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66.66% बाते कुछ अनकही सी / Chapter 1: Unnamed

Kapitel 1: Unnamed

शाम होने को आई थी और धूप अभी तेज थी ।इतनी कड़कती धूप में भी एक बुजुर्ग अपने आंगन में बैठे थे ।आंगन में कही तरह के फूल और पौधे थे ।आंगन का एक कोना घर से लगा था जहा छत थी उसी के करीब एक बड़ा पेड़ था सांगरी का जिसमे से हल्की हल्की धूप छान कर आती थी ।पूरा बगीचा बड़ी दीवारों से बंध था बुजर्ग आदमी वहा बैठे चाय के साथ हल्की धूप का मजा ले रहे थे ।कड़ी धूप में हवा जो गरम है वो जाली के लिपटी बेलो के जरिए हल्की ठंडी पड़ जाती है । हवा ठंडी पड़े भी क्यू ना आखिर बुजुर्ग आदमी ने नोकर को के जो रखा है हर आधे घंटे में जाली के ऊपर लटकती बेलों और सूती दुप्पटे को भिगोया करे । बुजुर्ग आदमी अपनी चाय खतम ही किए थे की बाहर से गाड़ी की आवाज आई जो अंदर आते ही सीधे गैराज में गई ।थोड़ी देर बाद गैराज से मुराद ,अरशद और हयाती आए ।तीनों को देख बुजुर्ग आदमी खुश हो गया और अपनी जगह खड़ा हो कर अपनी बाह फैला ली " ओय मेरा बच्चा इधर आओ "

अरशद उस बुजुर्ग की बात सुन उनकी तरफ दौड़ने लगा और जाकर उनसे लिपट गया "ओय नानू "

नानाजी पहले तो उसे कसकर गले लगाते है फिर उसे पीछे धकलाते है और गुस्से में कहते है "ओय इंसान का बच्चा तमीज भूल गया तू न सलाम ना दुआ "

मुराद और हयाती भी वहा आ जाते है और हयाती अरशद को चिढ़ाते हुए नानाजी के पास जाती है और कहती है "सलाम अलीकुम बड़े नानू "

अरशद को थोड़ा गुस्सा आता है ।मुराद और अरशद दोनो ने अपने नाना को सलाम किया ।और अरशद ने हयति को पीछे कर अपने नाना के कंधे पर हाथ रख कर कहने लगा "लाले लगता है मेरे जाने के बाद तुझे कोई परेशान करने वाला। नही है तभी तो तू इतना हट्टा गट्टा हो गया " ये सुन सभी हसने लगते है ।

मुराद अरशद के कान पकड़ के डाटते हुए कहता है "अपने नाना को ऐसे नाम लेकर कोन पुकारता है ।"

"ओए छोड़ मेरे नाती नू ये मेरा नाती है चाहे मुझे लाले पुकारे या मेरा पूरा नाम लाला चौधरी कहे तुझे क्या " नानाजी ने मुराद का हाथ अरशद के कानो से हटाते हुए कहा ।

"आप लोग बाते करे में थक गई हु इसीलिए सोने जा रही हु"हयाती ने कहा।

"ओए मेरा बच्चा कदर जा रहा है ।इधर आओ जरा हमसे बाते करो" नानाजी ने कहा

"मेरे पास बाते करने के लिए कुछ नहीं है , कोई पुरानी याद भी नहीं है "हयाती ने कहा ।

"पुरानी याद है मेरे पास ,तेरी मां की ।उसके बारे में भी कोई बात नही करनी तुझे "नानाजी ने कहा ।

हयाती वही ठहर जाती है उसकी धड़कन तेज हो जाती है एक पल के लिए वो भावुक हो जाती है जब वो मां सुनती है "आप बताएंगे मुझे मेरी अम्मी के बारे में "हयाती के आंखे में आंसू थे और आवाज भी नम थी ।

