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30% The passion of love / Chapter 15: Flash back-4

Chapter 15: Flash back-4

अब आगे

 सिद्धार्थ हैरानी और ख़ुशी के मिले जुले भाव से अपने दादाजी क़ो देख रहा था क्योंकि अभी अभी दादाजी ने कहा की उन्हें श्रद्धा बहुत पसंद आयी और वो चाहते है की श्रद्धा ही उनकी ग्रैंड डॉटर इन लॉ बने। ये बात तों सिद्धार्थ के लिए ऐसी थी जैसे उसे किसी ने बिना मांगे ही सब दे दिया हो, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिस लड़की को वह अपनी जिंदगी में लाना चाहता है उसके दादाजी भी इस लड़की से उसकी शादी करना चाहते हैं।

सिद्धार्थ के दादाजी ने भी सिद्धार्थ के चेहरे की चमक देख ली थी उन्होंने सिद्धार्थ क्यों देखा होगा क्या तुम्हें श्रद्धा पसंद है, दादा जी के ऐसा पूछने से सिद्धार्थ एक बार के लिए अचकचा गया, उसने अपने एक्सप्रेशन छुपाने की बहुत कोशिश की लेकिन दादाजी ने समझ लिया, उन्होंने सिद्धार्थ के कंधे पर हाथ रख कर कहा तुम्हारे चेहरे की चमक बता रही है कि तुम्हें भी वह लड़की बहुत पसंद है, सिद्धार्थ भी हा में से हिला देता है, दादाजी कहते हैं तो देऱ किस बात की है जाओ जल्दी से और उससे शादी के लिए प्रपोज करो।

उसके उनकी बात पर सिद्धार्थ करता है आपको लगता है दादाजी वह मानेंगी, सिद्धार्थ कैसा कहाँ पर दादाजी उसके कंधे पर हाथ रखे रहते हैं बरखुदा लगता है तुम अपनी पोजीशन भूल गए हो इस शहर की आधी से ज्यादा लड़कियां तुम्हारे ऊपर फिदा है और वह सभी तुमसे शादी करना चाहती हैं आई एम स्योर की वो भी तुमसे शादी करने के लिए कभी भी इनकार नहीं करेगी। दादा जी की बातों से सिद्धार्थ के अंदर एक नया कॉन्फिडेंस आ जाता है, वह अपने दादाजी से कहता है ठीक है दादा जी मैं जल्दी ही श्रद्धा को शादी के लिए प्रपोज करूंगा। दादा जी को भी खुशी होती है उसकी बात सुनकर।

सिद्धार्थ उसे दिन के बाद इसी प्रिपरेशन में लग गया कि वह कैसे श्रद्धा को प्रपोज करें और उससे शादी के लिए मनाए, वो इसी सब की तैयारी में था की उसके दादा जी के केयर टेकर की कॉल आती है ज़ो बताता है की दादा जी तबियत बिगड गयी है वो जल्दी से हॉस्पिटल पहुंचता है, डॉक्टर ने बताते हैं कि उनकी हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी सिद्धार्थ डॉक्टर से बात करके अपने दादाजी को लेकर जर्मनी चला जाता है, वहां पर लगभग उसे साल भर लग जाता है क्योंकि दादाजी का ऑपरेशन बहुत ही रेयर था और उनकी कंडीशन भी सुधरने में काफ़ी टाइम हो चूका था, इन सब के बीच में भी सिद्धार्थ हर समय श्रद्धा की पूरी अपडेट लेता रहता था।

स्पेशल सिद्धार्थ को यह भी पता चलता है कि श्रद्धा अमेरिका में अपनी पढ़ाई को कंप्लीट करने के लिए जा चुकी है वह पढ़ाई में टॉपर थी इसकी वजह से स्कॉलरशिप मिली थी और इस पर वह पढ़ने के लिए चली गई थी, मेरे दादाजी की तबीयत भी ठीक हो चुकी थी इन्हीं सब में 3 साल कब निकल कर पता ही नहीं चला, अब 3 साल बाद श्रद्धा अपनी स्टडी पूरी करके वापस आती है।

