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6.25% Heartless king / Chapter 2: सात साल पहले

Chapitre 2: सात साल पहले

दक्ष गुस्से मे,अतुल कों कॉल करता है।अतुल," हाँ!!! बोल!!!" अभी तुम दोनों मे केबिन आओ औऱ फोन काट देता है। अतुल फोन को घूरते हुए कहा, अब क्या हो गया इसे।अनीश उसके पास आ कर क्या हुआ, " तु ऐसे फोन को क्यों घूर रहा था जैसे ये तेरी गर्ल फ्रेंड हो औऱ अपनी दोनों भोंए उचका कर देखता है...।

" अगर तूने अब एक फालतू बकवास की ना अभी तेरा सर फोड़ दूँगा। पहले चल दक्ष गुस्से मे था औऱ बुलाया है हमदोनों को।"अनीश अपने मुँह बनाते हुए," हाँ ये ठीक है अभी साहब रोमांस मे रोमियो बने हुए थे औऱ अब हिटलर बन गए। "अतुल उसके गले को पकड़ कहता है अगर अब तु चुप नहीं हुआ तो दक्ष का पता नहीं मैं तेरा मुँह तोर दूँगा। " दोनों सीधे दक्ष के केबिन मे आते है। दक्ष खिड़की के पास खड़ा सोच रहा था।

" बोलो इतने गुस्से मे क्यों है ! ऐसा क्या हो गया तुझे ! अनीश भी उसके साथ मे, "हाँ!!!! बताओ अभी तो रोमियो बने हुए थे अचनाक से हिटलर क्यों बन गए ?अतुल उसकी बात सुनते हुए खुद से कहा," ये नहीं  सुधरेगा। "दक्ष ज़ब उनकी तरफ घूमता है तो उसकी आँखे गुस्से मे लाल थी। जिसके देख कर दोनों गंभीर हो जाते है औऱ उसके बोलने का इंतजार करते है।दक्ष कहता है," अतुल ! मुझे दीक्षा राय की पास्ट से लेकर प्रेजेंट तक की एक एक जानकारी चाहिए। एक भी जानकारी नहीं छूटनी चाहिए। तुम अनीश सात साल पहले होटल मे क्या हुआ था, उसकी जानकारी तुम मुझे दोगे।कल तक मेरे पास सभी जानकारी होनी चाहिए। दोनों एक साथ कहते है, "हो जायेगा। उसके बाद पूछते हैं, अचनाक क्यों दक्ष।"

दक्ष ने गहरी सांस लेते कहा, " .सात साल पहले, काका हुजूर औऱ दादा सा कहने पड़। हम तीनों दिल्ली गए थे। होटल गैलेक्सी। वहाँ हमारी मीटिंग करनी थी, मिस्टर रायचंद के साथ।

सात साल पहले, दिल्ली..

दक्ष  ज़ब गैलेक्सी होटल पंहुचा। उससे पहले ही अतुल औऱ अनीश ने उसके लिए वीआईपी रूम बुक करवा दिया था।प्राइवेट रूम मे,मिस्टर रायचंद अपनी दोनों बेटी कियारा औऱ मेघना रायचंद के साथ बैठा हुआ, दक्ष का इंतजार कर रहा था।मिस्टर रायचंद के  फोन पड़ एक प्राइवेट नं से कॉल आता है। उधर से कुछ कहा जाता है," इधर से रायचंद ने ठीक है हो जायेगा, इस बार सारी बाजी हमारे हाथों मे होगी। उसकी बेटी कियारा ने कहा , " डैड क्या आपने कभी दक्ष प्रजापति को देखा है। क्योंकि मैंने सुना है की वो बहुत खतरनाक है औऱ उसकी नजरों से कुछ नहीं छिप सका है आज तक। फिर हमने जो प्लान किया है वो काम करेगा।"रायचंद हॅसते हुए, " हाँ जरूर काम करगी बस तुम दोनों तय कर लो की कौन मिसेस दक्ष प्रजापति बनोगी। उनकी बात सुन कर मेघना कहती है, " डैड मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है दक्ष मे, मुझे तो पृथ्वी प्रजापति बहुत पसंद है तो आप मेरा  रिश्ता उनके साथ कर दे।रायचंद मुस्कुराते हुए जरूर होगा।

तभी अचानक से रूम मे, बॉडीगार्ड अंदर आते है। उन सभी को देख कर तो रायचंद एक पल को खबरा जाते है, फिर खुद को सम्भलते हुए इंतजार करने लगा।

