रात बीत गई, और एक नए दिन की शुरूवाद हुई। सुबह के ७ बजे जब मीरा की नींद खुली तो उसने देखा की सूर्यदेव का आगमन हो चुका था। पंछियों की चह चाहट भी आसमान में गूंज रही थी। मीरा ने उठने का प्रयास किया तो अभिषेक ने उसे कस कर पकड़ा हुआ था। मीरा ने भरसक प्रयास किया वहां से उठने का, पर उठ नहीं पाई। थक हार कर वो वापस सो कर इंतजार करने लगी अभिषेक के उठने का। इंतजार करते करते मीरा की वापस आंख लग गई। जब मीरा की नींद खुली और जब उसकी नज़र मोबाइल के स्क्रीन पर पड़ी, तब वो हड़बड़ाते हुए उठने लगी तो उठ नहीं पाई अभिषेक के मजबूत पकड़ के वजह से। मीरा अभिषेक को हिलाते हुए बोली, " अभी उठो, साढ़े दस बज गए। "
पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। मीरा वापस बोली, " कुंभकर्ण के औलाद, उठो जल्दी, इतने भी क्या सोते हो, ये कोई टाइम है सोने का ? "
लेकिन वापस उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। मीरा गुस्से से अभिषेक के गाल पर एक चाटा मार उसके पेट पर एक घुसा जड़ दिया जिससे अभिषेक दर्द से चीखते हुए उठा और बोला, " हाय राम, इतने जोर से कोई मारता है क्या किसीको ? "
मीरा अभिषेक के पकड़ से छूटते ही तुरंत बेड पर से कूद कर नीचे आ गई और बोली, " तो कोई एक नाजुक सी लड़की को इतना कस कर पकड़ता है क्या ? मेरी जान हलक तक आ गई थी पता है तुम्हे ?
अभिषेक अजीब तरह से मीरा को घूरते हुए बोला, " क्या बोल रही तुम, और कस कर पकड़ने से किसके जान थोड़ी ना जाती है ? "
" वो सब छोड़ो, कई चीजें लानी है घर केलिए। सजावट की चीजें, राशन और फर्नीचर्स तो काफी अच्छे हैं यहां, बस लाना है एक फ्रिज, टीवी, और ऐसे ही कई समान। "
" अभी फ्रिज खरी देंगे और राशन भी। बाकी थोड़े बाद में करेंगे। बाद में चलेगा न ? "
" हां चलेगा। पर अभी जाकर खाने केलिए कुछ राशन लेकर आओ, तब तक मैं नहाकर आती हूं। " इतना बोल वो वहां से बाथरूम की ओर चली गई। अभिषेक भी उठकर अपने बालों को थोड़ा सेट करके घर से बाहर निकल गया। एक घंटे के अंदर अभिषेक कुछ जरूरत के राशन के सामान लिए घर वापस आया तो देखा की मीरा ने अपने साथ लाए कृष्ण के मूर्ति की पूजा कर रही थी। बिना डिस्टर्ब किए अभिषेक वहां से धीरे से निकल किचन में जाकर सामानों को रखने लगा। वहां पर बर्तन भी काफी थे। " इतने सारे छोटे बड़े फर्नीचर्स के साथ घर इतने सस्ते में ? " अभिषेक के मन में वापस वही सवाल घुमा तो उसे मीरा का जवाब याद आया। जवाब आते ही वो सामानों को वापस रखने लगा। उसी बीच मीरा की पूजा खत्म हो गई और आरती की थाल लिए वो अभिषेक के पास आई। अभिषेक ने आरती ली और जैसे ही उसकी नज़र मीरा की ओर गई तो वापस हटा नहीं पाया। उसे अपने अतीत के वो वाक्या याद आया जहां वो मीरा की तारीफ करता रहता था। अपने दोस्तों के पास मीरा की तारीफ केलिए उसके द्वारा बोले गए कुछ वाक्य उसे याद आ रहे थे। वो कुछ इस प्रकार के थे, " न गहने न श्रृंगार, फिर भी वो बला की खूबसूरत है, उसकी खूबसूरती में हम इस कदर खो गए कि फलक पर चांद भी अधूरा सा लगने लगा है। " अभिषेक अपने अतीत को याद कर ही रहा था की मीरा उसके सामने चुटकी बजाते हुए बोली, " सहाब, कहां खो गए ? "
