"आज फिर से अखबार पढ़े बिना तुम स्कूल चले गए ? अपना हाथ आगे बढाओ …..तपाक- तपाक !!"
ये शब्द आज भी मेरे कानों में सुनाई देने लगते हैं जब भी मैं अखबार पढ़ने के लिए बैठता हूँ क्योंकि उस दिन भी मुझे अखबार न पढ़ने के कारण पापा से 2 डंडे अपने हाथ पर खाने पड़े थे । पापा मुझे IAS बनाना चाहते थे और क्योंकि एक IAS का ज्ञान एकदम up -to -date होना चाहिए इसलिए वो मेरे अन्दर अखबार पढ़ने की एक आदत को डालना चाहते थे । लेकिन मेरा …..मेरा दिमाग तो उस समय एक किशोरावस्था में कदम रख रहा था । एक ऐसी उम्र जिसमे सिर्फ सेक्स ही सेक्स सूझता है । अपने शरीर में होते हुए बदलावों को मैं भी दूसरे लड़कों की तरह खुद पर महसूस कर रहा था और जब शरीर में ही इतनी चंचलता होगी तो दिमाग की चंचलता को तो बताना भी यहाँ कठिन ही होगा । तो बस यही सब मेरे साथ भी हो रहा था ।मैं अखबार खोलता और जैसे ही अपनी नज़र अखबार में छपी हुई ख़बरों पर दौड़ाता तो सिर्फ रेप की खबर पढ़ने में ही मेरा भी मन लगता । मैं करता भी तो क्या करता ?सारा अखबार सिर्फ रेप या मॉलेस्टेशन की खबरों से ही भरा होता था और मैं भी बस शायद उन्ही ख़बरों को पढ़ने में दिलचस्पी लेता था लेकिन जैसे ही मुझे पापा का मेरे लिए देखा वो IAS का सपना याद आता तो मैं उस दिन अखबार को ग्लानिवश नहीं पढ़ता और बस इसलिए मुझे उनसे मार खानी पड़ती थी ।
धीरे-धीरे ये रेप शब्द मेरे ज़हन में एक तीर की भाँति चुभने लगा और मैं रात-दिन बस यही सोचता रहता कि अगर कभी मुझे भी सेक्स करने का अवसर मिला तो मैं सिर्फ रेप ही करूँगा ...सिर्फ रेप. मगर एक पढ़े-लिखे परिवार में पैदा होने के कारण मेरे लिए ये सब करना संभव नहीं था । लेकिन जब भी मैं रात को कल्पनाएँ बनाता तो ये रेप ही मेरे सामने उभर कर आता और मुझे लगता कि शायद मैं या मेरी सोच ....कोई तो "जंगली" जरूर है ….जो इस शब्द को मेरे भीतर में सहेज रही है ।
जिंदगी के 10 साल कब गुज़र गए पता ही नहीं चला ...स्कूल से कॉलेज और कॉलेज से जॉब ...जी हाँ …..हर लड़के की तरह मैं भी अब तक अपना कैरियर बना कर अपने पैरों पर खडा था । MBA करने के बाद मुझे भी एक अच्छी MNC में जॉब मिल गयी थी और अब माँ-बाप भी मुझ पर शादी करने का दबाव बना रहे थे । सच पूछो तो मैं भी अब शादी करना चाहता था ….सिर्फ घर बसाने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी । मगर मैं अपने दिमाग में पल रही उस सोच को लेकर परेशान था ...…क्योंकि मुझमे ये बात अब तक पूरी तरह से घर कर चुकी थी कि मेरा सेक्स के लिए पहला अनुभव सिर्फ रेप ही होगा …..सिर्फ रेप….जिसे मैं बचपन से अखबारों में पढ़ता और फिल्मों में देखता आया हूँ ।
आख़िरकार "शमा" से मेरी सगाई पक्की हो गयी । "शमा" ….एक मानसिक डॉक्टर थी । बहुत ही सीधी -साधी और भोली-भाली सी लड़की ….जो डॉक्टर होते हुए भी अपना बड़ो का आदर करती थी । शादी में बस सिर्फ 2 महीने ही बचे थे और मेरी "शमा" से मिलने की आज पाँचवी मुलाक़ात थी । अब तक की 4 मुलाकातों में हमने एक-दूसरे की सभी आदतों को जाना और समझा था लेकिन बस ये मानसिक तनाव …..जो अब तक मेरे ज़हन में था उसे मैं नहीं कह पाया था और आज मैंने ये अच्छी तरह सोच लिया था कि "शमा" को इस बात के बारे में आज बताकर ही जायूँगा ।
हर बार की तरह आज भी "शमा" रात 8 बजे डिनर के लिए मुझसे मिलने के लिए आई थी । मेरे ठीक सामने बैठी हुई "वो" इतनी सुन्दर लग रही थी कि मैं खाना खाना भी भूल सा गया था ।
अचानक मैंने कहा -"शमा...वो ...तुम सुहागरात का मतलब जानती हो ?"