कुछ देर बाद कमरे में, ब्लैक टॉक्सिंडो पहने हुए दक्ष अंदर आता है, सांवला रंग लेकिन नैन -नकश इतने दिखे की जो देखे अपनी होश गवां बैठे। बहुत ज्यादा हैंडसम औऱ बिल्कुल ठंडा व्यक्तित्व। उसे देख तो रायचंद के माथे पड़ पसीना आने लगा औऱ मन में सोचने लगा की कही, "मैंने  गलती तो नहीं कर दी दक्ष को हल्के में ले कर "। मगर वही उससे अलग उसकी बेटियां जैसे अपने सुद -बुद खो लगातार उसे देखे जा रही थी।लेकिन दक्ष ने एक नजर उन्दोनो पड़ नहीं डाला। मिस्टर रायचंद ! दक्ष की भारी आवाज सुनकर रायचंद होश मे आता है। आपका परपोज़ल देखा मैंने बात आगे बढ़ाने से पहले पूछना चाहता हूँ, की आपको इस प्रोजेक्ट में क्यों दिलचस्पी है। रायचंद अपनी बात कहता, उससे पहले कियारा अपने हाथ को बढ़ा कर कहती है, " हेलो दक्ष!! मैं कियारा रायचंद।दक्ष उसकी बात का कोई जवाब नहीं देता औऱ फिर रायचंद से पूछता आपने बताया नहीं।

कियारा खुद को अपमानित देख, गुससे का घुट पी कर मुस्कुराती हुई कहा, "बात होती रहती है लेकिन उससे पहले कुछ ले कर हम गेट टुगेदर तो कर सकते है। बार बार उसके यू बीच मे बोलने से दक्ष ने थोड़े गुस्से में कहा, " मिस्टर रायचंद आप कोई मेरे परिवार या दोस्त नहीं जिसके साथ में मेल मिलाप करू औऱ बिज़नेस फील्ड में, " मैं सिर्फ काम के लिए ही जाना जाता हूँ बाकि किसी चीज में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।" उसकी बात पर रायचंद ने थोड़ा रिक्वेस्ट करते हुए कहा, " जी जानता हूँ मिस्टर प्रजापति। लेकिन बस थोड़ी सी औऱ फिर वाइन की ग्लास दक्ष की तरफ बढ़ा देता है। ज्यादा कुछ बस इतना ही आप कर देंगे तो हम समझगे की आप अपने काका हुजूर की तरह हमारा मान रख लिया।"फिर एक नजर कियारा औऱ मेघना से कुछ इशारे से पूछता है। सभी के साथ अपनी भी वाइन की ग्लास उठाता है औऱ पीने लगता है। लेकिन अपनी तिरछी नजरों से दक्ष की तरफ देखता है की उसने पिया या नहीं।

दक्ष वाइन उठा कर पी लेता लेकिन पीते ही उसे अहसास हो जाता है की वाइन में कुछ मिला हुआ है। दक्ष को वाइन पिता देख तीनों अपनी शातिर मुस्कुराहट के साथ विक्ट्री का साइन देते है।दक्ष को जैसे ही शक होता है वो अपने हाथ की वाच का एक बटन दबा देता है। कुछ ही पल में, अनीश औऱ अतुल उस कमरे में आ जाते है। दो अजनबी को देख कर, रायचंद ने गुस्से से कहा, " तुम लोगो कौन हो औऱ अचनाक इस रूम में केसे आये।" अतुल ने कहा, वैसे तो रिश्ते मे हम तुम्हारे बाप है। लेकिन बाद में बतायेगे हम कौन है? फिर दक्ष अपनी कुर्सी से उठ जाता है और कमरे से निकलते हुए कहा, " मिस्टर रायचंद बाद में मिलते है अभी जरूरी काम है। फिर तेजी से रूम से निकल जाता हैं। " अपने कमरे मे जाने से पहले, वह अनीश औऱ अतुल को इशारा देता है। दोनों समझ जाते है की आगे क्या करना है। दोनों जाते हुए बॉडीगार्ड को निर्देश देते हुए जाते है की, " उस फ्लोर पड़ कोई नहीं आये "!!