अभिषेक मीरा को प्यार से निहारते हुए बोला, " तुम्हारी खूबसूरती न मुझे मदहोश कर रही है। मांग में लगा सिंदूर और गले में पहना मंगलसूत्र, तुम्हे ब्रह्मांड में सबसे खूबसूरत बनाती है। कोई मेनका, कोई उर्वशी, कोई मोहिनी इतनी खूबसूरत नहीं हो सकती जितनी खूबसूरत तुम हो। वो किस.... "
" बस बस और कितना तारीफ करोगे मेरी, जाओ जल्दी से नहालो, मैं हमारा नाश्ता तयार करती हूं। नाश्ते के बाद तुम काम के तलाश में निकल जाना।
" हां, सही कहा तुमने। काम तो करना ही पड़ेगा। ठीक है तुम नाश्ता बनाओ। " इतना कहकर अभिषेक वहां से चला गया। मीरा भी किचन में अपना काम करने लगी। कुछ देर बाद अभिषेक नहा कर डाइनिंग टेबल के पास पहुंच कर बोला, " बन गया क्या नाश्ता ? "
" हां, बन गया। " मीरा की आवाज़ आई किचन में से। फिर वो अपने दोनों हाथ में उपमा की प्लेट लिए किचन से बाहर आई। तब तक साढ़े बारह बज चुके थे। टेबल पर उपमा रख वो बोली, " इसिको लंच समझ लो। अगर अभी नाश्ता किया तो लंच कब करेंगे ? "
" हां, ये भी ठीक है। " इतना बोल उसने फटाफट खाना खत्म किया और बोला, " अच्छा मीरा, तुम खाओ बैठ कर, मैं चलता हूं। कहीं कुछ मिल जाए तो अच्छा है। "
" ठीक है, जाओ। " मीरा खाते हुए बोली। फिर अभिषेक वहां से निकल गया।मीरा ने भी खाना खत्म किया और किचन में बर्तन धोने चली गई। अभी उसने बर्तन रखा ही था की डोर बेल के साथ साथ दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई। मीरा कुछ बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोलने गई। जब उसने दरवाजा खोला तो सामने अक्षत था। वो हैरानी से बोली, " आप यहां क्यों आए हैं ? "
" क्यों ? मैं नहीं आ सकता क्या ? " अक्षत थोड़ा मुंह बनाते हुए बोला।
" हां आ सकते हैं, मैं बस पूछ रही थी। " फिर मीरा साइड हो गई तो अक्षत अंदर आ कर सोफे पर बैठ गया और बोला, " फूल की कमी तो नहीं हुई ? "
" नहीं, ज्यादा जरूरत नहीं थी। वैसे शुक्रिया, मुझे फूल और पूजा की सामग्रियां देने केलिए। "
" अरे, ये तो मेरा फर्ज है। आप मुझे अपना दोस्त मान कर कुछ भी ऑर्डर दे सकती हैं। "
" अरे नहीं, नहीं, मैं.... "
" कुछ कहने की जरूरत नहीं। वैसे आपकी शादी कब हो गई ? कल तक तो नहीं हुई थी, आज कैसे..." अक्षत सवालिया नजरों से बोला।
मीरा हड़बड़ा कर बोली, " वो हमारी शादी पहले से हुई थी। मैंने कल सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं पहना था, इसलिए आप पूछ रहे हैं, है ना ?