इधर सिद्धार्थ के दादाजी ने भी श्रद्धा की पूरी डिटेल अपने पास ले रखी थी उन्हें पता था कि श्रद्धा वापस आ चुकी है इसलिए वह बहाना करके एक दिन श्रद्धा से मिलने गए, श्रद्धा को भले ही अब 3 साल बाद दादा जी को देख रही थी लेकिन पहली नजर में ही वह उन्हें पहचान गई, श्रद्धा उनसे मिलकर बहुत ही खुश हुई वह पूरा दिन उसने दादाजी के साथ बिताया हुआ उन्हें अपने रियल फादर के मेमोरियल पर भी लेकर जो उसके रियल फादर के मरने के बाद उनकी याद में उसकी मां ने बनवाया था।

दादा जी यह बात सुनकर बहुत ही हैरान है क्योंकि उनके पास और सिद्धार्थ के पास जो इनफॉरमेशन आई थी उसके हिसाब से श्रद्धा के पिता मोहन वाधवा जिंदा थे, जब दादाजी ने श्रद्धा से इस बारे में पूछा तो श्रद्धा ने गहरी सांस लेकर मैं बताना शुरू किया कि उसके पिता का नाम जीवन कपूर है, मोहन वाधवा उसके सौतेली पिता है जब वह उसकी मां से शादी किए थे उसके कुछ टाइम बाद ही श्रद्धा का जन्म हुआ था वह उनकी बेटी नहीं है, होने तो बस मेरी मां की मजबूरी अकेले का फायदा उठाकर उनका विश्वास जीत और उनकी प्रॉपर्टी के लिए उनसे शादी की थी, शादी के बाद जब मेरी मां को उनकी असलियत पता चली तो वह उनसे अलग रहने लगी,

इसमें जिसके सौतेले पिता ने बहुत ही ज्यादा कोशिश की कि वह फिर से मन की लाइफ में आ सके लेकिन मां ने उनसे दूरी बना ली और उसकी मां के एक्सीडेंट के बाद वह सारी प्रॉपर्टी धोखे से हड़प लिए हैं और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ उसे पर राज कर रहे हैं, श्रद्धा के मुंह से उसकी जिंदगी के बारे में इतना बड़ा सच सुनकर का दादाजी को बहुत बुरा लगा, दादाजी ने प्यार से श्रद्धा के सर पर हाथ रखा होगा कभी ऐसा मत सोचना कि तुम अकेली हो तुम्हारी मां के पास तुम्हारे दादा भी तुम्हारे साथ है। उनकी ऐसी प्यार भरी बातें सुनकर श्रद्धा का मन पिघल गया और हो दादा जी के गले लगाकर फूट फुट कर रोने लगी।

थोड़ी दूर पर खडा सिद्धार्थ भी उन दोनों लोगो की सारी बातें सुन चुका था, श्रद्धा को दुखी देखकर सिद्धार्थ का दिल भी दर्द करने लगा, उसने सोचा कि वह उसकी जिंदगी में आएगा उसकी जिंदगी खुशियों से भर देगा। ऐसे ही कुछ दिन बीत कहता था जी ज्यादातर टाइम श्रद्धा के साथ ही बिताते थे वो दोनों ढेर सारी बाते करते, अजीब अजीब गेम खेलते और श्रद्धा उन्हें अपने हाथों से टेस्टी और हेल्दी खाना बनाकर खिलाता थी, सिद्धार्थ भी अक्सर कोई ना कोई बहाना बनाकर दादाजी के मेंशन चलाया था श्रद्धा के हाथों का बना खाना खाने।

एक दिन तीन ऐसे ही बैठकर डिनर कर रहे थे कि अचानक से दादा जी ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर श्रद्धा के खाता हुआ हाथ रुक गया और सिद्धार्थ के जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।

आखिर ऐसा क्या पूछ लिया था दादाजी ने श्रद्धा से जाने के लिए


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