"हमारे साथ बैठा तो बताए ,क्यू बैठेंगी हमारे साथ आप दो पल के लिए "नानाजी कुर्सी पर बैठते हुए कहते है ।

हयाती उनकी तरफ चली जाती है वही कुर्सी पर बैठ जाती है साथ मुराद और अरशद भी आ जाता है।

हयाती "अच्छा बताए ना मेरी अम्मी की बारे में ,वो कैसी थी ,कैसे बोलती थी ,कैसे कपड़े पहनती थी ,में...मुझे बताए किया में उनकी जैसी दिखती हू या मेरी कोई बात या मेरा कोई हिस्सा जो अम्मी से मिलता हो ....।

"अरे बस बस ।रुक जाओ पहले इत्मीनान से मुझसे तो बाते करलो।"नानाजी ने कहा ।

"हयाती तुम बहुत एक्साइटेड हो ना अपनी अम्मी के बारे में जानने के लिए " मुराद ।

"हा । में यहां इसीलिए लिए आई थी । मुझे आए एक सप्ताह हो चुका है पर किसी ने भी मेरी अम्मी के बारे में कोई बात नही की।मेने कोशिश की थी बात करने की पर सबने ताल दिया ।इसलिए शायद आज जब नानू ने अम्मी का जिक्र किया तो में exited हो गई i am sorry।" हयाती ने कहा ।

"हयाती मेरा बच्चा तुम उनकी बातो का बुरा मत मानो ।"नानाजी ने कहा ।

"इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है । अब आप अचानक से उनके सामने मुझे रख देंगे और कहेंगे की ये मेरी नवासी है । इसका ख्याल रखना ।"हयाती थोड़े ड्रामा करती हुई कहती है । इसके आगे वो कुछ बोलती उससे पहले ही नानाजी उसकी बात काटते हुए कहते है"बिलकुल अपनी मां जैसी हो रोना आ रहा है पर रो नही रही हो "

हयाती नाना जी के तरफ ऐसे देखती है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई ।

नानाजी " हयाती तुझे पता है पूरे खानदान में उस वक्त अकेली तेरी मां थी जिसने 12 तक पढ़ाई की थी ।तेरे नानू यानी मेरे छोटे भाई जमशेद ने उसे सब से लड़कर पढ़ाया वो इसे और भी पढ़ाना चाहता था पर उससे पहले ही वो इस दुनिया से रुखसत हो गया ।मां बिन तो जैसे तैसे वो जी गई पर बाप के जाने के बाद वो टूट गई किसी से भी बात नही करती थी हमेशा उस पुल वाले घर में बिन बताए चली जाती ।मेने पूछा के क्यू जाती है वहा तो कहती के ताया अब्बा वहा अपना सा लगता है ऐसा लगता है जैसे अम्मी , अब्बा दोनो वहा हो ।