" हम्म " अक्षत अपना सिर हिलाते हुए बोला।
" वो आज कल लड़कियां जब मन करता है तब ऐसे सजते हैं, वैसे ही आज मन किया मेरा तो ऐसे ही तयार हो गई। "
" अच्छा, ठीक है। वैसे आपकी लव मैरिज या अरेंज मैरिज ? "
" लव मैरिज। "
" Oo, great, और लव स्टोरी की शुरुवाद कैसे और कहां से हुई ? अक्षत जिज्ञासु होते हुए बोला।
मीरा थोड़ा अनकंफर्टेबल हो गई। अक्षत को भी समझ आ गया। इसलिए वो बोला, " आप मुझे बताने से कतरा रही है, इसलिए न क्योंकि मैं वैश्या लड़कियों का व्यापार करता हूं। ये सब अफवाह है, ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां सस्ते में फ्लैट्स मिल रहे हैं इसलिए वो लड़कियां यहां रहती हैं। इसका मतलब ये थोड़ी न है की मैं वैश्याओं का व्यापार करता हूं ! "
मीरा हैरानी से बोली, " बाप रे, आप सच बोल रहे हैं ? "
" हां "
" माफ करना आपको गलत समझने केलिए। "
" कोई बात नहीं। अच्छा में चलता हूं, थोड़ा काम है मुझे। " अक्षत सोफे पर से उठते हुए बोला।
" अरे, ऐसे कैसे ? कॉफी तो पीकर जाइए। "
" नहीं, फिर कभी। " इतना बोल वो वहां से चला गया। मीरा मन ही मन बोली, " बंदा तो सही लग रहा है। कल वो शायद इसलिए मुझे घूर रहा था क्योंकि हम नए आए है। " फिर वो अपने सर पर चपत मारते हुए बोली, " क्या मीरा, किसके भी बारे में तुम गलत सोच लेती हो। " इतना कहकर वो किचन में चली गई। शाम को जब अभिषेक घर आया तब मीरा ने उसे दोपहर की बात बताई। अभिषेक अंदर ही अंदर चीड़ रहा था। लेकिन उसने कुछ कहा नहीं, बस एक स्माइल करके वहां से चला गया। मीरा अभिषेक के एक्सप्रेशनस पर ज्यादा ध्यान न देकर किचन में चली गई। जब अभिषेक फ्रेश हो कर आया तब डाइनिंग टेबल पर खाना लग चुका था। फिर उसने और मीरा ने अपना डिनर खत्म किया तो अभिषेक बर्तन उठाकर किचन में चला गया। मीरा मना भी करती तो वो सुनता नहीं, इसलिए उसने बिना कुछ कहे अभिषेक को जाने दिया। ऐसे ही दिन बीतते गए और अक्षत अभी रोज मीरा से मिलने जाया करता था। अपने बातों से उसने मीरा के मन में खुद के लिए भरोसा जगा दिया था। मीरा के मन में अब अक्षत केलिए कोई नफरत नहीं थी। वो तो उसे अपना दोस्त मानने लगी थी। लगभग दो हफ्ते तक ऐसे मिलने जुलने के बाद एक दिन अक्षत वापस मीरा के घर गया। वहां उसने मीरा से फिर कई सारे बातें की और फिर उसने अभिषेक के बारे में पूछा, " आपके हसबैंड को कोई काम मिला ? "
मीरा बोली, " हां, उसे मिला है काम। "
" कहां मिला है ? " अक्षत तुरंत बोल पड़ा।
" मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने पूछा नहीं। वो बताना चाहता था लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं बस चाहती थी की हमारा इनकम हो जाए तो रहने में कोई प्रोब्लेम नहीं, शांति से रहेंगे। "
" अच्छा, वैसे मुझे आपसे एक बात कहनी थी। "
" जी, बोलिए। "
अक्षत थोड़ा हिचकिचाकर बोला, " क्या हम दोस्त बन सकते हैं ? "
मीरा ने थोड़ी देर सोचा और बोली, " ठीक है। " फिर अक्षत ने अपना हाथ बढ़ाया। मीरा ने अपने हाथ को अक्षत के हाथ के साथ मिला दिया। मीरा के हाथ के स्पर्श के मात्र से ही अक्षत के अंदर एक बिजली सी दौड़ गई। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी, जिसे मीरा न समझ पाई। फिर अक्षत ने पूछा, " अब तो मैं पूछ सकता हूं न की आपकी लवस्टोरी कैसे और कहां से शुरू हुई थी ? "
