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33.66% यंग मास्टर गु, प्लीज बी जेंटल / Chapter 101: मोर कृप्या शांत रहो, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाऊँगा

Kapitel 101: मोर कृप्या शांत रहो, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचाऊँगा

Redakteur: Providentia Translations

क्या वह सच में आज रात उसे अपना कौमार्य देने वाली थी?

लेकिन उसके पास पहले से ही लू क्युअयर है।

टैंग मोर का नाजुक शरीर एकदम से कठोर हो गया और वह चिल्लायी, "अध्यक्ष गू, रूको! मैं यह नहीं चाहती!"

गू मोहन ने अपना सिर उठाया और दर्द में होने की शिकायत करने के बाद उसे देखा। गू के सुंदर और बेरूखे दिखने वाले चेहरे के भाव तनावग्रस्त और खिंचे हुए थे|

 उसने अधीर स्वर में पूछा, "अब क्या हुआ है?"

"अध्यक्ष गू, मैं इसे वापस ले रही हूँ। मैं ऐसी हालत से नहीं गुजर सकती।"

उसने इससे पहले भी आधे में ही छोड़ दिया था और इस बार भी इसे रोकना चाहती थी। गू मोहन संतुष्ट नहीं था और इसीलिए उसने होंठो से खून बहने के बावजूद भी कहा, "मिस टैंग, मैं लगभग आधे में हूँ और तुम इसे अचानक रोक देना चाहती हों। क्या तुम मुझसे मजाक कर रही हो?" हहम्? "

टैंग मोर अभी भी अपने सिद्धांतों के खिलाफ जाने में सक्षम नहीं थी। वह अभी भी किसी का घर बर्बाद करने वाली या रखैल बनने की इच्छुक नहीं थी। यह उसे नैतिक रूप से अस्वीकार्य था और वह असली और मासूम संबंध रखने के अपने आदर्शों को बर्बाद नहीं करना चाहती थी। उसने जवाब दिया, "अध्यक्ष गू, आपने मुझसे वादा किया था कि जब भी मैं चाहूं, मैं इसे रोक सकती हूँ, अब मुझे जाने दो।"

वह बेचैनी से संघर्ष कर रही थी, उसका नाजुक शरीर गू के शरीर के चारों ओर एक एनहाइड्रिस सांप की तरह फिसल रहा था। टैंग मोर उसकी मौत बनने वाली थी। गू मोहन ने मन ही मन में उसे गाली दी। वह देर सवेर इस छोटे से प्राणी के कारण दुख भोगने वाला था।

"टैंग मोर, अब बहुत देर हो चुकी है, तुमने अब सब कुछ रोकने का अधिकार खो दिया है!"

टैंग मोर को यह अब और नहीं चाहिए था, उसे लग रहा था जैसे वह उसका बलात्कार कर रहा है क्योंकि वह अपनी मर्जी के खिलाफ यह सब कर रही थी। उसने चिल्लाते हुए उसे अपनी दोनों मुट्ठियों से मारा, "अध्यक्ष गू, गू मोहन, मुझे जाने दो, मुझे मत छुओ!"

वह सहयोग नहीं कर रही थी और गू मोहन की नसें फूल रही थीं। वह उसे पाने के लिए दृढ़ था।

जल्द ही उसे एहसास हुआ कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है। "आह !!" वह चिल्लायी और अचानक रोने लगी, जैसे कि उसके तार टूट गए थे। उसका नाजुक शरीर अकड़ गया था और उसने बिना किसी हिचकिचाहट के उसकी हथेली को काट खाया।

काटे जाने के कारण वह लहूलुहान हो गया। अगर ऐसे हालात में वह उसके मांस का एक पूरा टुकड़ा काट देती और अपने जंगलीपन में उसे चीर कर अलग कर देती तब भी गू मोहन को आश्चर्य नहीं होता ।

उसने अपनी हथेली को बाहर खींचा और उसके सिर को अपनी छाती में कस कर पकड़ लिया। उसने तड़पते हुए उसे काटना जारी रखने दिया। वह अपनी गहरी और कर्कश आवाज़ के साथ अचानक चिल्लाया, "टैंग मोर, जाने दो!"

वह एक इंच भी आगे बढ़े बिना उसे काटती रही, ऐसा लगा था जैसे उसे सांस लेने की भी जरूरत नहीं थी।

गू मोहन का दिल टूट गया था, उसने मोर बेचैनी को शांत करने की कोशिश करते हुए उसके रेशमी बालों को चूमा और कहा, "मोर,कृपया शांत हो जाओ । अब जाने दो, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाऊगा, मैं केवल तुमसे प्यार करूंगा!"

लगभग 10 सेकंड बाद, टैंग मोर ने अस्थायी रूप से उसाक हाथ छोड़ दिया और पीछे की ओर चली गई। उसने अपना सिर उठा लिया और निर्जन अवस्था में उसे निहारती रही। उसका चेहरा आँसुओं की धाराओं से ढँक हुआ था और उसकी आँखें लाल और फूली हुई थीं।

गू मोहन ने उसे अपने पास खींच लिया और अपनी दो बड़ी हथेलियों से उसके छोटे चेहरे को पकड़ लिया क्योंकि उसने अपनी गहरी और सिकुड़ी हुई आँखों के माध्यम से कुछ देखा। वह पुरुषों के द्वारा जबरदस्ती को लेकर बेहद संवेदनशील लग रही थी, उसने बिल्कुल अलग तरीके से व्यवहार किया। उसने खुद को ही अपनी ढाल बना लिया था और स्वयं जैसा व्यवहार ना करते हुए खुद को छुपा रही थी।

"टैंग मोर, क्या तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो?" उसकी तेज नज़रें मोर की आत्मा को भेदने वाली थी।

टैंग मोर की बेजान पुतलियों ने धीरे-धीरे सम्भलना शुरू कर दिया। वह हवा के लिए हांफ रही थी, यह गू मोहन था और वह बदमाश नहीं!

वह अपने छोटे हाथों से उसकी गर्दन पर चढ़ गई और फिर अपने छोटे से चेहरे को उसकी चौड़ी छाती में छुपा लिया । उसने अपनी शर्ट के कॉलर के सामने अपने हथेली के आकार के चेहरे को बिल्कुल एक बिगड़ेल बिल्ली के बच्चे की तरह सहलाया ।

वह उस पल में घबरा गई थी, डरी हुई थी कि वह बदमाश अचानक दिखाई देगा।

यह वह नहीं है ... यह वह नहीं है।

गू मोहन की साँस भारी हो गयी थी और ऐसा लग रहा था जैसे उसके गले को गर्म लकड़ी का कोयला से रगड़ दिया गया था। वह नहीं जानता था कि ऐसी स्थिति में मोर के साथ कैसे पेश आना चाहिए। 

वह हमेशा से जिद्दी रही थी, जिस दिन से वह उससे मिला था, उसके चारों ओर चक्कर लगा रहा था, लेकिन वह बस पहुंच से बाहर थी। उसने कोमल आवाज़ के साथ उसे सांत्वना दी, "मोर, अब सब कुछ ठीक है। डरो मत, मैं यही हूँ।"

उसकी सांत्वना सुनकर टैंग मोर का दिल धड़क गया। उसने अपना सिर ऊपर उठा लिया और पहला कदम बढ़ाते हुए उसने उसके पतले होंठों को चूम लिया।


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