इतना कहते कहते नानाजी की आंखे नम हो चुकी थी ।

"छोटे नानू और नानी की वफात कैसे हुई नानू " अरशद ने पूछा ।

"तेरी नानी को लकवा लगा गया था जब तेरी मां छोटी थी।5 साल तक वो बस यूंही सोती रही जब होश आया उसे तो बस अपने शौहर और बेटी को देख उसने अपना दम वही तोड़ दिया ।और जमशेद तो उसी दिन मर गया होता जब उसकी बीवी को लकवा लगा था । बस जी रहा था इसी आशा में के कभी न कभी उसकी बीवी एक दिन जरूर उठेगी ।लेकिन वो उठी और हमेशा के लिए से गई साहिबा उस वक्त 6 या 7 बरस की थी । जमशेद बस अपनी बेटी के लिए ही जी रहा था ।लेकिन शायद तेरी मां के भाग्य में खुशी ज्यादा नहीं थी एक कार एक्सीडेंट में जमशेद भी बुरी तरह घायल हो गया। उसके सिर पर चोट लगी थी जिसकी वजह से उसके सिर से खून बहे ही जा रहा था ।डॉक्टर्स ने अपने हाथ खड़े कर लिए उसकी मरहम पट्टी के बाद जब उसे ये पता चला के वो अब बस चंद मिनटों का मेहमान है वो हॉस्पिटल से भाग गया पुलिया के पास ।इत्तेफाक से हमारी शाहिबा भी वहा थी ।जमशेद अपनी बेटी को गले लगा कर खूब रोया ।इतना रोया की हम भी उसे रोता देख रोने लगे थे वो अपनी बेटी को यू पकड़े रखा था जैसे वो लड़ जाएगा खुदा से ।लेकिन वो लड़ नही सका।शाहिबा इन सब बातो से अनजान की उसके बाबा क्यू रहे है ।वो बस दिलासा दे रही थी अपने बाबा को कहती है "बाबा नही रोए।जब आप रोते है न तो मुझे भी रोना आता है । उस वक्त से लेकर अगली दिन के मगरिब के वक्त तक दोनो बाप बेटी साथ थे ।जमशेद उसे अपने साथ नदी घाट ले गया और भी कही जगह ले गया जहा जमशेद अपनी मरहूम बीवी से मिलता था चुपके चुपके ।जमशेद ने एक पल के लिए भी अपनी बेटी को अपनी नजरों से गायब नही होने दिया वो अपना आखिरी वक्त सिर्फ अपनी बेटी को देना चाहता था ।अगले दिन मगरिब के वक्त हम सब नमाज पढ़ के घर आए ही थे की साहिबा के रोने की आवाज आ रही थी जा कर देखा तो जमशेद वही अपनी बेटी को अपनी बाहों में लपेटे किसी और दुनिया में जा चुका था । शाहीबा बस रो रही थी । उसके बाद से वो बच्ची जैसे हमेशा के लिए शांत सी हो गई थी । ना किसी से बात न राबता । बस एक में ही था जिससे कभी बात करलेटी थी ।मेरे किसी भी सवाल का जवाब उस बच्ची ने नही टाला मेने जब पूछा उससे के तुझे कैसे मालूम हुआ के तेरे अब्बा तुझे छोड़ गए ।तू ये भी तो समझ सकती थी ना की वो सो रहा है । ये सवाल सुन कर अगर कोई और होता तो वो रो लेता लेकिन वो बच्ची नही रोई बिना जीझक के वो बोली "अब्बा मुझे गले लगा के जो बैठे थे।उनकी सास और धड़कने साफ सुन सकती थी और तो और वो मेरे साथ इतनासारा वक्त एक साथ गुजार रहे थे मुझे ऐसे देखते थे जैसे की आखिरी बार हो मुझे ऐसे खिला रहे थे जैसे आखिरी निवाला हो ,मुझे ऐसे प्यार कर रहे थे जैसे कोई उनसे मुझे छीन रहा हो ।उस वक्त उनकी हरकते ,उनके बोल सब ऐसे लग रहे थे जैसे की कोई एक दूर जाने वाला है । उस वक्त बाबा मुझे गला लगा कर कहा की मेरी गुड़िया अगर में कही चला जाऊ तो घबराना मत ।कभी ऐसा लगे के कोई तेरा नही तो बस अपनी दिल की सुनना।में और तेरी अम्मी हमेशा तेरे दिल में रहेंगे ।

तू हमारा अंश जो है । मेने जब उनसे पूछा "आप कही जा रहे हो बाबा " तो वो रोने लगे और माफि मांगने लगे मुझे उसी वक्त अहसास हो गया था की वो मुझे छोड़ कर जाने वाले है में भी उनके साथ रोने लगी ।दोनो रो रहे थे बिना कुछ बोले बस रो ही रहे थे फिर अचानक से बाबा के रोने की आवाज बंद हो गई और उनकी धड़कन भी बंद हो गई ।

