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14.28% Something new daily / Chapter 1: Daitya jahaj
Something new daily Something new daily original

Something new daily

Autor: upendra_singh_1509

© WebNovel

Kapitel 1: Daitya jahaj

   पानी के बड़े जहाज़ में घूमने के नाम से ही लोगों का रोमांच

   बढ़ जाता है। खासकर मेरे जैसे लोगों

  का, जिन्हें रोमांच और ख़तरों से प्यार होता है। इसलिए ही

   तो मैं अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री को

   ताक पर रखकर नाविक बन गया और एक बड़े जहाज़

   पर काम करने लगा। काम थोड़ा जोखिम

   भरा तो था ही। अब भला ज़मीन पर पैर ना हो और ऊपर

   से आप चौबीस घंटे हिलते हुए पानी में रहते हों,

  तब कोई भी काम मुश्किल बन जाता है। मगर मैं उसके

   लिए तैयार था। मैं अपनी जिंदगी में कई देशों

  और अद्भुत जगहों पर घूमा हूँ। कुछ बेहद खूबसूरत, तो कुछ

   बेहद खतरनाक। और मेरा मानना है कि जो

  जगहें खूबसूरत नजर आती है, वहाँ खतरा सबसे ज्यादा

   होता है। परंतु आज-तक मैं

  कभी किसी ऐसी जगह पर नहीं गया जहाँ मुझसे पहले

   कोई न गया हो। इंसानों और उनके बनाए उपकरणों

   के सबूत मुझे वीरान से वीरान जगहों पर

  भी दिख जाती थीं और मुझे अब-तक एक ऐसी

   जगह पर जाने का इंतजार था, जहाँ मेरे अलावा

   दूसरा कोई भी न गया हो।

  यह सन् 1732 की घटना है। पाँच महीनों तक स्पेन में

   रहने के बाद हमने सफर की शुरूआत की ।

  जहाज़ में कुल 60 लोग थें। बहुतों को तो मैं जानता भी नहीं था। लोग बदल गए थें

  और कप्तान भी। हमारे कप्तान एक नौजवान व्यक्ति थे और उन्हें लंबी

  यात्रा का ज्यादा अनुभव नहीं था। उन्हें तो नक्शा

   देखने में भी परेशानी होती थी। जिससे   हमें बार-बार गलत दिशाओं में भटकना पड़ता था और समंदर

  में ऐसी ग़लतियाँ भारी पड़ सकती हैं। और यही हुआ। हम बारहवीं बार

   दिशा भटके थे और एक अनजान रास्ते पर

  कई दिनों से बढ़े चले जा रहे थें। कप्तान के मुताबिक हमें कुछ दिनों में

   आबादी दिखनी शुरू हो जाने वाली थी। और कुछ

  दिन बीत भी गए, मगर हमें सूखी ज़मीन कहीं न दिखी। मैं एक अनुभवी

   नाविक था और मैंने ऐसी बहुत सी यात्राएँ की है,

   जिसमें हम कई बार रास्ता भटके थें। पर कभी समंदर के उस हिस्से

   को नहीं देखा था, जहाँ उस दिन हमारा जहाज़ मौजूद था।

   तेज बहाव और साथ देती हवाएँ, हमें तेजी से आगे और आगे ले जा

   रही थीं। मगर हम जा कहाँ रहे थे, यह कोई भी

   नहीं जानता था। इन दिनों हमारे कप्तान भी अपने कमरे में रहा करते।

   उन्हें देखे हुए महीनों बीत गए थे। दूसरी तरफ

   उपकप्तान मिस्टर हँगस पहले ही हार मान चुके थे। पर कम से कम वो

   हमें कभी-कभी दिखाई दे जाते थे। गनीमत

   थी कि हमारे पास अब भी दो महीनों का राशन शेष था। चूंकि मैं जहाज़ पर

   इकलौता सबसे ज्यादा अनुभवी व्यक्ति

   था इसलिए जहाज़ की बागडोर मुझे संभालनी पड़ गई।

   मैंने अपने पिछले प्रभावशाली कप्तान सर जाँन सिल्वा से काफी कुछ सीखा था। मैंने

   उनके साथ 30 वर्षों तक काम किया था।

   और उनसे काफी बुनियादी बातें भी सीखी थीं। मैंने उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों

