद तुम विश्वास ना करो लेकिन यह सच है, आज मैं तुम्हें अपनी मजबूरी बताऊंगा कि आखिर मैं क्यों जर्मनी गया था और उसे समय मैं तुम्हारे पास नहीं था।
वह कुछ आगे कहता है उसके पहले ही श्रद्धा ने कहा क्या तुम मुझ पर एक एहसान कर सकते हो, प्लीज रिक्वेस्ट है मेरी एक बात मान लो मैं लाइफ में तुमसे कभी कुछ नहीं मानूंगी, सिद्धार्थ ने उसकी तरफ देखा और कहां तुम जो चाहे वह मुझसे मांग सकती हो तुम बस एक बार कहो तो सही मैं तुम्हारी बात जरुर पूरी करूंगा आई प्रॉमिस, सिद्धार्थ बहुत ही उम्मीद भरी नजरों से श्रद्धा को देख रहा था लेकिन उसके आगे के शब्द सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है।
श्रद्धा ने अभी भी उसकी तरफ नहीं देखा था उसने सिर्फ इतना कहा कल सुबह 10:00 बजे सिविल कोर्ट में आकर डाइवोर्स पेपर साइन कर दो, अब बस हो गया मैं और नहीं झेल सकती, प्लीज ये सब अब ख़त्म कर दो। उसकी बात पर सिद्धार्थ ने कहा ये तुम क्या क़ह रही हो मैं यहाँ हमारे बिच सब ठीक करने आया हूँ और तुम.... उसने इतना हीं कहा था की उसकी बात क़ो श्रद्धा ने काट कर कहा, प्लीज अगर तुम चाहते हो कि मैं जिंदा रहूं तो मेरी यह बात मान लो नहीं तो कल मेरा फ्यूनरल कर देना।
मेरा फ्यूनरल कर देना,
ये बात सुन कर सिद्धार्थ की हिम्मत हीं नहीं हुयी की वो आगे श्रद्धा से कुछ भी कहे वो ये सब कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था लेकिन इस वक़्त वो श्रद्धा की कंडीशन समझ रहा था वह जान रहे थे कि श्रद्धा ऐसा में किस देश में अगर उसने श्रद्धा से कोई भी भैंस की तो कहीं श्रद्धा खुद को कोई नुकसान न पहुंचा दे इस तरह से उसने कुछ नहीं कहा धीरे-धीरे वहां से जाने लगा। उसके पीछे से श्रद्धा ने कहा कल 10:00 बजे प्लीज। सिद्धार्थ ने उसकी तरफ नहीं देखा बस हां मैं अपना सर हिला दिया और चला गया।
सिद्धार्थ अपने कर में बैठा और अपने घर को तेजी से ड्राइव करने लगा, कुछ देर बाद उसकी कार एक एक पहाड़ी पर रोकी और बाहर आकर वहाँ के किनारे पर खड़ा हुआ अचानक से वह अपने घुटनो के बल बैठ गया और जोर से चिल्लाया आआआआ............
उसकी आँखों से आंसू बहने लगे, लोग कहते है की मर्द रोते नहीं, ये सच नहीं है मर्द भी रोते है दर्द उन्हें भी होता है, दिल उनके पास भी होता है, आज सिद्धांर्थ का दिल भी चिंख चिंख कर रो रहा था लेकिन उसका दर्द अभी भी पूरी तरह से बाहर आने क़ो तैयार नहीं था, वो रो रहा था लेकिन अपना दर्द नहीं बया कर पा रहा था।
कुछ देर बाद उसने डिसाइड किया तुम डाइवोर्स चाहती हो न तों ये हीं सही, मैं भी सब खत्म करूंगा लेकिन अंत के लिए नहीं एक नई शुरुआत के लिए, एक ऐसी शुरुआत जिसमे कोई दर्द, कोई तकलीफ, कोई गलतफहमी नहीं होंगी, होंगी तों सिर्फ खुशियाँ और प्यार, जो भी तुमने दर्द सहा है सब का मरहम ऐसा होगा की तुम उन पलो क़ो कभी भी याद नहीं करोगी। सही कहा है किसी ने एक नई शुरुआत के लिए अंत होना जरुरी है।
तभी बारिश सुरु हो जाती है, सिद्धार्थ वहाँ पहाड़ी पर खड़ा भीग रहा था वही श्रद्धा अपने गार्डन में बैठी भीग रही थी।
बैकग्राउंड सॉन्ग
प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल, बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला?
इस प्यार में हों कैसे-कैसे इम्तिहाँ
ये प्यार लिखे कैसी-कैसी दास्ताँ
या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो, या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
(दोनों हीं एक दूसरे के लिए तङप रहे थे प्यार से एक दूसरे की पनाह चाहते थे लेकिन किस्मत और हालातो ने उन्हें ऐसे खड़ा कर दिया था की वो बस उस भीगी लकड़ी की तरह हो गए थे जो न तों जलती है न हीं बुझती है बस सुलगती रहती है।)
हो, प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल, बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला?
कैसा है सफ़र वफ़ा की मंज़िल का
ना है कोई हल दिलों की मुश्किल का
धड़कन-धड़कन बिखरी रंजिशें
साँसें-साँसें टूटी बंदिशें
कहीं तो हर लमहा होंठों पे फ़रियाद है
किसी की दुनिया चाहत में बर्बाद है
या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो, या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
कोई ना सुने सिसकती आहों को
कोई ना धरे तड़पती बाँहों को
आधी-आधी पूरी ख़्वाहिशें
टूटी-फूटी सब फ़रमाइशें
कहीं शक है, कहीं नफ़रत की दीवार है
कहीं जीत में भी शामिल पल-पल हार है
या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो, या-रब्बा, दे-दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो ना, दिलबर पे हो ना कोई असर
हो, प्यार है या सज़ा, ऐ मेरे दिल, बता
टूटता क्यूँ नहीं दर्द का सिलसिला? हो-हो
ना पूछो दर्द बंदों से
हँसी कैसी, ख़ुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है
कभी कैसी, कभी कैसी
हो, रब्बा
रब्बा
रब्बा, हो
हो, रब्बा
थोड़ी देर बाद बारिश रुक चुकी थी लेकिन दिल में हो रही आसुओ की बारिश का कोई थोर हीं नहीं था।
क्या सच में सिद्धार्थ और श्रद्धा का डाइवोर्स हो जायेगा, क्या अलग हो जायेंगे वो दोनों जानने के लिए
To be continued ❤️❤️❤️❤️
राधे राधे