नानाजी " ये सब सुनकर में खुद रो गया लेकिन उसकी आंखो से एक आंसु तक नही निकला । किस्मत ने उसे इतनी बार लूटा की वो कभी संभल ही ना पाई ।दो या तीन बरस के बाद उसने मेरे सामने एक लड़के को लाकर खड़ा कर दिया और मुझसे कहा के इजाजत चाहिए आपसे वो लड़का कोई और नहीं ठाकुर हुकुम सिंह था । साहिबा उसे पसंद करती थी ।में ये नही जानता वो कैसे मिले ,कहा मिले कुछ नही ।पहले तो मेने मना कर दिया क्युकी वो हिंदू था ।लेकिन उसी वक्त तेरी मां साहिबा वही अपनी घुटनो के बल बैठ गई और रोने लगी कुछ न बोली सिर्फ रोने लगी ।में हैरत परेशान था क्युकी साहिबा अपने बाप के इंतकाल के बाद से जैसे चुप सी हो गई थी ना कोई रोना ,ना हंसना ,ना कोई चाहत कुछ भी नही करने वाली आज मेरे सामने एक गैर मुस्लिम के लिए रो रही थी ।और में मना भी न कर सका मेंने उसे इजाजत दे दी। मेरे इस फैसले से घर में काफी हंगामा हुआ । बात पुरे गांव में फेल गई और बिरादरी वालो ने तो हमे बिरादरी से बाहर कर दिया ।मेने तेरे बाबा हुकुम सिंह से साहिबा का निकाह करा दिया और उन्हें कही दूर जाने को बोल दिया । हुकुम सिंह उसे यह से कही दूर ले गया किसी को भी खबर नही थी की वो कहा है 1 साल बाद जब मामला शांत हो गया तब तेरी मां वापस इसी गांव में आई तब तू उसकी कोख में थी ।वो आई मुझसे मिलीं,सबसे मिली पर किसी ने उसे ठिकंसे बात तो छोड़िए देखा भी नहीं ।वो दोनो गांव के अंदर नही रह सकते थे इसीलिए पुलिया से कुछ 1 मील दूर हुकुम ने एक घर ले लिया और....

नानाजी इससे आगे कुछ बोलते उससे पहले ही एक भरी आवाज दहाड़ जैसी पीछे से आई "ये क्या सीखा रहे है आप बच्चो को " ये आवाज हमीद की थी जो हयाती के बड़े मामा थे ।हमीद अपने अब्बा के पास आए और अपनी भरी आवाज को धीमे स्वर में कर के कहा "ऐसी बीती बातों को क्यू खोलना जो सिर्फ सर्द देती हो , जो सिर्फ रिश्ता में जहर गोले "।

हमीद की आवाज सुन कर तीनों बच्चे अपनी जगह खड़ा हो गए ।मुराद और अरशद ने तो अपने सिर झुका लिए लेकिन नानाजी अपनी जगह ही बैठे रहे।

"जहर तो रिश्तो में तब भी आता है जब दौलत का रुतबा अपनो से ऊपर हो जाए ।"नानाजी ने हमीद को टोंट मारते हुए कहा।

"अब्बा जी क्या आप इस बात को यही दफन नही कर सकते ।" हमीद ने गुस्से में कहा। नानाजी हमीद के सवालों का कोई जवाब देते उससे पहले ही अंदर से एक औरत सादगी से बाहर आती है जिसका लिबास भी सादगी से भरा था सिर पर दुप्पटा सलवार कमीज पहने वो औरत हमीद के पीछे खड़ी थी सब सुन रही थी ।उसने अपनी कोमल आवाज में कहा " भाईजान रहने दे बेहस करने का कोई फायदा नही है "।

सभी उसी औरत को तरफ देखने लग जाते है ।अरशद वहा से हठ कर उस औरत के पास चला जाता है और उसके गले लगा लेता है " i missed you so much मेरी जान "