   में अपनी भूमिका बदलकर काम करते देखा

   था। मैंने भी वैसा ही किया। कप्तान बनने के फौरन बाद मैंने राशन में कटौती

   कर दी, जिससे हमारा राशन ज्यादा दिनों तक चल

   सके। फिर मुझे शराबों और उम्दा वाइनों पर भी नजर रखनी थी। नाविकों

   को अलग-अलग काम देकर चीजें आसान बनाने की

   कोशिश की और सफल भी रहा। नौसिखिये नाविकों को ज्यादा मेहनत

   और ज्यादा काम सीखने को कहा। फिर भी मैंने इस बात

   का पूरा ख्याल रखा कि सभी को भरपूर आराम मिले। पांच घंटे की नींद

   काफी थी। जहाज़ के भीतर सब कुछ संतुलित करने के

   बाद मैंने जहाज़ से बाहर का रुख किया। चीज़े अब भी जैसी की तैसी

   थीं। मैं पिछले कई दिनों से तारों के जरिये समुद्र में रास्ता

   तलाशने की कोशिश कर रहा था। मगर मुझे कोई कामयाबी नहीं

   मिली। सुनकर अजीब लगे लेकिन यह सच है कि दिशा बताने वाले तारे भी अपनी जगह बदल रहे थे।

   खैर उस रात मैं नक्शे को अपने हाथ में लिए बदलते तारों की चाल

   समझने की कोशिश कर रहा था। जब जहाज़ के मुख्य कप्तान

   अचानक ही वहाँ आ धमके। उनकी दाढ़ी बढ़ चुकी थी और वे

   नशे में भी लग रहे थे। फिर वे अपने घर को याद करते हुए जोर-जोर से

   रोने लगे। उन्होंने अपने आप को कोसना शुरू कर दिया। उन्हें

   समझ में आ गया था कि वे जहाज़ के कप्तान बनने के लिए तैयार नहीं

   थें। मगर अगले ही पल उन्होंने दूसरे लोगों को भी भला-बुरा

   कहना शुरू कर दिया। और मुझे बार-बार याद दिलाते रहे कि वो जहाज़ के

   असली कप्तान हैं। और सच पूछो तो मुझे उनकी बातें सुनकर

   जरा भी दुख नहीं हो रहा था। बजाय इसके मुझे

गुस्सा आ रहा था क्योंकि वो मेरे काम में बाधा डाल रहे थे।    मैंने कहा 'अच्छा होगा आप थोड़ी सी वाइन पीकर सो जाए। मैं

   कोशिश कर रहा हूँ और अगर आप मुझे

काम करने देंगे, तो शायद मैं कोई रास्ता निकाल भी लूँ।'    कप्तान ने कहा 'मेरे कमरे की सारी वाइन खत्म हो गई है।'

   'तो मैं और भिजवा देता हूँ। आप अपने कमरे में जाइए और इंतजार कीजिए।'

   ठीक है। पर तुम यह मत भूलना कि जहाज़ का असली कप्तान

   मैं हूँ, इसलिए तुम्हें हर

स्थिति में मेरी हर बात माननी होगी।    और अब जाकर मेरे लिए वाइन ले आओ।'