दक्ष को बहुत गर्मी लग रही थी। जिससे वो सीधे वाशरूम में शावर के निचे भींगने लगता है। दक्ष को ड्रग्स दिया गया था लेकिन दक्ष का माइंड इतना शार्प है की वो उस डोज़ में भी खुद को बहुत हद तक संभाल सकता है।बहुत देर पानी के निचे खड़े होने के बाद उसे थोड़ा अच्छा लगता है औऱ वो वाशरूम से निकल कर कमरे में आता है। तभी वो किसी लड़की से टकरा जाता है। अपने कमरे मे, किसी लड़की को देख, उसका गुस्सा बेहद बढ़ जाता है। उसे लगता है की रायचंद की बेटी है और गुस्से में उसकी बाजु पकड़ लेता है। इतनी जोर से बाजु पकड़ने के कारण," वो लड़की अपनी लड़खड़ाती हुई जुबान से कहा, आह !!! दर्द हो रहा है ! छोड़ दो, दर्द हो रहा है। सर भारी लग रहा है। " उसकी आवाज़ सुन कर ।दक्ष के हाथ ढीले हो जाते है। कौन हो तुम? तुम्हें रायचंद ने भेजा है ! बोलो कौन हो तुम? वो कोई जबाब नहीं देती है। फिर वो गार्ड को आवाज़ लगाता की तब तक वो उसके सीने से लग जाती है.। दक्ष अभी सिर्फ तौलिया में था। उस लड़की के हाथ उसकी खुली सीने पर घूमने लगती है और होंठ उसके गर्दन को चूम रहे होते है। दक्ष पहली बार किसी लड़की के पास आने से पिघलने लगा था। किसी की चाल समझ कर, एक बार फिर दक्ष गुस्से में फिर उसके हाथ पकड़ लेता है औऱ उसे देखने की कोशिश करता है। रूम में हल्की हल्की रौशनी थी फिर भी वो उस लड़की का चेहरा नहीं देख पाता। सिर्फ हरी हरी आँखे औऱ उसकी कांपती आवाज़ सुन रहा था। दक्ष की कोई बात उस लड़की को समझ में नहीं आ रही थी। वो बस बोली जा रही थी, " आह बहुत गर्मी लग रही है। मुझे बचा लो। आह!! मुझे तुम्हारे करीब अच्छा लगा रहा है और अपने होंठ से दक्ष के सीने चूमने लगती है।

दक्ष उसके होठों के स्पर्श को पाते ही अपनी आँखे बंद कर लेता है। उसे समझ में आ जाता है की इसे भी ड्रग्स दिया गया है। दक्ष पर भी ड्रग्स का असर था। उस पड़ बार बार उस लड़की की करीबी उसे औऱ बहका रही थी।दक्ष को ज़ब बर्दास्त नहीं हुआ तो वो उस लड़की से कहता है, " सॉरी स्वीटहार्ट! अब जो होगा। उसकी जिम्मेदार सिर्फ तुम होगी औऱ उसे गोद में उठा कर सीधे बेड पर सुला लेता है। फिर उसके ऊपर आकर गर्दन को चूमने लगता है। उसकी बदन की खुशबु दक्ष को पागल कर रही होती है की वो खुद पड़ संयम नहीं रख पाता औऱ बहुत वाइल्ड होकर उसे चूमने औऱ बाईट करने लगता है। जैसे जैसे,दक्ष उसे चुम रहा होता है उस लड़की की सिसकियाँ बढ़ जा रही थी। उसकी सिसकियों की आवाज़ सुन कर दक्ष औऱ वाइल्ड होने लगता है। उसके गालों को चूमते हुए, उसने बेहद दीवानगी से कहा, " सॉरी स्वीटहार्ट औऱ झटके से उसके बदन से कपड़े अलग कर देता है। फिर उसके पुरे बदन को होठों से चूमने औऱ काटने लगता है। दोनों एक दूसरे मे डूब रहे थे। दक्ष अपने खुद को कण्ट्रोल नहीं कर पाता औऱ सीधे खुद को उसमें एक तेज झटके से समां  देता है। लड़की नशे में होने के बाबजूद भी जोर से चीखती है।दक्ष उसकी चीख सुन उसी अवस्था में रुक जाता है औऱ आराम से कहा, " तुम्हारा ये फर्स्ट टाइम है!!!! तुम वर्जिन हो!!!!

उसने दर्द से रोती हुए कहा, " हाँ "!!

उसकी बात सुनकर दक्ष को अंदर से एक अलग ख़ुशी मिलती है औऱ उसने भी कहा," मै भी वर्जिन हूँ। " अब बहुत प्यार से उसके गालों पड़ गिरे आँशु को अपने होठों से चुमते हुए कहा , "स्वीट्स! मैं आराम से करुँगा। तुम्हें दर्द नहीं होगा। फिर उसके होठों को चूमने लगता है औऱ धीरे धीरे उससे प्यार करता है। सुबह के 4 बजे तक दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते है औऱ फिर वो लड़की दक्ष के बाहों में सो जाती है।

दक्ष ने उसे बाहों में लेकर कहा," अभी जो भी हुआ। वो जिस हालात की वजह से हुआ। लेकिन कल की सुबह, तुम मिसेस दक्ष प्रजापति होगी। अब तुम सिर्फ दक्ष की हो, " स्वीट्स "।

जब अगली सुबह दिन के 11बजे उसकी नींद खुलती है तो उसके पास वो लड़की नहीं होती है।

वर्तमान समय :....