"मम्मा ने भी आपको बहुत याद किया " इस औरत ने अरशद के बालो को सहलाते हुए कहा ।

"जोया बच्चो को अंदर ले जाओ "हमीद ने कहा।

"नानू तो बस मुझे अम्मी के बारे मे बता रहे थे "हयाती ने शिकायत करते हुए कहा ।

"जोया बच्चो को अंदर ले जाओ "हमीद ने इस बार गुस्से में कहा ।

हमीद का गुस्सा देख मुराद हयाती का हाथ पकड़ लेता है और उसे अंदर ले जाता है जोया और अरशद भी अंदर चले जाते है ।

"कब तक छुपाओगे उस बच्ची से उसकी मां को " नानाजी ने कहा ।

"में कुछ नही छुपा रहा ।में तो बस अपनी बहन की खुशी चाहता हु ।और आप उसकी खुशियां तबाह व बर्बाद नही कर सकते ।" हमीद ने कहा ।

"जीन खुशियों की नीव ही झूठ पर हो वो कैसे आबाद होगी " नानाजी ने कहा ।

"अब्बा जी अगर आप साथ दे तो क्या नही हो सकता "हमीद इतना कहकर वहा से चला जाता है ।नानाजी वही बैठे रहे शांत ।

"हमीद की बात का बुरा मत मानो हयात " जोया ने कहा ।

"हयाती , हयाती नाम है मेरा ।मुझे पसंद नही के मुझे कोई हयात बुलाए सिवाए कुछ लोगो के "। हयाती गुस्से में थी लेकिन उसने अपनी निगाहे झुकाते हुए कहा ।

"क्या फर्क है हयात और हयाती में हा ? बताओ " अरशद ने छिड़ते हुए कहा ।

" रहने दो बेटा ,उसे पसंद नही है तो न सही ।" जोया ने कहा

"नही अम्मी ये पसंद या नापसंद की बात नही है ,ये बात सलीके की है ।और हयाती तुम इस तरह से अम्मी से बात नही कर सकती ।माफी मांगो अभी " मुराद ने हयाती को डाटते हुए कहा ।

हयाती को अब और ज्यादा गुस्सा आ रहा था उसने ये बात पहले दिन से साफ करदी थी के हयाती बुलाया जाए और ऊपर से मुराद उसे डांट रहा था हयाती चुप नही रही उसने कहा "मेने ये बात पहले ही क्लियर कर दी थी ।तो क्या मसला है ।

"अब तुम तीनो झगड़ना बंद करो ।और तुम दोनो (जोया हयाती और मुराद की तरफ इशारा करती हुई कहती है) आपस में मेल जोल बढ़ाओ न की उलझन पैदा करो कुछ दिनों में मांगनी है तुम्हारी ।"जोया ने कहा ।

अरशद हैरानी से बोलता है "कुछ दिनों से आपका क्या मतलब है इंगेजमेंट तो 1 महीने बाद है न "

"1 महीने बाद थी पर हयाती के दादाजी ने जल्दी करने को कहा है ।उन्होंने कोई वजह बताई मुझे ठीक से याद नही " जोया ने कहा।

"दादू ने " हयाती ने हैरानी से कहा ।

"हा तुम्हारे दादू ने " पीछे से कोई बोला ।

आवाज की और सब ने देखा वहा एक महिला थी जिसने लंबा लाल कुर्ता और सफेद सलवार पहनी थी सिर पर सफेद दुपट्टा था वो एक दीवार के सहारे खड़ी थी उसका चेहरा गोल और सावला रंग था आंखे बड़ी और काली थी ।वो औरत आगे बढ़ी और हयाती के कंधे पर हाथ रख कर बोली " कितनी अजीब बात है न आई थी थोड़े दिनों के लिए अब पूरी यही की हो जाएंगी " इतना कहकर वो हसने लगी ।