   'हाँ सर।' मैंने कहा और चुपचाप वाइन लाने, जहाज़ के सबसे निचले

   हिस्से की तरफ जाने लगा। उस हिस्से को खाव कहा जाता है।

   वहाँ भोजन का सामान, शराब और वाइनस रखी हुई होती हैं। दिन के वक्त भी

   यह हिस्सा अंधेरे में डूबा रहता था और रात में वहाँ

   बिना किसी रोशनी के कुछ भी देख पाना संभव नहीं था।

   खैर, वजह मेरे कप्तान रहे होंगे, जिनकी वजह से मैं वहाँ बिना

   लालटेन के पहुँच गया। मुझे तो बस इस बात की जल्दी थी कि

   मैं किसी भी तरह अपने कप्तान को वाइन देकर, उनसे अपना

पीछा छुड़ा लूँ। ताकि मैं फिर से तारों का अध्ययन कर सकूँ। मैं

   यही सोचता-सोचता अंधेरे में भी तेजी से आगे बढ़ता जा रहा

   था कि तभी मैंने अपने पीछे कदमों की आहट सुनी।

   'कौन है?' मैं फौरन पीछे मुड़कर बोला।

   पर कोई जवाब नहीं आया।

   अंधेरा होने की वजह से मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

   चूंकि मैं उस जहाज़ में कई सालों से काम करता आया था

   इसलिए मुझे यह अच्छे से मालूम था कि वाइन रखने की जगह

   कहाँ थी। मैं तो आँख बंद करके भी उस जगह को ढूंढ

   सकता था। और अगर मैं ऐसा नहीं कर पाता तो शराबों की

   सुगंध मुझे अपने तक खींच लाती। पर दोनों में से कुछ भी न

   हुआ। असल में मैं अपने ही जहाज़ में भटक गया था। मैं तो

   खाव में बुरी तरह से खो गया था। ना ही बाहर जाने का रास्ता

   नजर आता ना ही वाइन और राशन रखने वाली जगह

   मिल रही थी। मैंने अपने साथी नाविकों को आवाज़ लगाई, पर किसी

   ने भी पलटकर जवाब नहीं दिया। सचमें बड़ी अजीब बात

   थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं कहीं और आ पहुँचा हूँ।

   अचानक मुझे फिर से अपने पीछे कदमों की आहट सुनाई दी।

   मैं मुड़ा और डर के मारे अपनी जगह से हिल तक न पाया।

   एक भयानक दैत्य मुझसे एक कदम की दूरी पर खड़ा था।

   मेरी गर्दन ऊपर की तरफ उठी हुई थी और आँखें उस दैत्य

   पर टिकी थी। न जाने क्यों वह मुझे घोर अंधेरे में भी नजर

   आ रहा था। उस वक्त मैं उसके विशाल खोपड़ी को देख रहा था

   और दहशत मेरे रोम-रोम में घर करता जा रहा था।

   'रास्ता भटक गए हो?' उसकी भारी आवाज़ गूँजी।

   'हाँ।' मैंने कहा और उससे ज्यादा बोलने की हिम्मत न हुई।

   फिर वह अजीब ढंग से हंसा, जिससे मैं कांप उठा।

   वैसे मैं जिस भी जीवित प्राणी से मिलता हूँ, वह उसका

   आखिरी दिन होता है।' वह बोला।

   तो क्या आप मुझे मारने आए हैं?' मैंने हिम्मत जुटाकर कहा।

   'क्या तुम मरना चाहते हो?' उसने उत्तर न देकर मुझसे पुनः प्रश्न किया।

   'नहीं मैं मरना नहीं चाहता। अगर आपने मुझे मार दिया,

   तो मेरे साथ काम करने वाले लोग वापिस

   अपने घर नहीं जा सकेंगे। इस वक्त तो वे लोग मुझसे ही आशा लगाए बैठे है।'

   वह दैत्य फिर से मुस्कुराया और बोला 'तुम अपनी दुनिया से

   बाहर चले आए हो। यह हमारी दुनिया है। भूतों

   और प्रेतों की दुनिया। यहाँ से बाहर नहीं निकला जा सकता।

   मौत के मुँह से कभी कोई बाहर नहीं निकलता।'

   'आखिर मैं ऐसी जगह पहुँच ही गया, जहाँ मुझसे पहले कोई नहीं आया है।' मैं बड़बड़ाया।

   वह दैत्य तीसरी बार मुस्कुराया और बोला 'तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई।'