उसने धीरे से कहा …..हाँ ,जानती हूँ ।
मैंने फिर कहा …..'लेकिन शमा ,मुझे वैसी सुहागरात नहीं चाहिए । Plzz समझो .....Plzzz !"
इस बार शमा घबरा गयी और पूछने लगी कि क्या कहना चाहते हो ?साफ़-साफ़ कहो !
मैंने कहा ..."शमा , I want to Rape !" हाँ ,पहली बार सिर्फ रेप ही होना चाहिए ...सिर्फ रेप.'
शमा ने इस बार पूरा घूरकर मेरी तरफ देखा और बोली ..."क्या तुम भी रात को अपनी कल्पनायों में रेप को लेते हो?"
मैंने कहा …."सिर्फ लेता नहीं हूँ शमा .....मुझे बस वही करना है …..बस वही ।" और मैं एक असहाय बालक की भाँति कहीं अन्दर से टूटने लगा ।
शमा एक डॉक्टर थी ।रोज़ न जाने कितने मरीजों की मनोव्यथा को पढ़ती थी और आज वो मेरे मन को पढ़ने की कोशिश कर रही थी ।काफी देर सोचने के बाद वो जाने के लिए उठी और उसने सिर्फ इतना कहा कि अब हम सीधा सुहागरात पर ही मिलेंगे । मैंने उसे घर तक छोड़ा और चला गया ।
25 May…..जब गर्मी अपने पूरों ज़ोरों पर होती है …..उस दिन हमारी शादी हुई थी । सारे मेहमान गर्मी से परेशान थे मगर शमा तब भी मुस्कुरा रही थी । उसकी यही बात मुझे सबसे अच्छी लगती थी कि वो हर हाल में खुद को ढाल लेती थी । इतनी गर्मी में शादी का वो भारी सा लहंगा और गहनों से लदा होने के बावजूद भी उसके माथे पर शिकन तक नहीं थी।शादी होने के बाद मुझे एक चैन की राहत मिली और मैं सुबह शमा को अपने साथ अपने घर में ले आया ।
26 May…..यानि हमारी सुहागरात का दिन। सभी मेहमान घर से जा चुके थे और मैं भी रात होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था कि अचानक से दरवाज़े की घंटी बजी ।जाकर देखा तो कमरे को सजाने के लिए फूल वाला आया था ।तभी शमा बाहर आई और उसे जाने को कहा ।मैं भी हैरान सा खडा ये सोच रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया क्योंकि हर लड़की का अपनी सुहागरात वाले दिन एक सज़ा हुआ कमरा देखने का सपना होता है । खैर अब तक तो वो जा चुका था इसलिए मेरे लिए अब कोई सवाल करने का मतलब ही नहीं था ।
डिनर का समय हो चला था । हम दोनों ने माँ-पापा के साथ खाना खाया और मैं अपने कमरे में आराम करने के लिए चला गया ।शादी की थकावट इतनी ज्यादा थी की लेटते ही मुझे नींद आ गयी और शमा वहीँ माँ-पापा के पास बैठी उनसे नए घर की सीख लेने लगी ।
करीब रात के 11 बजे मुझे अपने कमरे में आहट सी सुनाई दी ।आँख खुली तो मैंने देखा कि शमा …वही पहले वाली शमा …..जैसी मुझे उस दिन रेस्टोरेंट में मिली थी मेरे सामने खड़ी थी । उसके बदन पर न ही वो शादी का लहंगा था और न ही वो खूबसूरत से गहने ।न ही कोई सिंगार और न ही कोई हाथ में दूध का गिलास ।
उसने सिर्फ इतना कहा ," Today I want to make your Fantasy alive.You want to Rape na ? So ….it must be a Rape.A wild weird Rape.Go On Dear ...Go On."
मैंने दौड़ कर दरवाज़ा बंद कर दिया ।इतने सालों से जो शब्द मेरे ज़हन में घूम रहे थे आज मुझे बस उन्ही को Update करना था ।एक पागल Rapist की भाँति मैं शमा पर टूट पड़ा ।वो सारी fantasies …..वो सारी अखबार की खबरें ...वो सारे फिल्मी scenes …..जिसमे ये "रेप" शब्द आता था …..वो सब मेरे दिमाग में दौड़ने लगे और "मैं"..."मैं" ….. रहा ही नहीं ।
सुबह अलार्म की आवाज़ से आँख खुली तो देखा शमा बिस्तर पर निढाल पड़ी थी ।अब मुझे लगने लगा की ये क्या हो गया मुझसे । मैंने धीरे से शमा को छुया और कहा ,"शमा ….तुम बिलकुल अपने नाम की तरह हो .....खुद जल गई जो मेरी मानसिकता की खातिर ।"
शमा ने मेरी तरफ देखा और सिर्फ इतना कहा ," "रेप" होने पर महिलायें शारीरिक तौर पर टूट जाती हैं इतना तो मैंने पढ़ा था ...पर इस "रेप" शब्द से पुरुष इतना टूट जाते हैं …..ये मैंने सिर्फ आज देखा और समझा ।"
— Un nuevo capítulo llegará pronto — Escribe una reseña