जोया हयाती के पास आती है और उसके सिर को चूमती है "में तो चाहती हू के हयाती अब अपने घर भी न जाए बस यही रह जाए "

"लेकिन मासी अचानक से इतनी जल्दी क्यों "हयाती ने अपने कंधे से रखे हाथ को हटाते हुए कहा ।

"अचानक तो मा लोग वास्ते है थाणे कई , थाणे तो बस कपड़ा लावना है ।

मा लोग ने तो घर सजानो है पकानो है ।" महिला ने कहा

" मामी वो बात नही है ,अचानक से यू ....."मुराद इससे आगे कुछ बोल पाता मामी ने बात काटते हुए कहा "देखा जोया बाजी हाल ब्याह होयो नि पहला ही लुगाई रो पक्ष खींचे "

"भाई पक्ष नही खीच रहे वो बस बता रहे है क्युकी ये हमारे भी हैरत की बात है ।और इन दोनो को मिले तो अभी कुछ दिन ही हुए है टाइम तो चाहिए न थोड़ा ।"अरशद ने इतना कहकर मुराद का हाथ पकड़ उसे वहा से ले गया ।

" लो भाई अब इस घर में मजाक भी कोनी कर सका " महिला ने मुंह बनाते हुए कहा ।

"सबीना । अरशद का रवैया तो तुम जानती होना ।उसकी बात को दिल पर मत लगाओ ।" जोया ने कहा

"जोया बाजी ....."

सबीना इससे आगे कुछ बोल पाती उससे पहले ही हयाती वहा से चली जाती है।

जोया और सबीना भी रसोई में चले जाते है ।

रात का वक्त था तकरीबन आठ बज चुके थे सब खाने की टेबल पर थे ।सबीना रसोई से रोटी ले आती है और उसे टेबल पर रख वही जुनैद के पास खड़ी हो जाती है जो नानाजी के ठीक सामने वाली कुर्सी पर बैठा था ।जुनैद सबीना का सबसे छोटा बेटा है और घर ने भी सबसे छोटा है । नानाजी सबीना को यू देख बोले "भई सबीना ये नजाकत कहा रह गया ,अभी तक आया नही "

"पापाजी वो लेट आयेंगे overtime करने लगे है न इसीलिए " सबीना ने जवाब दिया ।

"Overtime" हमीद ने हैरत अंदाज में कहा ।

"हा भाईजान " सबीना ने कहा ।

"नजाकत को overtime करने की क्या जरूरत पड़ी पहले ही वो काम से आते ही घर वाले कपड़े सिलता है और अब ये ओवरटाइम "। जोया ने कहा।

"जब नजाकत आएगा तो हम बात करेंगे अभी खाना खाओ । इतना जोया से कहकर नानाजी अपना मुंह सबीना की तरफ करते है और कहते है "बेटा जी आप भी खालों "

" नही पापाजी में उनके साथ ही खाऊंगी ।अकेले खावन री आदत नही है उन्हे । सबीना ने कहा ।

सभी खाना खा लेते है और अपने अपने काम में लग जाते है शहनाज और सबीना रसोई का काम करती है , जोया और हमीद अपने अब्बू के पास बैठे होते है । मुराद जो अभी तक हमीद के पास खड़ा था वो अब उपर छत पर चला गया । छत पर अरशद और मुनिबा किताबे लेकर बैठे थे ।वही समर फोन लिए उन्ही के पास बैठा था ।

" समर तुम्हे भी किताबे पढ़नी चाहिए मिर्ची की तरह " मुराद ने समर से कहा।

"इसे गेम से फुरसत मिले तब पढ़े , भाई आपको पता है इस बार समर का halfyearly exam का रिजल्ट पिछले वाले से भी खराब था " मुनिबा ने शिकायत करते हुए कहा।