   मैनें उसकी तरफ देखा। वह थोड़ा झुका और मेरे चेहरे के पास आकर

   रुका। फिर उसने कहा 'मैं तुम्हें उस दिन

   से देख रहा हूँ, जब तुम हमारी दुनिया में आए थे। तुम जानते हो कि

   तुम कभी यहाँ से नहीं निकल सकते, फिर भी

   तुम मेहनत करते रहे और यहाँ से बाहर निकलने का प्रयास करते रहे।

   जिससे तुम्हारे ज़्यादातर साथी अब-तक

   आशावादी बने हुए है। तुमने राशन को भी बखूबी संभाला हुआ है, जो

   तुम्हें दो-तीन महीनों तक जीवित रख सकता है।

   सच कहूं तो मुझे तुम्हारी मेहनत पसंद आई। तुम अब भी सच्चे मन

   से काम कर रहे हो। यह जानते हुए भी कि लक्ष्य

   मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इसके बावजूद भी तुमने हार

   नहीं मानी है। अब-तक तो मैं इसी इंतजार में बैठा था कि

   तुमलोग कितनी जल्दी दम तोड़ोगे और मैं तुम सब को

   अपने साथ ले जाऊँगा। मगर तुम्हारी

   मेहनत देखकर मेरे विचार अब थोड़े से बदल गए हैं।'

   उसने मुझे वाइन की बोतल पकड़ाते हुए कहा 'जब तुम

   बाहर निकलोगे, तब तुम्हें समंदर में एक जहाज़ नजर आएगा। तुम्हें

   उसका पीछा करना होगा और वह तुम्हें तुम्हारी दुनिया

   तक ले जाएगा। ध्यान रहे, उस जहाज़ को अपनी नज़रों से ओझल मत

   होने देना।' यह कहकर वह दैत्य वहाँ से गायब हो

   गया और मुझे खाव से बाहर निकलने का रास्ता भी नजर आ गया।

   मैं फौरन जहाज़ के छत पर गया और सभी को समंदर पर नजर रखने

   के लिए कहा। मैंने देखा कि हमारे कप्तान अब भी

   अपनी वाइन का इंतजार कर रहे थें। मैंने उन्हें वाइन

   की बोतल थमा दी और जहाज़ से बाहर देखने लगा।

   कुछ पलों बाद धुंध के बीच हमें सचमें जहाज़ का प्रतिबिंब नजर आया।

   सभी एक साथ चिल्लाए 'देखो वह रहा जहाज़।'

   'उसे अपनी नज़रों से ओझल मत होने देना, जहाज़ को

जितनी तेज चला सकते हो चलाओ। उसका पीछा करो।'

   मैंने कहा। मेरे दिल की धड़कने तेज हो गई थी।

   सारे पाल चढ़ाकर हम तेजी से आगे बढ़े और धुंध में छुपे उस जहाज़

   का पीछा करने लगे। यह बस एक बार ही हुआ, जब हम

   उस जहाज़ के बेहद करीब आ पहुँचे थे। मैंने देखा कि उसे वही

दैत्य चला रहा था। अन्य नाविक उसे देखकर ईश्वर को याद

   करने लगे। उन्होंने जहाज़ की गति धीमी करनी चाही। पर

   मैंने जल्द ही कमान अपने हाथ में ले लिया और गति धीमी नहीं पड़ने दी।

   महज घंटे भर में हम वापिस अपनी दुनिया में आ पहुँचे।

   सभी इस बात को लेकर हैरान हो रहे थे कि कुछ देर पहले क्या

   हुआ था। हमने एक दैत्य के विशाल जहाज़ का पीछा किया

   था। जो अपने आप ही ग़ायब हो गया।

   मगर जल्द ही हमें वह टापू नजर आया। हम स्पेन आ पहुँचे थें।

   सबको यह देखकर बड़ी हैरानी हुई। हमने एक घंटे में

   महीनों का सफर कर लिया था। नाविकों के पूछने पर मैंने

   उन्हें वह सारी बातें बताई, जो मैं जानता था। कहानी सुनकर

   सभी रोमांचित हो उठे, उनके चेहरे पर खुशी थी। मैंने उस    दैत्य को मन ही मन धन्यवाद कहा और कई महीनों बाद स्पेन

   की मिट्टी पर अपने पैर रखे। जहाँ हमारे पहुँचने की उम्मीद ना के बराबर थी।

   "अगर आपका इरादा नेक है और आप ईमानदारी से

   मेहनत करना जानते हैं, तो बुरी शक्तियाँ भी आपको नुकसान नहीं पहुँचाती।"


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