पार्टी को जान थी वो कभी ,आज भी वो वैसे ही तैयार थी, सुंदर, बिंदास,एक अनछुए एहसास की तरह। कुछ था सखी में आज कुछ अलग सा जो कभी गिरधर में देखा ही नहीं था। सभी लोगों के साथ इतनी सहजता से बातें तो सखी करते देखा ही नहीं था। पता नहीं गिरधर को यह अच्छा लग रहा था या बुरा। अचानक सखी की आंखें कहीं जाकर रुक गई। अरे यह क्या, गिरधर एक टकटकी लगाए सखी को देख रहा । सखी ने इशारे में गिरधर से पूछा - "क्या हुआ "। गिरधर अभी भी सखी को देख रहा था। अब सखी असहज महसूस करने लगी। तो वह गार्डन की तरफ आ गई। उसे देखकर कुशल भी उसके पीछे - पीछे गार्डन की तरफ आ गया। सखी, हे सखी। सखी ने पीछे मुड़कर देखा- अरे ,यह तो कुशल है। कुशल ने कहा - अरे सखी तुम यहां। क्या हुआ पार्टी पसंद नहीं आई क्या।
सखी ने कहा - अरे, नहीं कुशल ऐसी कोई बात नहीं है। पार्टी बहुत अच्छी है ।बस थोड़ी घुटन महसूस कर रही थी ,इसलिए बाहर आ गई।
तुम बताओ, तुम यहां कैसे तुम्हारी तो पार्टी है अगर मेजबान ही बाहर होगा तो मेहमानों का क्या होगा। कुशल ने कहा - अरे नहीं मैंने तुम्हें यहां आते देखा, तो सोचा पूछूं, क्या हुआ ,बस और कुछ नहीं।
और बताओ, जॉब कैसी चल रही है, कैसा लग रहा है ,इतने सालों बाद काम करके, अपने ऊपर विश्वास करके।मैं तो कितने सालों से कह रहा था कि तुम कविताएं लिखना शुरू करो, कहानियां लिखा करो, उपन्यास लिखो, यही तो तुम चाहती थी, अपने कॉलेज के टाइम से ।हां - सखी कहती है। हां यही चाहती थी और जब सपने पूरे होते हैं ,तो अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है ।लेकिन सपनों को पूरा करने के साथ कुछ त्याग भी करने पड़ते हैं ।कुछ बोला क्या - उसने शायद सही से सुना नहीं था। उसने दोबारा पूछा - सखी क्या, क्या बोला ।कुछ नहीं- सखी ने बोला।
कुशल ने बोला - याद है वह कॉलेज के दिन ।सखी ने कहा- हां ,सब याद है ।कैसे भूल सकती हूं ।वह दिन जो बहुत बहुत बहुत हसीन हैं। किसी चीज की फिक्र नहीं थी। यहां तक कि यह भी नहीं कि मुझे आगे क्या करना है ।कुशल ने कहा - याद है ,वह कॉलेज का पहला दिन जब हमने एक प्रैंक किया था, तुम्हारे साथ। हां याद है - सखी ने कहा बिल्कुल याद है। मैं कैंटीन में बैठी हुई थी। इतने में एक लड़की अंदर आई। लड़की नहीं कह सकते वह उस समय तो एक बूढ़ी औरत बनी हुई थी। मैं अपने काम में लगी हुई थी। ध्यान ही नहीं था और अपनी चाय में खोई हुई। अचानक से ,उसने बोला- आप सखी हैं, मैंने आशचर्य पूर्वक उसकी तरफ देखा और कहा - हां, मैं ही हूं ।उसने बोला - सखी, तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट हो गया है ।मैं कितनी घबरा गई थी, हाथ पैर सुन हो गए थे, कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, मैं घबराती हुई अपना बैग पैक करके सारा सामान उठाकर किसी तरह से बाहर भागी, बिल्कुल होश नहीं था। इतने में ही वह लड़की मेरे पास आई मुझे पकड़कर बोली - अरे मैं मजाक कर रही थी ,सॉरी ।शायद उसे एहसास हो गया था कि- मैं कितना ज्यादा घबरा गई थी ।मैंने उसको गुस्से में देखा और एक थप्पड़ लगा दिया। शायद यही उस टाइम का रिएक्शन था। उस लड़की ने मुझे कुछ नहीं कहा, बस गले लगा लिया और दोबारा वही शब्द दोहराए- सॉरी कुछ नहीं हुआ, तुम्हारे पापा को ।सॉरी ,मैं मजाक कर रही थी। धड़कने धीरे हो गई ,सब कुछ सामान्य हो गया था। मैं समझ गई थी। मैंने उसे बोला - क्या यह मजाक करने का टॉपिक है ।लेकिन क्यों ऐसा मजाक ,क्यों। उस लड़की ने बोला- सॉरी मेरे को ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए था। हां , ये ऐसा टॉपिक नहीं है। मुझे कुछ समझ नहीं आया ।मुझे बस करना था - क्योंकि सीनियर्स ने प्रैंक करने को कहा था। कॉलेज में आज मेरा पहला दिन है ।सीनियर्स ने कहा कि- मुझे तुम्हारे साथ ऐसा करना है। लेकिन मैं समझ सकती हूं ,कि तुम कैसा फील कर रही थी, लेकिन ये मेरी रैगिंग का एक हिस्सा था ,सॉरी । मैंने उसे देखा और उसकी आंखों में ही एक सच्चाई थी ।फिर मैंने उसे गले लगा लिया। और मैं समझ गई थी कि वह किस भंवर जाल में थी। मैंने उससे कहा - ठीक है, सब ठीक है। मैं समझ सकती हूं ।उसने मुझसे कहा कि - हम दोस्त बन सकते हैं। हां बिल्कुल मैंने कहा - हां ,हां बिल्कुल बन सकते हैं। मेरा नाम सखी है और तुम्हारा ।उस लड़की ने उत्तर दिया- मैं हूं काशी। अरे ,तुम्हारा नाम तो बहुत सुंदर है। अच्छा- काशी में कहा। मुझे तो ऐसा नहीं लगता। सखी ने कहा -- सच।
फिर हम दोनों ने कैंटीन में चाय पी और फिर अपनी क्लासेस जॉइन की। बहुत अच्छे दिन थे ।इतने में ही गिरधर भी वहां पहुंच गया। क्या चल रहा है, किस बात पर इतना हंसा जा रहा है। सखी ने कहा - कुछ नहीं ,कुशल ने कहा- कॉलेज की बातें कर रहे थे बस, और कुछ नहीं। गिरधर ने कहा- काफी समय बाद मैंने सखी आज को हंसते हुए देखा है। सखी ने उसे देखा और एक तीखी सी मुस्कान दी। अब पार्टी भी खत्म ही हो गई। गिरधर और सभी घर आ गए थे और कुशल भी अपने कमरे में था। पुरानी बातें सोच रहा था, कितने अच्छे दिन थे । कुशल कॉलेज के दिनों में डूबा हुआ था,सखी भी यही सोच रही थी कि कॉलेज के दिनों में कुछ अलग की बात थी। गिरधर पता नहीं क्या सोच रहा था ।बस आंख लग ही गई अब।