इसके पीछे भी बावळे के जीवन की रोचक कहानी है. बचपन में बावळा अपने नाना-नानी के पास रहता था. वह बहुत सीधा-साधा था. धारीदार कच्छा और छोटी शर्ट पहन, कंधे पर बसता लटकाए वह गुनगुनाता हुआ गांव की पगडंडियों से स्कूल जाता था. स्कूल दो-तीन किलोमीटर दूर था. इस दौरान वह गांव के लोगों की नक़ल करता हुआ अकेला ही इन अनुभूतियों का आनंद उठाता हुआ स्कूल चला जाता था. वह स्कूल में होने वाले नाटकों में, संगीत में बढ़-चढ़कर भाग लेता था. दिखने में वह बहुत भोला-भाला था किंतु उसके अंदर एक कलाकार हमेशा जीवित रहता था. घर में भी वह स्नान करते हुए जोर-जोर से गाने गाता रहता और अभिनय का अभ्यास करता रहता. उसे इस बात के लिए कई बार मार भी पड़ती थी किंतु वह भी ढीट्ठा था. अपनी बात पर अड़ा रहता था. गांव में ज्यादातर बच्चे गली-कुंचो में खेलते रहते हैं. बावळा भी उनमें से एक था. उस गांव के बच्चे उसे बहुत मारते हैं पर वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए फिर उनके बीच पहुंचकर खेलने लग जाता.
एक दिन बावळे को गांव के बच्चे बहुत मार रहे थे. बावळा जोर-जोर से चिल्ला रहा था. बार-बार ना मारने की गुहार कर रहा था किंतु गांव के बच्चे उसकी एक ना सुन रहे थे और पीटे जा रहे थे. तभी उधर से गुजर रही गांव की एक बच्ची ने बावळे को पिटते देखा तो दौड़कर उसकी नानी को यह बात बता आई. नानी अपनी लुगड़ी को संभालते हुए तेजी से दौड़ती हुई उस जगह आई जहां बावळे को पीटा जा रहा था. नानी को आता देख गांव के बच्चे बावळे को पीटना छोड़ भाग गए. बावळा लगभग बेहोश हो चुका था. 8 साल के मासूम बच्चे को नानी गोद में उठाकर घर ले आई. ठंडा पानी पिलाया. उसके घावों पर चूने-हल्दी का लेप किया और हल्दी वाला दूध पिला सुला दिया. बच्चे की हालत देखकर नानी की आंखों में आंसू आ गए, उसका दिल रो पड़ा. उसे अपनी छाती से चिपका, उसके उठने का इंतजार करने लगी. सांझ घिर आई थी. नानी ने बावरे को उठाते हुए संध्या-आरती करने को कहा. दर्द से कहराता हुआ वह उठ बैठा. उसका बदन बहुत दर्द कर रहा था पर उसने नानी को कुछ न बताया. शाम की दैनिक क्रियाएँ करने के बाद भोजन वगैरह करके बावळा नानी के पास ही लेट गया. दोनों की आँखों में आंसू थे. दोनों कुछ न कुछ सोच रहे थे. शायद सुबह होने का इंतजार ही उनके विचारों को रोकने वाला था.