"क्या। मामू ने कुछ बोला नहीं " अरशद ने शॉक होते हुए कहा ।

"कुछ पता हो तब बोले , समर ने तो ताइजी को भी नही बताया है " मुनीबा ने कहा।

"मिर्ची की बच्ची तू अपना मुंह बंद नहीं रख सकती " समर ने मुनीबा को डाटते हुए कहा ।

"Shhhhhhh ।ज्यादा शोर मत मचाओ ।आज मामू का मूड बेहद खराब है ।"मुराद ने कहा ।

"अब्बा जी का मूड कब खराब नही होता " समर ने फोन को टेबल पर रखते हुए कहा ।

"कोई बात नही समर ये तो सिर्फ halfyearly एग्जाम था अभी असली एग्जाम तो अभी बाकी है ।मुराद अपना मुंह मिर्ची की तरफ करता हुआ कहता है एग्जाम कब है ।

"इस हफ्ते के आखरी में छुट्टियां पड़ जाएगी और उसके अगले हफ्ते हमारे एग्जाम । मुनीबा ने एक्साइटेड होते हुए बोली।

मुराद ने कुछ जवाब नही वो वहा से अपने रूम की तरफ चला गया ।

हयाती अपने कमरे में बैठी फोन देख रही थी इतने में ही किसी का कॉल आगया स्क्रीन पर भाई से नाम था ।नाम पढ़ते ही हयाती का मुरझाया हुआ चेहरा खिल गया उसने कॉल अटेंड करते ही कहा " भाईसा "

"कैसी ही मेरी चिडकली " फोन के अंदर से आवाज आई।

हयाती ने गहरी सास छोड़ी और उतरे हुए चेहरे के साथ कहा "बिलकुल भी ठीक नहीं ही , आप आजाओ ना मुझे लेने । "

"क्यू यहां से जाते वक्त तो बड़ी खुश थी अब क्या हुआ " फोन के अंदर से आवाज आई।

"बस ऐसे ही ।मुझे आपकी दादोसा की बड़े तयाजी और तायजी ,छोटे काकोसा ,ककिसा और भुआ सा की याद आ रही है " हयाती ने कहा

"और मेरी "

"आपकी तो सबसे ज्यादा याद आ रही है "

"अच्छा । में ददोसा से कल बात करूंगा इस बारे में "

"भाइसा क्या आपको पता दादोसा ने सगाई इसी हफ्ते तय करदी है "

यशवर्दन को ये सुन कर शॉक लगा "अगले हफ्ते "

हयाती ने अपने हाथ में तकिया लिया और बोली " हा "

"अच्छा ।हम कल बात करते है ।"इतना कहकर यशवर्धन कॉल काट देता है हयाती भी आगे कुछ नहीं कहती ।अपना फोन साइड पर रख हयाती लेट जाती है । हयाती आज ज्यादा ही थक गई थी जब से जय यह आई थी उसे रात में नींद देरी से आती थी लेकिन आज वो इतनी थक गई थी लेटते ही उसे नींद आ गई ।

रात के 10 बज चुके थे सबीना हॉल में नजाकत का इंतजार करते करते वही सो गई ।नजाकत घर आ गया। उसके घर में दाखिल होते ही उसने सबसे पहले सबीना को देखा जो सो रही थी ।नजाकत उसके पास गया और धीमी आवाज

में बोला "सबीना ,सबीना ..."

सबीना करवट लेते हुए बस" हम्म" में जवाब दिया नजाकत ने उसे एक और बार आवाज लगाई पर इस बार उसने अपनी आवाज पिछली वाली से थोड़ी तेज रखी "सबीना"