उसके बाद तुम दोनों जानते हो की उसे हमने कहाँ कहाँ नहीं ढूढ़ा। किसी cctv में वो नहीं थी।फिर अनीश कहता है," हाँ! जैसे किसी ने उसके अस्तित्व ही मिटा दिया हो।उसकी बात पर, " हम्म्म में जवाब देते हुए, कहा, " इसलिये चाह रहा हूँ की मुझे दीक्षा राय की सारी जानकारी चाहिए !" अतुल ने फिर उसे टोकते हुए कहा, " लेकिन तुझे केसे पता की दीक्षा राय ही वो लड़की है ? "

दक्ष ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्यों तुझे नहीं पता की दक्ष प्रजापति की जिंदगी में एक लड़की के सिवा कोई नहीं आयी है। मैं इन सात सालों में उसकी खुसबु, अहसास, उसकी आँखे, आवाज़ कुछ नहीं भुला।इसलिए ज़ब अनीश की दीक्षा से बहस हुई तो उसकी आवाज़ सुन कर चोंक गया था। फिर लिफ्ट में ज़ब उसे एक नजर देखा तो वही हरी औऱ गहरी आँखे, जो मुझे उसकी तरफ खींच रही थी औऱ ज़ब वो मेरे केबिन में आयी औऱ मैं अपनी इस उलझन को सुलझाने उसके करीब गया। तो उसकी खुशबू। मैं उसे पहचाने में भूल नहीं कर सकता।क्योंकि आज भी औऱ सात साल पहले भी वही लड़की थी जो दक्ष प्रजापति को बेकाबू करने की ताकत रखती है।लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आयी की," मैं ज़ब उसे पहचान गया औऱ उसे कहा तो वो जोर से, नहीं करती हुई क्यों भाग गयी।इसलिए उसके बारे ने पता लगाओ। अब चलो महल देखे तो इतने साल में क्या क्या बदला है।

तीनों महल के लिए निकल जाते है। लेकिन रास्ते में अचानक उनकी गाड़ी का टायर पंचर हो जाता। अनीश गुस्से में ड्राइवर से कहता है, " गाड़ी चेक नहीं किया था।" ड्राइवर डरते हुए कहता है, "किया था साहब लेकिन ये केसे? अतुल जैसे ही गाड़ी से निकल कर जाने लगता है तो दक्ष ने कहा," अतुल गन ले लो क्योंकि हमारी खातिरदारी के लिए सभी आये है। अतुल मुस्कुराते हुए हाँ में अपने सर हिलता है। अनीश चिढ कर कहा, " कमीने अपने मिट्टी पर पैर रखे नहीं की आ गए धूल उड़ाने औऱ दक्ष की तरफ घूरते हुए कहा, " क्या जरूरत थी सारे गार्ड को पहले भेजनें की ! अब लड़ो इन गीदरों से कहते हुए ग़न को हाथ में लिया औऱ वो भी निकल गया।

तीनों गाड़ी से निकले ही थे की सामने से 5-6 गाड़ी से लगातार गोलियाँ चलाई जा रही थी। तीनों अपनी कार के पीछे होकर।अतुल औऱ अनीश एक साथ आगे बढ़ते हुई गाड़ीयों के टायरों पड़ गोलियाँ चला रहे थे औऱ दक्ष उन आदमियों पर, पंद्रह मिनट में गाड़ी औऱ गाड़ी वाले सभी घायल होकर जमीन पड़ कराह रहे होते है। अतुल औऱ अनीश एक के हाथ पड़ पैर रख कर,"बता तुझे किस सुवर ने भेजा है?

" नहीं.... मैं.... नहीं बताऊंगा "।

दक्ष राजा की तरह चलते हुए, अपने पॉकेट में हाथ रखे उस आदमी को देखता है," वो सभी आदमी दक्ष को देख डर के मारे पीछे होते जाते है । अनीश ने कहा, " अबे अपने बाप को देख कर भाग रहे हो। ये तब नहीं सोचा ज़ब गोली चला रहे थे। बता किसने भेजा है तुम सब को, वो सभी अपने सर ना मे हिलाते है।

"दाता हुकुम "दक्ष के मुँह से,ये नाम सुनते ही उन सभी की आँखे बड़ी हो जाती है।दक्ष उन सभी से," . क्या लगा था की हमें ये जानकारी नहीं होगी। अनीश औऱ अतुल उसकी बात पर उसे चिढ कर देखते हुए कहा, " जब सब कुछ तुझे मालूम था तो खुन हमारा क्यों जलाता है "। दक्ष अनीश की बातों को नजरअंदाज कर देता है।

