माँ ने सख्त हिदायत दी थी कि खाना यहां आकर ही खा लेना. खाना तैयार कर लिया था. घर आ गया था. माँ दरवाजे पर आ गई थी. माँ बेटे का इंतजार कर रही थी. बेटे ने माँ के पैर छुए और साथ में सखी ने पांव छूकर आशीर्वाद लिया. माँ ने सखी को गले से लगा लिया. सखी को पास बैठा ढेर सारी बातें की. चाय-नाश्ते के बाद सबने खाना खाया. माँ ने बावळे से सखी व बाकी सब को खेतों में घुमा लाने को कहा. बावळा मन ही मन खिल उठा. उसके मन की मुराद पूरी हो गई थी. उसे 20-21 साल बाद सखी के साथ एकांत में बातचीत का अवसर मिल रहा था. वह सबको पैदल ही लेकर खेतों की ओर चल दिया. सखी का पति पगडंडी पर चलता हुआ काफी आगे निकल गया. दोनों बच्चे भी एक-दूसरे का हाथ थामें खेतों में दौड़ रहे थे. हरे-भरे खेत बच्चों को लुभा रहे थे. वे खेतों में खेलने लगे.
सखी, बावळे का हाथ थामे हौले-हौले उसके साथ चल रही थी. सखी, बावळे को अपने 20 साल का वृतांत बता रही थी कि वह एक पल के लिए भी उसे कभी नहीं भूली. उसने शादी जरूर की किंतु है उसके बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर पाई थी. बावळा, सखी के हाथ को अपने हाथ में कस के पकड़ लेता है पर कुछ कह नहीं पाता. अपने दर्द को बताते-बताते सखी की आंखें भर जाती है. तभी बावळे ने देखा सखी का पति और बच्चे आसपास दिखाई नहीं दे रहे. उसने दोनों हाथों में सखी का चेहरा लिया और उसके होठों को चूम लिया. सखी ने कोई प्रतिकार नहीं किया. उसका चेहरा लाल हो गया. बावळा उसके गालों को बेतहाशा चूमने लगा. दोनों प्रेमी एक पेड़ के नीचे बैठ गए. बावळा सखी की गोद में सिर रख लेट गया व दोनों बरसों पहले की बातों को याद कर बतियाने लगे. कभी वे उन यादों में खो जाते हैं. समुद्र के किनारे बैठ जाया करते थे. सखी का मन चाह रहा था कि समय ठहर जाए पर वक़्त कब ठहरता. ठंडी बयार में दोनों प्रेमी एक-दूसरे की बाँहों में समाये बैठे थे. तभी दूर से सखी की बेटी की आवाज़ सुनाई दी
"माँ, कहां हो?"
दोनों ने अपने आप को संभाला. दोनों भारी मन से उठ खड़े हुए. सब लोग घर आ गए. माँ ने सखी को ढेर सारी भेंट दी और फिर सब गाड़ी में सवार हो जयपुर की ओर चल दिए.