" हां, बिलकुल। पूछने की कोई आवश्यकता नहीं। तो कहानी शुरू होती है तब की, जब में अपनी B.Sc की पढ़ाई कर रही थी। इतना बोलते बोलते वो अपने अतीत के यादों में चली गई।
चार साल पहले,
" पापा, आप चलिए न मेरे साथ, मैं अकेली क्या करूंगी वहां ? " मीरा की रोनी सी आवाज आई। वहीं एक अधेड़ उम्र का लेकिन हटाकट्टा, रोपदार व्यक्तित्व, लेकिन अपने बेटी के सामने एक साधारण से पिता बन कर खड़े व्यक्ति, जो अपने बेटी को समझा रहे थे। वो बोले, " मेरी बच्ची, मैं और आपकी मां आपको अपने से अलग थोड़ी न करना चाहते हैं ? आप जाइए, अच्छे से पढ़ाई कीजिए और वापस आइए। फिर जब आपकी शादी होगी, तब भी तो आप हमसे दूर हो जाएंगी। " इतना बोल मीरा के पापा यानी अश्विन चौहान के आंखों से आंसू का एक कतरा गाल पर से लुढ़क गया जिसे उन्होंने तुरंत ही पोंछ अपने दर्द को अंदर छुपा कर चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोले, " आप तो दो दिन के बाद जा रही हैं, आज तो जन्म दिन है आपका, उसे खराब मत कीजिए। आप आज पूरे अठरा साल की हो गई। "
मीरा तुरंत अपने पापा के गले से लग कर रोते हुए बोली, " लव यू पापा "
" लव यू टू बेटा " अश्विन ने फिर मीरा के आंसू पोंछे और वहां से चले गए।
शाम का वक्त था, अश्विन और उनकी पत्नी यानी मीरा की मां चंद्रा सिंह चौहान मीरा के आंखों पर हाथ रख उसे कहीं ले जा रहे थे। घर के बाहर गार्डन में पहुंच कर जब उन्होंने अपनी हाथ को हटाया, तब मीरा ने अपने आंखें खोले। सामने का नजारा देख उसके आंखों को आंसुओं ने भीगा दिया। गार्डन की बहुत सुंदर सजावट की गई थी। मीरा को सफेद और काला रंग पसंद था, इसलिए उनके गार्डन में सफेद फूल के पौधे लगे हुए थे और आज के इस चांदनी रात में वो सारे फूल चांदी के समान चमक रहे थे। ब्लैक और व्हाइट थीम की डेकोरेशन की गई। वहां पर कुछ मेहमान आए हुए थे। तभी मीरा के सामने उसकी केक पेश की गई। ये भी वनीला और चॉकलेट फ्लेवर का बना था। मीरा के आंसू नहीं थम रहे थे। फिर उसने रोते रोते केक काटा और सबसे पहले अश्विन को खिलाया। अश्विन ने मीरा को केक खिलाई और उसे गले से लगा कर उसके सिर पर हाथ फेरने लगे। फिर मीरा ने बारी बारी सबको केक खिलाया। अश्विन ने कहा, " मीरा, अब आप अपनी विश बताइए, फिर हम आपको एक सुंदर सी गिफ्ट देंगे, जो की हमने बहुत समय से सोच कर रखा है आपको देने केलिए। "
मीरा ने कहा, " तो ठीक है, मेरी विश है की आप हमारी घर की एक ऐसे राज़ का खुलासा करेंगे, जिसको न आप मुझे कहा है, और न ही कहना चाहते हैं। "
अश्विन के चेहरे पर हैरानी और घबराहट साफ देखी जा सकती थी। उन्होंने मायूसी के साथ चंद्रा की ओर देखा मानों वो ये पूछना चाहते हो की सालों से दबा राज़ मीरा को बताएं या ना बताएं। चंद्रा ने अपने पलकों को झपका कर हां किया तो अश्विन ने मीरा से कहा, " ठीक है बेटा, सालों से उस राज़ को अपने भीतर दफना कर हम घुट घुट कर जी रहे थे। आज उस राज़ पर जब पर्दा उठेगा तब शायद हम इतने सालों के बाद चैन की सांस ले पाएंगे।
मीरा असमंजस के साथ बोली, " सालों पुराना राज, जो आपने अब तक पूरी दुनिया से छुपा कर रखा है, यहां तक कि आपने मुझे भी नहीं बताया, जिसके जिक्र मात्रा से ही आप घबराने लग रहे हैं, वो राज़ क्या है पापा ?
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