तब तक उसके सभी गार्ड आ जाते है...औऱ झुक कर.... अभिवादन करते है..... .. दक्ष दूसरी गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए, अपनी आखों में चश्मा लगाते..... गार्ड को कहता है..... इन सभी को एक गाड़ी मे डालो औऱ "दाता हुकुम " की हवेली पड़ फेक आओ..... औऱ उन सभी को जो गोली लगने से दर्द में कड़ाह रहे होते है... कह देना अपने "दाता हुकुम"..... से दक्ष प्रजापति लौट आया है..... अगला - पिछला सारा हिसाब  पूरा करने।

फिर बड़े शान से गाड़ी में बैठ निकल जाता है।

प्रजापति महल :

प्रजापति परिवार की शानों शौकत की कहानी कहती है। उजले रंग की दीवाल की साज सज्जा..... एकड़  में बना ले महल। जहाँ मुख्य दरवाजे से अंदर आने के लिए 5km तक की दूरी तय करनी होती है।  महल के आगे बहुत बड़ा बगीचा जिसमे रंग बिरंगे तरह तरह के खूबसूरत फूल उसकी शोभा बढ़ा रही थी। महल के पीछे फलो का बगीचा जिसमे तरह तरह के मौसमी फल के पेड़ लगे थे। महलो पूरी तरह प्रकृति खूबसूरती से सवारा गया था।

दक्ष की गाड़ी महल के अंदर आती है। अनीश महल को देख आज भी प्रजापति महल की अलग ही खूबसूरती है। अतुल कहता है.... हाँ...

दक्ष अपनी आखों पड़ चश्मा को ठीक करता हुआ," हाँ औऱ इस खूबसूरती के पीछे बदसूरत सच भी। औऱ ये सफेद रंग.... कितनी लाल रंग से धुली हुई भी। थोड़ा कटाक्ष होकर अपने होंठ को तिरछा करता है।

द्वार पड़ आते ही..... घर के सभी नौकर बाहर फूल की थाली लिए खड़े थे औऱ दरवाजे पड़.... रानी माँ, दादी सा, काकी माँ.... बाई सा....सभी खड़े थे आरती की थाल लिए रानी माँ..... अपनी आखों में आँशु भरे हुए अपने घर के बड़े पोते को देखती है।

दक्ष गाड़ी से उतर कर आगे.... उनके आगे खड़ा हो जाता है..... पैर को छूते हुए.... प्रणाम रानी माँ। सभी को एक एक कड़ प्रणाम वो तीनों करते है..... रानी माँ आरती उतार उसे गले लगा कर कहती है... घणा इंतजार करवायो तूने छोरे.... इन बूढ़ी आँखे तरस गयी थारे को देखन वास्ते...। दक्ष उनसे गले लग कर रानी माँ अब तो आ गया हूँ ना..... औऱ उनके आँशु पोछ कर..... अब रोना बंद कीजिये।

पीछे अनीश..... अरे ऒ पुष्पा.... नो मोर टियरस रे..... दादी सा उसके कान पकड़ ये छोरा कनि ना सुधरो है।

फिर रानी माँ... उन तीनों देख बहुत सारा आशीर्वाद देते हुए कहती है..... तुम तीनों की दोस्ती महदेव युहीं बनाये रखे।

आओ सभी अंदर।

अंदर आते ही..... रुक जाईये दक्ष...

दक्ष के कदम रुक जाते है.... कहिये राजा साहब... और जा कर अपने दादा, काका, सभी के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है।

"दक्ष आप तो सुबह आ गए थे तो अब आने का क्या मतलब।

"राजा साहब कुछ काम था और अब हम अपने कमरे में जा रहे है.... कहते हुए अनीश और अतुल के साथ अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है...।

राजा साहब अपने भाई से.... देख लिए आपने रंजीत...दिन ब दिन ये हमारे हाथ से निकलते जा रहे है। लोटे है सात साल बाद पहले तो हमारी मान रख लेते थे अब तो वो भी नहीं।

आप परेशान मत हो भाई सा.... अब आया है इसलिए थक गया होगा... लक्ष्य जाओ अपने ताया सा को अंदर ले जाओ.... इनके दवाई का समय हो गया है।

"जी बाबा सा "

रंजीत, रानी माँ तुलसी प्रजापति के पास आकर, "थम कोणों चिंता ना करो भाभी सा, सब ठीक हो जाबेगो।जा कामिनी भाभी सा के अंदर ले जा।

"देवर सा मने तो इ छोरे कोणी दिमाग़ ठीक ना लगे हे.... अब तो महदेव ही जाने..."