सबीना आवाज सुन कर गबराकर उठ गई "हा....को...कोन ।सबीना की नजर नजाकत पर पढ़ती है वो अपना हाथ अपने सीने पर रखती है और एक लंबी सास लेती है और नजाकत को कोहनी मारती हुए कहती है "ऐसे कोन उठाता है । और इत्तो मोड़ो कीकर हाेयो थाणे।थोड़ा जल्दी कोनी आ सको ।मारी आते भूख हु जान निकले । नजाकत कुछ बोलता उससे पहले ही सबीना बोल पड़ती इससे नजाकत के बोलने की बारी ही नही आ रही थी ।नजाकत ने एक और बार नाकामयाब प्रयास किया बोलने का लेकिन सबीना ने फिर से बोल पड़ी "अब यू कई मूर्ति जु खड़ा हो की बोलो "

नजाकत अब पूरी तरह हार गया वो सबीना को अपनी बाहों में लेता है और कहता है "मेरी प्यारी बीवी सबीना प्लीज मुझे खाना खिलादो में बहुत थक गया हु और कोई भी जवाब देने के मूड में नही हु ।"सबीना जो अभी गुस्से में थी उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई । "आप हाथ मुंह धोके आइए में खाना गर्म करती हु।

नजाकत हाथ मुंह धोकर टेबल पर आकर बैठ जाता है ।सबीना भी खाना गर्म कर चुकी थी ।सबीना ने एक प्लेट में खाना डालती है और दोनो एक ही प्लेट में खाने लग जाते है ।खाना खाने के बाद सबीना रसोई में बर्तन धोने के लिए चली जाती है ।नजाकत सबीना का इंतजार करते हुए हाल में बैठ जाता है और टी वी ऑन करके न्यूज देखने लगता है ।नजाकत को कुछ हि देर हुई थी टी वी देखते हुए की पास वाले कमरे से हमीद बाहर आता है और सोफे के करीब आकर नजाकत के बालो में अपना हाथ फेरते हुए कहता है " छोटे तूने बताया नही की तुमने overtime शुरू कर दिया ।और तुम्हे जरूरत क्या पड़ी है ओवरटाइम करने की ।हमीद इतना कहकर उसके पास आकर बैठ जाता है ।नजाकत अपनी निगाहे झुका लेता है और बड़े ही आदर और प्यार के साथ कहती है "हमीद भाई में आपको अकेले जुलसते हुए नही देख सकता ।पहले ही आपने मिर्ची के स्कूल का खर्चा उठा रखा है ।और अब मुराद की सगाई फिर शादी ।नजाकत एक गहरी सांस लेता है और आगे बोलता है ।भाई में आप पर सारा बोझ केसे डालडू इसीलिए मेने ओवरराइम शुरू कर दिया ।जोया मेरी भी तो बड़ी बहन है मेरा भी तो फर्ज है उसके हवाले से ।

हमीद नजाकत की बात बड़ी घोर से सुनता है और भावुक हो जाता है वो नजकत के हाथ से रिमोट लेता है और टी वी बंद कर देता है ।फिर एक लंबी सास लेता है और ठंडी आवाज में खेता है "छोटे अगर तू मेरे काम में हाथ बताए तो हम दोनो भाई अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकते है ।हमीद अपना हाथ नजाकत के हाथो पर एक उम्मीद के साथ रखता है लेकिन नजाकत बिना अपनी निगाहे उपर किए अपना हाथ हमीद के हाथो से हटा लेता है और धीमे लहजे से कहता है " हमीद भाई आप जानते है की मेरा जवाब क्या है । हमीद जान चुका था की नजाकत का जवाब ना है ।है बार हमीद के पूछने पर नजाकत का जवाब ना ही रहता है ।नजाकत को न ही पैसे से मोह है न उन खेतो से ।लेकिन हमीद को है हमीद घर का बड़ा बेटा है और इस पर अपनी विधवा बहन जोया और उसके दो बेटों की भी जिम्मेदारी जो है ।हमीद बस पैसा कमाना चाहता है चाहे वो तरीका गलत हो क्यू ना हो । हमीद सोने के लिए लिए चला जाता है ।नजाकत भी अपनी बीवी सबीना के साथ सोने कमरे की तरफ बढ़ जाता है ।


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