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90% "Holoom Almahdi".. (Jinno Ka ek Shahzada) / Chapter 9: "Jangle"

Kapitel 9: "Jangle"

उसकी आंख खुली तो वह नहीं जानती थी वह कहाँ है?उसके सर के ऊपर खुला आसमान था!और बदन में जैसे कांटे गढ़े हुए थे!वह कराहती हुई उठ गई!हैरत से चारो तरफ का जायज़ा लिया!अँधेरा घनघोर था!आसमान के सितारों के सिवा कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था!बस अहसास हो रहा था कि वह किसी झाड़ियों के बीच थी!शायद घने जंगल के!डर के मारे वह सीधी खड़ी हो गई!"कोई है???यास्मीन...उमर..."उसने चिल्लाकर पूछा!जवाब में गहरा सन्नाटा!किसी जानवर की भी आवाज़ दूर दूर तक नहीं थी!बस जैसे उसकी अपनी ही आहटें और साया अपने साथ था!"पूजा..."सब ही नाजाने कहाँ थे?अपनी बेबसी पर उसका गला भर आया था!ऐसी खौफनाक जगह वह आई केसे ?सब कहाँ थे!? वह कहाँ थी?तभी किसी के चलने की आहट उसे सुनाई दी थी!एक दूसरे से लिपटी झाड़ियां तेज़ी से खुद बा खुद अलग होकर आने वाले को रास्ता दे रही थीं!वह ख़ौफ़ से थोड़ा और पीछे हो गई!"कौन है वहां ?"उसने फिर चिल्ला कर पूछना चाहा मगर डर के मारे आवाज़ दबी की दबी रह गई!गहरा काला अँधेरा भी जैसे उसके साथ चल रहा था जो आसमान ले सितारों को अपनी ओट में छुपा रहा था!यह खौफनाक मंज़र देखकर उसका सारा का सारा बदन कंपकपाने लगा!आने वाली की आहट ऐसी थी मानों 1000 भेंसो का झुण्ड एक साथ चल रहा हो!"कौन हो तुम ?"वह सिर्फ अपने आप से ही जैसे यह सवाल किये जा रही थी!मगर अगला मंज़र उसके लिये और ज़्यादा खतरनाक होने वाला था!जब उसने आने वाले का चेहरा देखा!वह एक लम्बा चौड़ा राक्षस था!हाथी जैसे मोटे पैर..बेहद बड़ा मुँह जिसपर सिर्फ एक ही आंख थी!काली और तेज़ चमकदार आँख! नाजाने कितने लम्हों तक वह हिल डुल भी नहीं पाई!जैसे आज सचमुच में शैतान देख लिया था!उसकी आंखें फट गई थीं!वह तो किसी जानवर को सोच रही थी मगर यह क्या बला थी!?उसने एक और क़दम अमल की तरफ बढ़ाया तब जैसे वह होश में आई!और चिल्लाती हुई भागी थी!"बचाओ...उमर.....पूजा...यस... यास्मीन"बदन में जैसे जान नहीं थी बस मानों कोई ताक़त थी जो उसे भगा रही थी!उसके पीछे आते शैतान के चलने से ज़मीन हिल रही थी!जिसकी वजह से अमल बार बार गिर रही थी!उस शैतान ने ज़ोर से सर को झटका था!अमल में भागते भागते उसकी भोंडी आवाज़ सुनी!और एक पेड़ उसके ऊपर गिरने लगा!वह जल्दी से पीछे हुई!मगर उसका रास्ता रुक गया था!दूसरे की पल उस राक्षस ने अमल को गर्दन पकड़ कर उठाया और एक पेड़ से आधा लटका दिया!वह हाथ पैर पटख रही थी!सब तरफ अँधेरा था!उस राक्षस की नहूसत का अँधेरा!उसके हाथ में लटकी  हुई अमल बस एक किसी रोटी का टुकड़ा लग रही थी!उसने अपनी लम्बी बदबूदार ज़बान निकली और अमल के मुँह पर फेरी!मोत उसके कितना क़रीब थी!वह महसूस कर सकती थी!होलूम अल्माहदी ऐसे शैतानी लोगों के हाथो उसे मरवाएगा उसने सोचा नहीं था!साँस आना मुश्किल हो रहा मगर वह लगातार छटपटा रही थी!तभी उसकी आंख से एक तीर की शक्ल जैसा हथियार निकला था और उसकी तेज़ नोक अमल के माथेआ लगी!उसकी नोक उसके माथे में घुस रही थी!दर्द से वह चिल्लाने लगी!तभी घोड़े की टाप की तेज़ आवाज़ ने राक्षस को रुकने पर मजबूर कर दिया!उसका आंख से निकला घूमता हुआ  हथियार रुक गया था!अमल घोड़े की आवाज़ तो नहीं सुन सकी थी!लेकिन आसमान पर फैली काली स्याही को नीली रौशनी के अंदर समाते उसने देखा था!घोड़े की टाप तेज़ हो गई थी!.."ओह्ह...तो तुम आ ही गए"राक्षस ने भोंडी मगर ख़ुशी भरी आवाज़ में कहा!"अब तो इस लड़की को मारने में और आएगा  मज़ा.."अमल जैसे बेजान हो गई थी!बस उसके कान और आंखें जाग रही थी!चाँद की रौशनी में घोड़े ने आगे के दो पैर उठाकर हिनहिनाया था और उसपर सवार साये के साथ चाँद की रौशनी कुछ और तेज़ हुई थी!उसका आधा चेहरा ढका हुआ था मगर नज़र आती आँखों से निकलती नीली रौशनी से जैसे सीधा वार अमल की निगाह और उस राक्षस की एक आँख पर किया था!वह बिलबिला उठा था!"लड़की को छोड़ दे!ऐ  राक्षस!वरना हमारी तलवार से दुश्मनी बेहतर नहीं" अमल ने गरजदार आवाज़ सुनी!सारा जंगल नीली रौशनी से भर गया था मगर सितारे और चाँद नज़र आ रहे थे!राक्षस ज़ोर से हंसा था और जानबूझ कर 20 22 फुट ऊँची अमल को वहीँ से छोड़ दिया था!