" शुभ रात्रि भाभी "सब ठीक हो जा बेगो।

दक्ष का कमरा महल के सबसे खूबसूरत हिस्से में बनाया गया था जहाँ से पूरा राजस्थान की खूबसूरती नजर आती थी, झरोखे से बाहर महल का खूबसूरत बगीचा। दक्ष के कमरे को राजवाड़ा और आधुनिक दोनों के मिश्रण से सजाया गया था,कमरे की छत से लेकर दीवाल तक की नकाशी बेहतरीन थी, कमरे को ना गहरा ना हल्का रंग दिया गया था बल्कि कमरे के हर हिस्से के हिसाब से रंग चढ़ाया गया था.... कमरे के बाहर एक ना बड़ी ना छोटी अपनी छत थी, वहाँ पड़ झूला और छत पड़ तरह तरह के फूल खास कर मोगरे की फूल जो रात्रि को अपनी खुशबू से दक्ष कर रोम को खुशनुमा बनती थी.

दक्ष के इस हिस्से में किसी को आने की इज्जाजत नहीं थी बस उसकी साफ सफाई दक्ष का साथी, गार्ड, रक्षक.... जो राजस्थान आने के बाद हमेशा रहता है... वीर सिंह.... उसे ही यहाँ की देख रेख की जिम्मेदारी दी गयी थी।

दक्ष के कमरे में उसके माता पिता, काका काकी, और भाई बहन की तस्वीर थी। अपने परिवार को उसके आखों के कोर से आंसू निकल गए जिसे उसने बहुत आसानी से छिपा लिए।

अतुल और अनीश उसके कंधे पड़ हाथ रख कर कहते है... कब तक पुरानी बातों की वजह से.... अपने पिता के पिता से नाराज रहेगा, छोड़ इन पुरानी बातों को।

दक्ष अपनी क्रोध से लाल आखों से उन दोनों को देख कर कहता हूँ की, "भूल जाऊं..... केसे भूल जाऊं..... की केसे राजा साहब के रामायण प्रेम में वो भूल बैठे है की त्रेता युग नहीं कलयुग है..... यहाँ श्री राम की नीति रामायण नहीं..... श्री कृष्ण की नीति महाभारत चलती है वो बहू कलयुग की भाषा में... अगर सीधे शब्दों में समझो तो..... आधुनिक महाभारत.....

यहाँ रिश्ते, नाते सब सत्ता और ताकत के लिए बनाये और मिटाये जाते है... जिसकी बलि मेरा परिवार चढ़ गया। इस की बलि मै क्यों नहीं चढ़ा जानते हो ना क्यों और मुझे अचानक क्यों बुलाया गया... ये बात तो तुमसे छिपी नहीं है।

खम्माघणी छोटे सरकार..... इस आवाज़ से सबका ध्यान दरवाजे पड़ खड़े एक 6 फिट 29 साल के गठिले नौजवान पड़ जाती है, पारम्परिक राजस्थानी पगड़ी और काले रंग की सफारी पहने हुआ.... चेहरे पड़ रोबदार मुझे। सर झुका कर दक्ष का अभिनन्दन करता हुआ दरवाजे पड़ खड़ा है।

कितनी बार कहा है वीर की ये हमें छोटे सरकार जब हम अकेले रहे तो मत कहा करो,... फिर वो अपनी बाहें फेला लेता है..... वीर खुश होकर गले लगता है।

"केसे हो राजा सा...

दक्ष घूर कर... देखता है।

"ऐसे मत देखो राजा सा मै आपको अकेले में भी नाम लेकर नहीं बुला सकूंगा। ये आपका बड़कपन है की आपने मुझ छोटे से इंसान को इस काबिल समझा।"

मै कौन होता हूँ किसी को छोटा या बड़ा समझने वाला वीर, लोगो अपने कर्म के हिसाब से सम्मान पाते है। अगर तुम मुझे नाम से नहीं बुला सकते तो बड़े भाई के रूप में बुलाओ। लेकिन ये राजा या हुकुम सा नहीं।

मुझे ये राजा - नोकर ना कल पसंद आये ना कभी पसंद आएंगे। मेरे लिए लोगो सम्मानित सिर्फ उनके कर्मो के अनुसार ही होंगे।तो आगे से इस बात का तुम ध्यान रखना। "

"जो हुकुम भाई सा "।

सभी एक दूसरे को देख मुस्कुरा देते है। अनीश, वीर से कहता है "वैसे वीर ये मूँछ तुमने कुछ ज्यादा ही लम्बी नहीं कर लिए है..... तुम्हें देख कर मेरे मन में अभी ख्याल आया की..... फिर सोचने का नाटक करते हुए,..... की.....तुम्हें लड़की केसे मिलेगी और मिल भी गयी तो तुझे चूमते हुए उसे तेरी मूंछ चुभी तो..... भाई सा..... तेरी वाली तो तुझे छोड़ कर ही भाग जाएगी।"और हँसने लगता है।

अनीश की बातें सुन अतुल, दक्ष से ये कमीना कभी नहीं सुधरेगा। "दक्ष... हम्म्म.... कहते वीर को देख रहा होता है। जो अनीश की बात सुन कर... शरमाते हुए कहता है,"क्या भाई सा आप भी!!!!!!