वह जैसे ही नीचे की तरफ गिरने लगी!उसकी दहशत भरी चीख़ जंगल की आग की तरह फेल गई!पेड़ से सख्त तने पर घिसटती उसकी कमर ज़ख़्मी होने लगी थी!बालों को जैसे कोई बहुत ज़ोर से खींच खींच कर उसके सर से तोड़ रहा था!"छोड़ दिया!शाहज़ादा होलूम" राक्षस ने मदभरी आवाज़ में उसकी तरफ देखते हुए यूँ कहा जैसे उसका कहना माना हो!शाहज़ादा होलूम  का हाथ ग़ज़ भर लम्बा हो गया था!ताकि अमल को थाम सके!मगर राक्षस ने उसका हाथ वहीँ पकड़ लिया था!और उसे ज़ोर से खींचकर दूर फ़ेंक दिया था!घोड़े से गिरते हुए शाहज़ादा होलूम ने ज़ोर से कहा!"काज़" घोड़ा फ़ौरन हिनहिनाया और पेड़ की तरफ दौड़ लगा दी!राक्षस घोड़ेे के इन्तिज़ार में था!जैसे ही घोड़ा उसतक पंहुचा!उसने अपने मोटे मोटे हाथ उसकी तरफ उठाये जिनसे चिंगारी निकल रही थी!शाहज़ादा होलूम ने वापस उठते हुए ज़ंजीर उसके पेरो में डाल कर खींच दी थी!राक्षस धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ा!उसकी चिंगारियों ने जाने कितने पेड़ो के पत्तों को आग लगा दी थी!काज़ पेड़ के नीचे खड़ा हो गया!अमल उसके ऊपर आ गिरी!काज़ की पीठ पर मुलायम गद्दी थी!मगर कमर के ज़ख्मों का दर्द उसे बेहाल किये हुए था!दोनों हाथो में तलवारे लेकर शाहज़ादा होलूम राक्षस पर कूद गया था!ना जाने कितनी देर उन दोनों के बीच एक खतरनाक लड़ाई चलती रही!आखिर कार शाहज़ादा होलूम ने उसकी गर्दन ही धड़ से अलग कर दी!"कहा था हमारी तलवार से दुश्मनी बेहतर नहीं" उसने गिरते हुए राक्षस को देखते हुए कहा और अपनी तलवारें साफ़ करने लगा!


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