ओह्ह्ह तेरी..... ये हटा कट्टा वीर सिंह शरमाता भी है... ओये होये ये नई नवेली दुल्हन की तरह गाल भी लाल हो गए है...

... ये तो गजब हो गया..... कौन कहेगा की जो इंसान जंग के मैदान में लोगो को गाजर मूली की तरह काटता है..... वो लड़की की चुम्बन के नाम पड़ ऐसे शरमा रहा है जैसी नई नवेली दुल्हन हो....हँसने लगता है।

दक्ष बस करो तुम कितना परेशान करोगे इसे। रहने दो जानते हो शुरू से ही इसे लड़की से डर लगता है।

अतुल हाँ.....बोल दक्ष का साथ देता है.।

दोनों की बात सुन अनीश अपनी ऑयबरों ऊपर उठा कर कहता है..... जैसे की तुमको दोनों तो लड़कियों की माला पहनते हो।

साले अब तु पिटेगा.... वीर पकड़ उसे.... दोनों अनीश को पकड़ने के लिए कमरे में दौड़ लगा देते है। दक्ष उन सभी को देख अपने सर ना में हिलाते हुए.... वाशरूम में फ्रेश होने चला जाता है।

फ्रेश होकर जबाब बाहर आता है तो तीनों एक दूसरे के ऊपर अब भी कूद रहे होते है। दक्ष अपनी सधी आवाज़ में तुमको तीनों का हो गया तो... अब वीर से कुछ पूछ लूँ। दक्ष की गंभीर देख.... तीनों शांत हो जाते है।

दक्ष, वीर से... बताओ वीर.....

"भाई सा.... सब कुछ तो आपके सामने ही है..... आपके परदादा की वसीयत के मुताबिक उनके दोनों बेटों की जिस पोते की शादी और बच्चा पहला होगा वो ही राजा साहब की गद्दी पड़  बैठ सकते है और राज गद्दी मिलने से पहले अगर दक्ष या पृथ्वी को कुछ हो जाता है तो ये सारी सम्पति ट्रस्ट को चली जाएगी ।ये बात खानदान का हर सदस्य जानता है।इसलिए इस बार पृथ्वी कुंवर सा की शादी करवाने की तैयारी चल रही है।

लेकिन ये सारी बातें सच नहीं एक झूठी कहानी है जो आपके परदादा राजा गजेंद्र जी ने बनाई थी.....।और फिर वो चुप हो जाता है.....

अतुल और अनीश फिर ये बात तुम्हें केसे मालूम हुई।

दक्ष गौर से उसकी बात सुन रहा था।

जब में..... राजा गजेंदर साहब की रूम की साफ सफाई करवा रहा था तो एक लिफाफा... भाई सा की तस्वीर जिसमे हुकुम सा और हुकुम रानी सा के साथ थी।वो मेरे हाथों से गिर गयी और उसमें से एक लिफाफा गिरा।

फिर वो लिफाफा निकाल कर वीर.... दक्ष को देता है।

दक्ष उस लिफाफा को खोलता है उसमें एक चिठ्ठी और एक दस्तावेज होती है।

दक्ष उस चिठ्ठी को खोलता है जो बहुत पुरानी होती है.....25 साल पुरानी शायद जब उसके परदादा  जी जिन्दा थे वो पांच साल का रहा होगा।

ये चिठ्ठी राजा गजेंद्र ने अपने बड़े पोते हर्षित प्रजापति को लिखी थी.....

कुंवर हर्षित,

हम ये तो नहीं जानते ये चिठ्ठी आपको कब मिलेगी लेकिन हमें यकीन है की ये चिठ्ठी जब भी मिलेगी किसी सही हाथों में ही होगी। बेटा में वो पिता नहीं हूँ जो गलत देख कर भी अनदेखा कर दू। आपको हमें जाते जाते कुछ बता कर जा रहे है.....

आपके पिता यानी हमारे बड़े बेटे..... बिल्कुल ही सज्जन पुरुष है.... उन्हें दुनिया की किसी भी चीज में बुराई नजर नहीं आती और खास कर अपने छोटे भाई में।

हमें ये दुख है की हमारा एक बेटा राम है तो दूजा रावण।हमारी इस हालत का जिम्मेदार भी हमारा दूसरा बेटा और उसकी पत्नी ही है। लेकिन हम ये बात किसी को नहीं बता सके।

आप को हम सावधान करना चाहते है की आप अपने पिता की तरह ना बने। सत्ता की ताकत में जितना नशा होता है उसे संभालने के लिए व्यक्ति को उतना ही ताकत और समझदारी दिखानी होती है। हमें दुख है की हम अपने अक्स को ना अपने बेटों और ना किसी पोतों में देख पाए।

लेकिन हमें ख़ुशी है की हमें खुद से बेहतर राजा हमारे परपोते दक्ष में दिखाई देती है। लेकिन वो पृथ्वी से छोटे है। लेकिन फिर भी हमें अपनी वसीयत बदल कर जा रहे है की..... हमारे जाने के बाद राजस्थान और उसके लोगों की सुरुक्षा उचित हाथों में हो..... क्योंकि हमें आपके पिता से कोई उम्मीद नहीं है।और आपको अपने परिवार की रक्षा अपने काका सा करने की बहुत जरूरत है।और हमारी पुरखो की बहुत पुरानी धरोहर है जो... हमारी पीढ़ी की सातवें राजा को मिलिएगीं और वो सातवा राजा दक्ष ही होना चाहिए, इसे आप सुनिचितः कर यही हमारा आसे अनुरोध है । बाक़ी चीजे  हमने वसीयत में दे रखी है। आप पढ़ ले और उसे अपने पास तब तक गुप्त रखे जबाब तक की दक्ष की शादी और गदी उसे ना मिल जाये।

आपकी सब की रक्षा शिव शम्भु करे।आपके कमजोर दादा गजेंद्र प्रजापति...

दक्ष शांत होता है और फिर वसीयत पढता है.....

वसीयत में, मैं गजेंद्र प्रजापति अपनी पुरानी वसीयत को ख़ारिज करते हुए.... पुरे होशो हवाश में अपनी नई वसीयत लिख रहा हूँ....

प्रजापति खानदान की सदियों की परम्परा चली आ रही है की राज की गद्दी सिर्फ उसे ही मिलती है जो उसके दायित्व को संभाल सके... और गद्दी की दावेदारी खानदान के बड़े और छोटे बेटे की तुलना के रूप में नहीं की जाती... उनकी काबिलियत के अनुरूप की जाती है । अब तक हमारे खानदान में, खानदान के बड़े बेटे को ही गद्दी मिलती आयी है..... उसके अनुरूप...आने वाले राजा के तोर हम

हमारे प्रपोते दक्ष और पृथ्वी को देखते है,जो खानदान में सबसे बड़े है। पृथ्वी दक्ष से पांच साल बड़े है तो गद्दी के अधिकारी के लिए उन्हें अपनी दावेदारी कर काबिलियत साबित करनी होगी और साथ ही साथ 25 की उम्र में शादी और  खानदान की अगली पीढ़ी का वारिश  भी देना होगा । अगर इस दौरान हमारे दोनों प्रपोतों में से किसी को कुछ हुआ तो प्रजापति की सभी सम्पति सरकार और ट्रस्ट को चली जाएगी।

खानदान की सातवीं पीढ़ी जो गद्दी पड़ बैठेगी उसे हमारे पुरखो की धरोहर का एक बक्शा मिलेगा जो हमारे खानदान के कुल पुरोहित के पास है।

उस बक्शे को खोलने के लिए.... महदेव की महायज्ञ करनी होगी जिसमे राजा के साथ उनकी पत्नी और उसके साथ उनकी पुत्री या पुत्र बैठने पड़ ही ये पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है और ये प्रजापति खानदान में हर सातवें पीढ़ी के राजा को निभानी और पूरी करनी होती है । और आने वाले समय में सातवें राजा दक्ष या पृथ्वी दोनों में से कोई एक होंगे और उन्हें ही ये दायित्व पूरी करनी होगी। फिर उस बॉक्स को खोल कर उसमें चाभी और एक नक्शा मिलेगा जहाँ प्रजापति के पुरखो का सदियों पुराना राज और खजाना छिपा हुआ है। जो उन्हें संभालनी होगी।

सबसे महत्वपूर्ण बात की प्रजापति की गद्दी पड़ जो बैठेगा अगर उसकी मृत्यु..... प्रजापति खानदान के अलगे वारिस के 21 वर्ष की उम्र से पहले सामान्य ना होकर असामान्य हुई तो भी..... इस अवस्था में भी प्रजापति खानदान का सब कुछ ट्रस्ट और सरकार को चली जाएगी।

और भविष्य में मेरी इस वसीयत को किसी भी तरह से ख़ारिज नहीं की जा सकती है... और अगर इसकी कोशिश की....तो सब कुछ ट्रस्ट चली जाएगी।

राजा गजेंद्र प्रजापति...


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